संकिशा -भगवान बुद्ध के पावन चरण से पुनीत भूमि -डॉ संघप्रकाश दुड्डे
संकिशा को (संकाश्य भी कहा जाता है) उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में स्थित एक महत्वपूर्ण बौद्ध स्थल है। यह स्थान बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है क्योंकि यह वही स्थान है जहाँ भगवान बुद्ध स्वर्ग से उतर कर आए थे1.
संकिसा का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है और यह पांचाल जनपद का एक प्रमुख नगर था1. यहाँ पर सम्राट अशोक द्वारा निर्मित एक गजस्तंभ भी है, जो इस स्थान की ऐतिहासिक महत्ता को दर्शाता है1. संकिसा में भगवान बुद्ध ने तीन महीने वर्षावास किया था और अपनी मौसी गौतमी प्रजापति को धम्म उपदेश दिया था2.
संकिशा अथवा संकिसा भारतवर्ष के उत्तर प्रदेश राज्य के फ़र्रूख़ाबाद जिले के पखना रेलवे स्टेशन से सात मील दूर काली नदी के तट पर, बौद्ध-धर्म स्थान है। इसका प्राचीन नाम संकाश्य है। कहते हैं बुद्ध भगवान स्वर्ग से उतर कर यहीं पर आये थे। जैन भी इसे अपना तीर्थ स्थान मानते है। यह तेरहवें तीर्थंकर विमलनाथजी का कैवल्यज्ञान स्थान माना जाता है। यह शाक्य वंशी राजा शुद्धोधन का राजधानी नगर है भगवान बुद्ध की माँ ने संकिसा में सफ़ेद हाथी के रूप में गर्भ प्रवेश का सपना देखा था। गर्भ में प्रवेश का प्रतीक राजा अशोक द्वारा बनवाया गया गजस्तंभ अभी बना हुआ है। शाक्य भिक्षु बुद्ध के गर्भ में प्रवेश को ही बुद्ध का जन्म मानते थे।
संकिशा संकाश्य | |
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संकिशा का हस्तिस्तम्भ, तृतीय शताब्दी ईसापूर्व में सम्राट अशोक द्वारा निर्मित स्तम्भों में से एक परगहे की कलात्मक बारीकियों को नजदीक से दिखाता चित्र। | |
स्थान | फर्रुखाबाद ज़िला, उत्तर प्रदेश, भारत |
उत्तर प्रदेश के फ़र्रुख़ाबाद के निकट स्थित आधुनिक संकिसा ग्राम को ही प्राचीन संकिसा माना जाता है। कनिंघम ने अपनी कृति 'द एनशॅंट जिऑग्राफी ऑफ़ इण्डिया' में संकिसा का विस्तार से वर्णन किया है। संकिसा का उल्लेख महाभारत में किया गया है।
उस समय यह नगर पांचाल की राजधानी कांपिल्य से अधिक दूर नहीं था। महाजनपद युग में संकिसा पांचाल जनपद का प्रसिद्ध नगर था। बौद्ध अनुश्रुति के अनुसार यह वही स्थान है, जहाँ बुद्ध, इन्द्र एवं ब्रह्मा सहित स्वर्ण अथवा रत्न की सीढ़ियों से त्रयस्तृन्सा स्वर्ग से पृथ्वी पर आये थे। इस प्रकार गौतम बुद्ध के समय में भी यह एक ख्याति प्राप्त नगर था।
इसी नगर में महात्मा बुद्ध ने अपने प्रिय शिष्य आनन्द के कहने पर यहाँ आये व संघ में स्त्रियों की प्रवृज्या पर लगायी गयी रोक को तोड़ा था और भिक्षुणी उत्पलवर्णा को दीक्षा देकर बौद्ध संघ का द्वार स्त्रियों के लिए खोल दिया गया था। बौद्ध ग्रंथों में इस नगर की गणना उस समय के बीस प्रमुख नगरों में की गयी है। प्राचीनकाल में यह नगर निश्चय ही काफ़ी बड़ा रहा होगा, क्योंकि इसकी नगर भित्ति के अवशेष, जो आज भी हैं, लगभग चार मील (लगभग 6.4 कि.मी.) की परिधि में हैं। चीनी यात्री फाह्यान पाँचवीं शताब्दी के पहले दशक में यहाँ मथुरा से चलकर आया था और यहाँ से कान्यकुब्ज, श्रावस्ती आदि स्थानों पर गया था। उसने संकिसा का उल्लेख सेंग-क्यि-शी नाम से किया है। उसने यहाँ हीनयान और महायान सम्प्रदायों के एक हजार भिक्षुओं को देखा था। कनिंघम को यहाँ से स्कन्दगुप्त का एक चाँदी का सिक्का मिला था।
विशाल सिंह स्तंभ प्रतिमा
सातवीं शताब्दी में युवानच्वांग ने यहाँ 70 फुट ऊँचाई स्तम्भ देखा था, जिसे सम्राट अशोक ने बनवाया था। उस समय भी इतना चमकदार था कि जल से भीगा-सा जान पड़ता था। स्तम्भ के शीर्ष पर विशाल सिंह प्रतिमा थी। उसने अपने विवरण में इस विचित्र तथ्य का उल्लेख किया है कि यहाँ के विशाल मठ के समीप निवास करने वाले भिक्षुओं की संख्या कई हज़ार हैI
संकिसा में कई महत्वपूर्ण स्थल हैं जो बौद्ध धर्म और इतिहास के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं। यहाँ कुछ प्रमुख स्थलों की सूची है:
अशोक स्तंभ: सम्राट अशोक द्वारा निर्मित यह स्तंभ संकिसा की प्रमुख पहचान है। इस पर एक हाथी की मूर्ति है जो बौद्ध धर्म के प्रतीक के रूप में मानी जाती है।
बुद्ध मंदिर: यह मंदिर भगवान बुद्ध को समर्पित है और यहाँ पर बुद्ध की एक विशाल प्रतिमा स्थापित है।
विहार: संकिसा में कई प्राचीन विहार हैं जहाँ बौद्ध भिक्षु निवास करते थे और ध्यान करते थे।
धम्मेक स्तूप: यह स्तूप भगवान बुद्ध के धम्म उपदेशों की स्मृति में बनाया गया है।
स्वर्ग से अवतरण स्थल: यह वह स्थान है जहाँ माना जाता है कि भगवान बुद्ध स्वर्ग से अवतरित हुए थे।
प्राचीन खंडहर: संकिसा में कई प्राचीन खंडहर हैं जो इस स्थान की ऐतिहासिक महत्ता को दर्शाते हैं।
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