1)बाजार कविता जया जादवानी समीक्षा कीजिये?
जया जादवानी की कविता “बाजार” एक गहन और संवेदनशील रचना है जो समाज में व्याप्त उपभोक्तावाद और मानवीय मूल्यों के ह्रास को उजागर करती है। इस कविता में बाजार को एक प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो मनुष्य की भावनाओं, संवेदनाओं और नैतिकता को निगलता जा रहा है।
कविता में जादवानी ने बाजार की चकाचौंध और उसकी चमक-दमक के पीछे छिपी वास्तविकता को बखूबी उकेरा है। वह दिखाती हैं कि कैसे बाजार में सब कुछ बिकाऊ हो गया है, यहाँ तक कि इंसान की आत्मा भी। उनकी भाषा सरल और प्रभावशाली है, जो पाठक को सीधे दिल में उतरती है।
इस कविता में जादवानी ने बाजार के माध्यम से समाज की उन विडंबनाओं को उजागर किया है, जो अक्सर हमारी नजरों से ओझल रह जाती हैं। यह कविता हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम भी इस बाजार का हिस्सा बनकर अपनी असली पहचान खोते जा रहे हैं।
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