ब्राह्मी लिपि का उद्भव और विकास -डॉ संघप्रकाश दुड्डे, हिंदी विभाग प्रमुख ,संगमेश्वर कॉलेज सोलापुर

ब्राह्मी लिपि भारत की प्राचीनतम लिपियों में से एक है और इसका ऐतिहासिक महत्व अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके उद्भव और विकास को निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:

  1. उद्भव: ब्राह्मी लिपि का उद्भव लगभग 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में माना जाता है। यह लिपि मौर्य काल में विशेष रूप से प्रचलित हुई और सम्राट अशोक के शिलालेखों में इसका व्यापक उपयोग हुआ12.

  2. स्वदेशी और विदेशी सिद्धांत: ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति के विषय में दो प्रमुख सिद्धांत हैं - स्वदेशी और विदेशी। स्वदेशी सिद्धांत के अनुसार, यह लिपि भारत में ही विकसित हुई, जबकि विदेशी सिद्धांत के अनुसार, इसका विकास सेमेटिक या फोनीशियन लिपियों से हुआ13.

  3. विकास: ब्राह्मी लिपि का विकास समय के साथ विभिन्न रूपों में हुआ। यह लिपि प्राचीन भारत की कई भाषाओं के लेखन के लिए उपयोग की गई, जैसे संस्कृत, प्राकृत, और पाली। इसके बाद, यह लिपि विभिन्न भारतीय लिपियों जैसे देवनागरी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, और अन्य दक्षिण एशियाई लिपियों का आधार बनी24.

  4. अशोक के शिलालेख: सम्राट अशोक के शिलालेख ब्राह्मी लिपि के सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण उदाहरण हैं। इन शिलालेखों में बौद्ध धर्म के उपदेश और सामाजिक संदेश अंकित हैं1.

  5. प्राकृतिक विकास: ब्राह्मी लिपि का विकास एक प्राकृतिक प्रक्रिया के रूप में हुआ, जिसमें समय के साथ इसके अक्षरों और ध्वनियों में परिवर्तन आया। यह लिपि बाएँ से दाएँ लिखी जाती थी और इसमें स्वर और व्यंजन दोनों का समावेश था3.

  6. पुरातात्विक प्रमाण: भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के ताजा उत्खननों से पता चला है कि तमिलनाडु और श्रीलंका में ब्राह्मी लिपि 6वीं सदी ईसा पूर्व से ही विद्यमान थी1.

ब्राह्मी लिपि का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यंत महत्वपूर्ण है, और यह भारतीय लेखन प्रणाली के विकास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।

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