दूरदर्शन -डॉ संघप्रकाश दुड्डे, हिंदी विभाग प्रमुख, संगमेश्वर कॉलेज सोलापुर

मीडिया का सबसे मुखर, प्रभावशाली और आकर्षक माध्यम टेलीविजन माना जाता है। टेलीविजन श्रव्य के साथ-साथ दृश्य भी दिखाता है, इसलिए यह अधिक रोचक है। भारत में अपने आरंभ से लगभग ३० वर्ष तक टेलीविजन की प्रगति धीमी रही किन्तु वर्ष १९८० और १९९० के दशक में दूरदर्शन ने राष्ट्रीय कार्यक्रम और समाचारों के प्रसारण के ज़रिये हिंदी को जनप्रिय बनाने में काफी योगदान किया। वर्ष १९९० के दशक में मनोरंजन और समाचार के निज़ी उपग्रह चैनलों के पदार्पण के उपरांत यह प्रक्रिया और तेज हो गई। रेडियो की तरह टेलीविज़न ने भी मनोरंजन कार्यक्रमों में फिल्मों का भरपूर उपयोग किया और फ़ीचर फिल्मों, वृत्तचित्रों तथा फिल्मों गीतों के प्रसारण से हिंदी भाषा को देश के कोने-कोने तक पहुंचाने के सिलसिले को आगे बढ़ाया। टेलीविजन पर प्रसारित धारावाहिक ने दर्शकों में अपना विशेष स्थान बना लिया। सामाजिक, पौराणिक, ऐतिहासिक, पारिवारिक तथा धार्मिक विषयों को लेकर बनाए गए हिंदी धारावाहिक घर-घर में देखे जाने लगे। रामायण, महाभारत हमलोग, भारत एक खोज जैसे धारावाहिक न केवल हिंदी प्रसार के वाहक बने बल्कि राष्ट्रीय एकता के सूत्र बन गए। देखते-ही-देखते टीवी कार्यक्रमों के जुड़े लोग फ़िल्मी सितारों की तरह चर्चित और विख्यात हो गए। समूचे देश में टेलीविज़न कार्यक्रमों की लोकप्रियता की बदौलत देश के अहिंदी भाषी लोग हिन्दी समझने और बोलने लगे।

कौन बनेगा करोड़पति’ जैसे कार्यक्रमों ने लगभग पूरे देश को बांधे रखा। हिन्दी में प्रसारित ऐसे कार्यक्रमों में पूर्वोत्तर राज्यो, जम्मू-कश्मीर, और दक्षिणी राज्यों के प्रतियोगियों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और इस तथ्य को दृढ़ता से उजागर किया कि हिंदी की पहुंच समूचे देश में है। विभिन्न चैनलों ने अलग-अलग आयु वर्गों के लोगों के लिए आयोजित प्रतियोगिताओं के सीधे प्रसारणों से भी अनेक अहिन्दीभाषी राज्यों के प्रतियोगियो ने हिन्दी में गीत गाकर प्रथम और द्वित्तीय स्थान प्राप्त किए। इन कार्यक्रमों में पुरस्कार के चयन में श्रोताओं द्रारा मतदान करने के नियम ने इनकी पहुँच को और विस्तृत कर दिया। टेलीविजन चैनलों पर प्रसारित किए जा रहे तरह-तरह के लाइव-शो में भाग लेने वाले लोगों को देखकर लगता ही नहीं कि हिंदी कुछ विशेष प्रदेशों की भाषा है। हिंदी फिल्मों की तरह टेलीविजन के हिन्दी कार्यक्रमों ने भी भौगोलिक, भाषाई तथा सांस्कृतिक सीमाएँ तोड़ दी हैं।

हिन्दी समाचार भी सबसे अधिक दर्शकों द्वारा देखे-सुने जाते हैं। टीआरपी के मामले में वे अंग्रेजी चैनलों से कहीं आगे हैं। हिंदी के समाचार चैनलों की संख्या लागातार बढ़ती जा रही है। इस सन्दर्भ में यह जानना रोचक है कि स्टार, सोनी और ज़ी जैसे विदेशों से अपलिंक होने वाले चैनलों ने जब भारत में प्रसारण प्रारम्भ किया तो उनकी योजना अंग्रेजी कार्यक्रम प्रसारित करने की थी, किन्तु बहुत जल्दी उन्होने महसूस किया कि वे हिन्दी कार्यक्रमों के जरिये ही इस देश में टिक सकते हैं और वे हिंदी चैनलों में परिवर्तित होते गए। इतना ही नहीं, अंग्रेजी के कई चैनल अब लोगों को अपनी ओर अकृष्ट करने के लिये हिन्दी का प्रयोग बड़े पैमाने पर करने लगे हैं।

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