ब्राह्मी लिपि को राष्ट्रीय लिपि घोषित किया जाए" अशोक तपासे - संगमेश्वर कॉलेज सोलापुर हिंदी विभाग द्वारा आयोजित ब्राह्मी लिपि उद्भव विकास तथा संवर्धन इस विषय पर 20 सितंबर 2024 को गूगल मीट द्वारा ऑनलाइन वेबीनार का आयोजन किया गया था इस समय हिंदी विभाग प्रमुख डॉ संघ प्रकाश दुड्डे ने स्वागत और प्रस्ताविक किया उसके पश्चात डॉ वंदना शर्मा ने हिंदी विभाग विविध भाषा समन्वयक जम्मू इन्होंने प्रमुख अतिथि का परिचय करके दिया इस समय छात्रों को मार्गदर्शन करते हुए माननीय अशोक तपासे जी ने ""कहा कि ब्राह्मी लिपि भारत की सबसे प्राचीन लिपि है इस लिपि से ही भारत की अन्य लिपि बन गई है उदाहरण के तौर पर अगर देखा जाए तो आज की तमिल लिपि आज की कन्नड़,देवनागरी तथा जितनी भी सारी लिपियां है उसकी जननी ब्राह्मी लिपि है ब्राह्मी लिपि से ही सारी लिपियां विकसित हो गई है आज ब्राह्मी का जो विकास और उद्धव हमें दिखाई देता है इससे पता चलता है की हर कालखंड में ब्राह्मी लिपि का विकास होता गया है दर पीढ़ी में ब्राह्मी लिपि में अलग-अलग प्रकार के शब्द बदले गए एक पीढ़ी दूसरी पीढ़ी तक इसे आगे लेकर गई और दूसरी पीढ़ी को फिर ब्राह्मी लिपि का नया रूप मिलता रहा और इस प्रकार से एक पीढ़ी उसे लिपि को जानती रही और दूसरी पीढ़ी उसे लिपि में कुछ बदलाव करते हुए उसमें अलग-अलग प्रकार के अक्षरों की खोज की गई और इस प्रकार से मौर्य काल तक इस लिपि में अलग-अलग बदलाव हमें दिखाई देते हैं जैन संप्रदाय में भगवती सूत्र में बम्भी नाम से इसका उच्चारण किया गया है साथ ही साथ बौद्ध अनुयायियों ने भी सम्राट अशोक ने अपने शिलालेखों में देव नाम प्रियदर्शी धम्मलिपि लेखा पिता इस प्रकार से कहने सम्राट अशोक के अभिलेखों में भी इस लिपि का विकास मौर्य काल तक हमें दिखाई देता है उसके बाद इसमें परिवर्तित रूप हमें दिखाई देते हैं इसलिए यह भारत की सबसे प्राचीन लिपि होने के कारण इस लिपि को राष्ट्र लिपि घोषित करने की मांग इस व्याख्यान में अशोक तपासे ने की हमें इस लिपि का उत्तरोत्तर प्रगति होने के लिए इस प्रकार के वेबीनार में आयोजकों ने जो उन्हें मौका दिया इसलिए उन्होंने आयोजकों की प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया संगमेश्वर महाविद्यालय द्वारा अपने पाठ्यक्रम में ब्राह्मी लिपि को पढाने का निश्चय किया है यह पूरे भारतवर्ष के लिए एक नई पहल आरंभ हो सकती है इससे देश के लिए और पूरे भारतवर्ष के लिए एक नया संदेश जा सकता है भारत की प्राचीन लिपि होने के कारण यह हमारी मातृभाषा को मजबूत करने वाली हर भाषा को जोड़ने वाली और सारे लिपियां की जननी होने के कारण इसे संवर्धित करना इसे संरक्षित करना हर एक व्यक्ति का फर्ज बनता है इस प्रकार के अनमोल विचार अलग-अलग उदाहरण के द्वारा उन्होंने स्पष्ट किया इस वेबीनार में देश के विभिन्न विश्वविद्यालय से अध्यापक अध्यापिका उपस्थित थे अपेक्स विश्वविद्यालय जयपुर ,एसएनडीटी विश्वविद्यालय मुंबई, उत्तराखंड राजकीय महाविद्यालय यातुंड टिहरी गढ़वाल से डॉ प्रियंका घड़ियाल ,जनार्दन राय नगर राजस्थान विद्यापीठ से डॉ चंद्रेश कुमार छतलानी, हिंदी विभाग गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी अमृतसर से प्रोफेसर सुधा महाजन, हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषा विभाग जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय से डॉ वंदना शर्मा देश के विभिन्न महाविद्यालय से विश्वविद्यालय से अध्यापक अध्यापिकाएं बड़ी संख्या में उपस्थित थे रत्नागिरी ,पुणे मुंबई, महाराष्ट्र के अलग-अलग शहरों से बेंगलुरु विश्वविद्यालय बेंगलुरु से डॉ रत्न कुमार ने कृतज्ञता ज्ञापित कियाI इस समारोह में हिंदी को बढ़ावा देने वाले अध्यापकों ने अपनी राय रखी इस वेबीनार की विशेषता यह थी कि इसमें शोधार्थी साथ-साथ रिसर्च गाइड बड़ी संख्या में उपस्थित थे संगमेश्वर महाविद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ ऋतुराज बुवा, उप प्रधानाचार्य डॉ सुहास पुजारी हिंदी विभाग के डॉ दादा साहेब खांडेकर, डॉ गोरख पांडगले, डॉ सतीश पन्हालकर , डॉ संतोष मेटकेरी प्रा विष्णु विटेकर आदि प्राध्यापक उपस्थित थे सूत्रसंचालन फातिमा शेख ने किया इस वेबीनार को सफल बनाने के लिए पदविततर तथा पदवी विभाग के
सभी छात्रों ने परिश्रम किया
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