भगवान बुद्ध अस्थि कलश वैशाली-डॉ संघप्रकाश दुड्डे सोलापूर


बुद्ध अस्थि कलश वैशाली -डॉ संघप्रकाश दुड्डे, सोलापुर
स्तूप का कला, संस्कृति और मिथोलॉजी में महत्वपूर्ण स्थान है।कला में: स्तूप भारतीय वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं। सांची, सारनाथ, और भरहुत के स्तूप भारतीय वास्तुकला के बेजोड़ नमूने हैं1. इन स्तूपों की संरचना में एक गुम्बद होता है, जिसके आधार पर प्रदक्षिणा मार्ग होता है। स्तूप के चारों ओर घेरा या रेलिंग होती है जिसे वेदिका कहा जाता है1.
संस्कृति में: स्तूप बौद्ध धर्म का सबसे विशिष्ट स्मारक है। यह पवित्र बौद्ध अवशेषों (जैसे बुद्ध की अस्थियाँ) और अन्य पवित्र वस्तुओं को स्मृति स्वरूप संरक्षित रखने के लिए बनाए जाते हैं2. सम्राट अशोक ने बुद्ध के अवशेषों पर बड़ी संख्या में स्तूप बनाए थे, जिससे बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार हुआ2.
मिथोलॉजी में: स्तूप को बुद्ध के महा-परिनिर्वाण के प्रतीक के रूप में देखा जाता है2. बौद्ध ग्रंथ महापरिनिर्वाणसूत्र में चार प्रकार के स्तूपों का उल्लेख किया गया है: तथागत के स्मारक, बुद्ध के विभिन्न रूपों के स्मारक, मुख्य बौद्ध भिक्षुओं के स्मारक, और चक्रवर्ती नरेशों के स्मारक1.
स्तूपों का निर्माण न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है, बल्कि यह कला और वास्तुकला के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है।
भगवान बुद्ध के अस्थि कलश के बारे में जानकारी काफी रोचक है। गौतम बुद्ध के निधन के बाद, उनके अवशेषों को आठ भागों में विभाजित किया गया था और विभिन्न स्थानों पर स्तूपों में रखा गया था1.
बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के वैशाली में भगवान बुद्ध का अस्थि कलश पाया गया था। यह अस्थि कलश ब्रिटिश शासन काल के दौरान 1937 में महियंगम स्तूप से खुदाई के दौरान प्राप्त किया गया था1. बाद में, इसे लंदन के अल्बर्ट संग्रहालय में रखा गया था, लेकिन 1947 में महाबोधि सोसायटी के प्रयास से इसे श्रीलंका भेजा गया और फिर 1949 में भारत वापस लाया गया1.
अब, इन अस्थियों को उनके मूल स्थान वैशाली में फिर से स्थापित किया जा रहा है। वैशाली में एक नया संग्रहालय और स्मारक बनाया जा रहा है, जहां इन अस्थियों को रखा जाएगा1.
भगवान बुद्ध का अस्थि कलश  मूल स्‍थान पर लौटेगा 
 बिहार के मुजफ्फरपुर में इस साल भगवान बुद्ध का अस्थि कलश स्थापित किया जाएगा. बता दें कि ये विश्व का पहला अस्थि कलश होगा, जिसे मूल स्थान पर फिर से स्थापित किया जाएगा. जानें कलश से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण रोचक बातें. 
 Buddha Ashti Kalash In Vaishali: गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल के लुम्बिनी में ईसा पूर्व 563 में हुआ था और 528 ईसा पूर्व वैशाख पूर्णिमा को ही बोधगया में एक वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. ऐसा माना जाता है कि कुशीनगर में 80 साल की उम्र में उन्होंने देह त्याग दी थी. बताया जाता है कि 2500 साल पहले गौतम  बुद्ध के देह त्यागने पर उनके शरीर के अवशेषों को आठ भागों में विभाजित किया गया था. 
इन आठ स्थानों पर 8 स्तूप बनाए गए . 1 स्तूप उनकी राख और एक स्तूप उस घड़े पर बना था जिसमें अस्थियां रखी. अब इन अस्थियों को एक बार फिर से इनके मूल स्थान मुजफ्फरपुर के वैशाली में स्थापित किया जाएगा. बता दें कि फरवरी में आयोजित हुए श्रीलंकाई मंदिर जय श्री महाविहार का 17वां वार्षिक उत्सव मनाया गया था, जहां पर भगवान बुद्ध की रखी पवित्र अस्थि कलश को श्री लंका से लाया गया था. 
कहां-कहां रह चुका है कलश 
बताया जाता है कि भगवान गौतम बुद्ध की अस्थियों को ब्रिटिश शासन काल के दौरान 1937 में महियंगम स्तूप से खुदाई के दौरान प्राप्त किया गया था. वहीं, उनके दोनों की शिष्यों महामोग्गलान और सारिपुत्त की अस्थियां सांची के स्तूप संख्या तीन से मिली थी. बाद में इन अस्थि कलश को लंदन के अल्बर्ट संग्रहालय में रखा गया था. बता दें कि महाबोधि सोसायटी के प्रयास से 14 मार्च 1947 को इन अस्थियों को श्री लंका भेजा गया था और 12 जनवरी 1949 में इन्हें फिर से भारत लाया गया. बोधगया में कोलकाता स्थित मुख्यालय में इन अस्थियों को रखा गया था. लेकिन अह मुजफ्फरपुर के वैशाली में इन्हें एक बार फिर मूल स्थान पर ही स्थापित कर दिया जाएगा. 



इतने एकड़ में बनेगा संग्राहलय
विश्व के पहले गणतंत्र बिहार के वैशाली में इस साल भगवान बुद्ध का अस्थि कलश स्थापित होने जा रहा है. ये कलश विश्व का पहला ऐसा कलश होगा, जो अपने मूल स्थान पर फिर से वापस लौटेगा. बता दें कि प्रसिद्ध अभिषेक पुष्करणी तालाब के पास निर्माणाधीन बुद्ध स्मृति स्तूप और बुद्ध सम्यक संग्राहलय ने आकार लिया है. संग्राहलय समेत 5 भवन बन चुके हैं और इस साल के सितंबर-अक्टूबर तक इसका उद्घाटन हो जाएगा.

 बताया जा रहा है कि बुद्ध स्मृति स्तूप के लिए वैशाली जिले में 72 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया है और 300 करोड़ का बजट पास हुआ था. सन 2019 से इसका निर्माण शुरू हुआ था. 



महियंगम स्तूप, जिसे महायंगम स्तूप भी कहा जाता है, बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के वैशाली में स्थित है। यह स्तूप बौद्ध धर्म के महत्वपूर्ण स्मारकों में से एक है और इसे 1937 में खुदाई के दौरान खोजा गया था1.


बौद्ध धर्म में स्तूपों का अत्यधिक महत्व है। ये न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक प्रतीक हैं, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर भी हैं।

धार्मिक महत्व: स्तूप बौद्ध धर्म के पवित्र अवशेषों को संरक्षित रखने के लिए बनाए जाते हैं। इनमें बुद्ध की अस्थियाँ, उनके अनुयायियों के अवशेष, और अन्य पवित्र वस्तुएँ रखी जाती हैं1. स्तूपों को बुद्ध के महा-परिनिर्वाण का प्रतीक माना जाता है और ये बौद्ध अनुयायियों के लिए ध्यान और पूजा का केंद्र होते हैं1.
आध्यात्मिक महत्व: स्तूपों का निर्माण बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्यों और अष्टांगिक मार्ग का प्रतीक होता है2. स्तूप के विभिन्न हिस्से जैसे आधार, गुंबद, और शिखर, बौद्ध धर्म के विभिन्न सिद्धांतों और शिक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं2.
ऐतिहासिक महत्व: सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए पूरे भारत में स्तूपों का निर्माण किया था। उन्होंने बुद्ध के अवशेषों को विभाजित कर विभिन्न स्थानों पर स्तूपों में स्थापित किया1. अशोक के शासनकाल में लगभग 84,000 स्तूपों का निर्माण हुआ था1.

सांस्कृतिक महत्व: स्तूप भारतीय वास्तुकला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। सांची, सारनाथ, और अमरावती के स्तूप भारतीय कला और संस्कृति के उत्कृष्ट उदाहरण हैं3. इन स्तूपों की संरचना और सजावट में बौद्ध कला की झलक मिलती है3.

स्तूपों का महत्व न केवल बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए है, बल्कि यह मानवता के लिए एक सांस्कृतिक धरोहर हैं

इस स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक के शासनकाल में हुआ था और इसमें भगवान बुद्ध के अस्थि अवशेष रखे गए थे1. महियंगम स्तूप की संरचना में एक बड़ा गोलाकार टीला है, जिसके ऊपर एक छोटा सा चैत्य है। इसके चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है, जहां भक्त परिक्रमा करते हैं1.

स्तूप की वास्तुकला में बौद्ध कला और संस्कृति की झलक मिलती है। यह स्तूप न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है1.

बौद्ध धर्म में स्तूपों का अत्यधिक महत्व है। ये न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक प्रतीक हैं, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर भी हैं।

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