ब्राह्मी लिपि का उद्भव हो और विकास -डॉ संघप्रकाश दुड्डे ,हिंदी विभाग प्रमुख,संगमेश्वर कॉलेज सोलापुर

ब्राह्मी लिपि भारत की प्राचीनतम लिपियों में से एक है।भगवान श्री ऋषभदेव जी ने अपनी पुत्री ब्राह्मी को अक्षर अंक का ज्ञान दिया फिर माँ ब्राह्मी जी ने इस लिपि का निर्माण किया यह जैन धर्म की देन है के प्राचीन उदाहरण अशोक के अभिलेखों के रूप में उपलब्ध हैं। यह बाएँ से दाएँ लिखी जाती है।

ब्राह्मी लिपि


अशोकस्तम्भ पर ब्राह्मी लिपि (लगभग 250 ई.पू.)
प्रकारआबूगीदा
भाषाएँसंस्कृतप्राकृतSakaतमिऴतुषारी
समय अवधिचौथी या तीसरी शताब्दी ई.पू.[1][क] से 5 वीं शताब्दी ई.
जनक प्रणालीआदि-सीनाई लिपि[ख]
बाल प्रणालियाँगुप्त और कई वंशज लेखन प्रणाली
Sister systemsखरोष्ठी
आईएसओ 15924Brah, 300
दिशाबाएँ-से-दाएँ
यूनिकोड एलियासBrahmi
यूनिकोड रेंजU+11000–U+1107F
[ख] ब्राह्मी लिपियों का सॅमॅटिक से मूल, सार्वभौमिक रूप से सहमत नहीं है।

उत्पत्ति


ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति के विषय मे अनेक सिद्धान्त प्रस्तुत किये गए हैं। इन सिद्धांतों को दो मुख्य धाराओं में विभक्त किया जा सकता हैं।

  • 1)- विदेशी उत्पत्ति का सिद्धान्त ,
  • 2)- वृहद भारत की स्वदेशी उत्पति का सिद्धान्त

विदेशी उत्पति के सिद्धान्त को मनाने वाले पुनः दो भागों में एवं तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है।

  • (क) - यूनानी मूल से ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति - इस सिद्धान्त के पोषक अल्फ्रेड म्यूलर हैं।
  • (ख)- ब्राह्मी लिपि की सेमेटिक उत्पत्ति का सिद्धान्त - विलियम जोनश इस सिद्धांत के मुख्य प्रस्तुत करता हैं। इसे भी तीन भागों में विभक्त किया है
1-फिनीशीयान मूल
2-दक्षिण सेमेटिक मूल
3-उत्तर सेमेटिक मूल

ब्राह्मी लिपि के उद्भव के स्वदेशी सिद्धान्त को भी दो भागों में विभक्त किया जाता है-

  • 1-दक्षिण मूल
  • 2-आर्य मूल।

अभी तक माना जाता था कि ब्राह्मी लिपि का विकास चौथी से तीसरी सदी ईसा पूर्व में मौर्यों ने किया था, पर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के ताजा उत्खनन से पता चला है कि तमिलनाडु और श्रीलंका में यह ६ठी सदी ईसा पूर्व से ही विद्यमान थी।


अशोक स्तम्भ पर ब्राह्मी लिपि

देशी उत्पत्ति का सिद्धान्त


कई विद्वानों का मत है कि यह लिपि प्राचीन (सिन्धु लिपि) से निकली, अतः यह पूर्ववर्ती रूप में भारत में पहले से प्रयोग में थी।सिन्धु लिपि के प्रचलन से हट जाने के बाद प्राकृत भाषा लिखने के लिये ब्रह्मी लिपि प्रचलन मे आई। ब्रह्मी लिपि में संस्कृत मे ज्यादा कुछ ऐसा नहीं लिखा गया जो समय की मार झेल सके। प्राकृत/पाली भाषा मे लिखे गये मौर्य सम्राट अशोक के बौद्ध उपदेश आज भी सुरक्षित है। इसी लिए यह सत्य है कि इस का विकास मौर्यों ने किया।

यह लिपि उसी प्रकार बाँई ओर से दाहिनी ओर को लिखी जाती थी जैसे, उनसे निकली हुई आजकल की लिपियाँ। ललितविस्तर में लिपियों के जो नाम गिनाए गए हैं, उनमें 'ब्रह्मलिपि' का नाम भी मिला है। इस लिपि का सबसे पुराना रूप अशोक के शिलालेखों में ही मिला है।

बौद्धों के प्राचीन ग्रंथ 'ललितविस्तर' में जो उन ६४ लिपियों के नाम गिनाए गए हैं जो बुद्ध को सिखाई गई, उनमें 'नागरी लिपि' नाम नहीं है, 'ब्राह्मी लिपि' नाम हैं। 'ललितविस्तर' का चीनी भाषा में अनुवाद ई० स० ३०८ में हुआ था। जैनों के 'पन्नवणा सूत्र' और 'समवायांग सूत्र' में १८ लिपियों के नाम दिए हैं जिनमें पहला नाम बंभी (ब्राह्मी) है। उन्हीं के भगवतीसूत्र का आरंभ 'नमो बंभीए लिबिए' (ब्राह्मी लिपि को नमस्कार) से होता है।

सबसे प्राचीन लिपि भारतवर्ष में अशोक की पाई जाती है जो सिंध नदी के पार के प्रदेशों (गांधार आदि) को छोड़ भारतवर्ष में सर्वत्र बहुधा एक ही रूप की मिलती है। जिस लिपि में अशोक के लेख हैं वह प्राचीन आर्यो या ब्राह्मणों की निकाली हुई ब्राह्मी लिपि है। जैनों के 'प्रज्ञापनासूत्र' में लिखा है कि 'अर्धमागधी' भाषा जिस लिपि में प्रकाशित की जाती है वह ब्राह्मी लिपि है'। अर्धमागधी भाषा मथुरा और पाटलिपुत्र के बीच के प्रदेश की भाषा है जिससे हिंदी निकली है। अतः ब्राह्मी लिपि मध्य आर्यावर्त की लिपि है जिससे क्रमशः उस लिपि का विकास हुआ जो पीछे 'नागरी' कहलाई। मगध के राजा आदित्यसेन के समय (ईसा की सातवीं शताब्दी) के कुटिल मागधी अक्षरों में नागरी का वर्तमान रूप स्पष्ट दिखाई पड़ता है। ईसा की ९वीं और १०वीं शताब्दी से तो नागरी अपने पूर्ण रूप में लगती है। किस प्रकार अशोक के समय के अक्षरों से नागरी अक्षर क्रमशः रूपांतरित होते होते बने हैं यह पंडित गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने 'प्राचीन लिपिमाला' पुस्तक में और एक नकशे के द्वारा स्पष्ट दिखा दिया है।


ब्राह्मी का समय के साथ परिवर्तन

विदेशी उत्पत्ति का सिद्धान्त


कई पाश्चात्य विद्वानों का मत है कि कि भारतवासियों ने अक्षर लिखना विदेशियों से सीखा तथा ब्राह्मीलिपि भी उसी प्रकार प्राचीन फिनीशियन लिपि से व्युत्पन्न हुई है जिस प्रकार अरबी, यूनानी, रोमन आदि लिपियाँ। पर कई देशी विद्वानों ने सप्रमाण यह सिद्ध किया है कि ब्राह्मी लिपि का विकास भारत में स्वतंत्र रीति से हुआ।

ब्राह्मी लिपि की अन्य लिपियों से तुलना
यूनानीΑΒΓΔΕΥΖΗΘΙΚΛΜΝΞΟΠϺϘΡΣΤ
फोनेशियायीAlephBethGimelDalethHeWawZayinHethTethYodh            
अर्मानी             
ब्राह्मी??       ?         
देवनागरी
बंगला
तमिल
कन्न्ड
तेलुगु

ब्राह्मी लिपि की विशेषताएँ

  • यह बाँये से दाँये की तरफ लिखी जाती है।
  • यह मात्रात्मक लिपि है। व्यंजनों पर मात्रा लगाकर लिखी जाती है।
  • कुछ व्यंजनों के संयुक्त होने पर उनके लिये 'संयुक्ताक्षर' का प्रयोग (जैसे प्र= प् + र)
  • वर्णों का क्रम वही है जो आधुनिक भारतीय लिपियों में है।

ब्राह्मी लिपि के अभिलेख


सम्राट अशोक के ब्राह्मी लिपि में अंकित प्रमुख अभिलेख
  • रुम्मिनदेई - स्तम्भलेख
  • गिरनार - शिलालेख
  • बराबर - गृहालेख
  • मानसेहरा - शिलालेख
  • शाहबाजगद्री - शिलालेख
  • दिल्ली - स्तम्भलेख
  • गुजरर - लघु-शिलालेख
  • मस्की- शिलालेख
  • कान्धार - द्विभाषी शिलालेख

ब्राह्मी की संतती

ब्राह्मी लिपि से उद्गम हुई कुछ लिपियाँ और उनकी आकृति एवं ध्वनि में समानताएं स्पष्टतया देखी जा सकती हैं। इनमें से कई लिपियाँ ईसा के समय के आसपास विकसित हुई थीं। इन में से कुछ इस प्रकार हैं-

देवनागरीबांग्ला लिपिउड़िया लिपिगुजराती लिपिगुरुमुखीतमिल लिपिमलयालम लिपिसिंहल लिपिकन्नड़ लिपितेलुगु लिपितिब्बती लिपिरंजना, प्रचलित नेपाल, भुंजिमोल, कोरियाली, थाईबर्मेलीलाओख़मेरजावानीज़खुदाबादी लिपि आदि।

कुछ भारतीय लिपियों का तुलनात्मक चित्र यहाँ दिया गया है :

देवबांग्लागुरगुजउडियातमिलतेलुगुकन्नमलसिंहलीतिब्बतीथाईबर्मेलीख्मेरलाओ
က
 
  
  
 
 ​ඣ​  
ဉ/ည
 
  
  
   
 
 
 
   
            
 
 
  
র/ৰ
         
 ਲ਼    
          
 
ਸ਼ 
  
 

स्वर


देवनागरीबांग्लागुरुमुखीगुजरातीओडियातमिलतेलुगुकन्नडमलयालमसिंहलतिब्बतीबर्मी
        က
काকাਕਾકાକାகாకాಕಾകാකා  အာကာ
                  කැ    
                  කෑ    
किকিਕਿકિକିகிకిಕಿകിකිཨིཀིကိ
कीকীਕੀકીକୀகீకీಕೀകീකී  ကီ
कुকুਕੁકુକୁகுకుಕುകുකුཨུཀུကု
कूকূਕੂકૂକୂகூకూಕೂകൂකූ  ကူ
कॆ        கெకెಕೆകെකෙ  ကေ
केকেਕੇકેକେகேకేಕೇകേකේཨེཀེအေးကေး
कैকৈਕੈકૈକୈகைకైಕೈകൈකෛ    
कॊ        கொకొಕೊകൊකො  ကော
कोকোਕੋકોକୋகோకోಕೋകോකෝཨོཀོ  
कौকৌਕੌકૌକୌகௌకౌಕೌകൗකෞ  ကော်
कृকৃ  કૃକୃ  కృಕೃകൃකෘကၖ
कॄকৄ  કૄ       කෲ  ကၗ
कॢকৢ       కౄ ക്ഌ(ඏ)[2]   ကၘ
कॣকৣ         ക്ൡ(ඐ)   ကၙ

अंक


अंग्रेजीदेवनागरीबांग्लागुरुमुखीगुजरातीओडियातमिलतेलुगुकन्नडमलयालमतिब्बतीबर्मी
0
1
2
3
4
5
6
7
8
9

यूनिकोड


Unicode.org chart (PDF)
 0123456789ABCDEF
U+1100x𑀀𑀁𑀂𑀃𑀄𑀅𑀆𑀇𑀈𑀉𑀊𑀋𑀌𑀍𑀎𑀏
U+1101x𑀐𑀑𑀒𑀓𑀔𑀕𑀖𑀗𑀘𑀙𑀚𑀛𑀜𑀝𑀞𑀟
U+1102x𑀠𑀡𑀢𑀣𑀤𑀥𑀦𑀧𑀨𑀩𑀪𑀫𑀬𑀭𑀮𑀯
U+1103x𑀰𑀱𑀲𑀳𑀴𑀵𑀶𑀷𑀸𑀹𑀺𑀻𑀼𑀽𑀾𑀿
U+1104x𑁀𑁁𑁂𑁃𑁄𑁅𑁆𑁇𑁈𑁉𑁊𑁋𑁌𑁍
U+1105x𑁒𑁓𑁔𑁕𑁖𑁗𑁘𑁙𑁚𑁛𑁜𑁝𑁞𑁟
U+1106x𑁠𑁡𑁢𑁣𑁤𑁥𑁦𑁧𑁨𑁩𑁪𑁫𑁬𑁭𑁮𑁯
U+1107x
टिप्पणी
1.^ यूनिकोड संस्करण 6.1 के अनुसार

सन्दर्भ

  1. प॰ 11–13.
  2.  Only ancient written Sinhala


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