संत कबीर का जीवन परिचय -डॉ संघप्रकाश दुड्डे,हिंदी विभाग प्रमुख,संगमेश्वर कॉलेज सोलापुर
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संत कबीर दास 15वीं सदी में हिंदी साहित्य के भक्तिकाल के सबसे प्रसिद्ध कवि, विचारक माने जाते हैं। इनका संबंध भक्तिकाल की निर्गुण शाखा “ज्ञानमर्गी उपशाखा” से था। इनकी रचनाओं और गंभीर विचारों ने भक्तिकाल आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया था। इसके साथ ही उन्होंने उस समय समाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की। संत कबीर दास की रचनाओं के कुछ अंश सिक्खों के “आदि ग्रंथ” में भी सम्मिलित किए गए हैं। आइए जानते हैं संत कबीर दास का जीवन परिचय (Kabir Das Ka Jivan Parichay) कैसा रहा।
नाम | संत कबीर दास |
जन्म स्थान | वाराणसी, उत्तर प्रदेश |
पिता का नाम | नीरू |
माता का नाम | नीमा |
पत्नी का नाम | लोई |
संतान | कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री) |
शिक्षा | निरक्षर |
मुख्य रचनाएं | साखी, सबद, रमैनी |
काल | भक्तिकाल |
शाखा | ज्ञानमार्गी शाखा |
भाषा | अवधी, सुधक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी भाषा |
कबीर दास का जीवन परिचय – Kabir Das Ka Jivan Parichay
कबीर साहब का जन्म कब हुआ, यह ठीक-ठीक ज्ञात नहीं है। परन्तु ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म 14वीं-15वीं शताब्दी में काशी (वर्तमान वाराणसी) में हुआ था। कबीर के जीवन से संबंधित कई किवदंतियां प्रचलित है कि उनका जन्म एक विधवा ब्रह्माणी के गर्भ से हुआ था। जिसको उस ब्रह्माणी ने जन्म के उपरांत ही नदी में बहा दिया था।
नीरू एवं नीमा नामक एक जुलाहा दंपति को यह नदी किनारे मिले और उन्होंने ही इनका पालन-पोषण किया। कबीर के गुरु का नाम ‘संत स्वामी रामानंद’ था। कबीर का विवाह ‘लोई’ नामक महिला से हुआ था जिससे इन्हें ‘कमाल’ एवं ‘कमाली’ के रूप में दो संतान प्राप्त हुई। अधिकांश विद्वानों के अनुसार संत कबीर का 1575 के आसपास मगहर में स्वर्गवास हुआ था।
कबीर दास की साहित्यक रचनाएं
कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे। उन्होंने अपनी वाणी से स्वयं ही कहा है “मसि कागद छूयो नहीं, कलम गयो नहिं हाथ।” जिससे ज्ञात होता है कि उन्होंने अपनी रचनाओं को नहीं लिखा। इसके पश्चात भी उनकी वाणी से कहे गए अनमोल वचनों के संग्रह रूप का कई प्रमुख ग्रंथो में उल्लेख मिलता है। ऐसा माना जाता है कि बाद में उनके शिष्यों ने उनके वचनो का संग्रह ‘बीजक’ में किया।
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने भी स्पष्ट कहा है कि, “कविता करना कबीर का लक्ष्य नहीं था, कविता तो उन्हें संत-मेंत में मिली वस्तु थी, उनका लक्ष्य लोकहित था।” कबीर की कुछ प्रसिद्ध रचनाएं इस प्रकार हैं:-
रचना | अर्थ | प्रयुक्त छंद | भाषा |
साखी | साक्षी | दोहा | राजस्थानी पंजाबी मिली खड़ी बोली |
सबद | शब्द | गेय पद | ब्रजभाषा और पूर्वी बोली |
रमैनी | रामायण | चौपाई और दोहा | ब्रजभाषा और पूर्वी बोली |
संत कबीर दास जी को कई भाषाओं का ज्ञान था वे साधु-संतों के साथ कई जगह भ्रमण पर जाते रहते थे इसलिए उन्हें कई भाषाओं का ज्ञान हो गया था। इसके साथ ही कबीरदास अपने विचारो और अनुभवों को व्यक्त करने के लिए स्थानीय भाषा के शब्दों का इस्तेमाल करते थे। जिसे स्थानीय लोग उनकी वचनो को भली भांति समझ जाते थे। बता दें कि कबीर दास जी की भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ भी कहा जाता है।
कबीर दास जी के प्रसिद्ध दोहे
यहाँ संत कबीर दास का जीवन परिचय (Kabir Das Ka Jivan Parichay) के साथ ही उनके कुछ लोकप्रिय अनमोल विचारों के बारे में भी बताया जा रहा है। जिन्हें आप नीचे दिए गए बिंदुओं में देख सकते हैं:-
“माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे । एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे।”

“पाथर पूजे हरी मिले, तो मै पूजू पहाड़ ! घर की चक्की कोई न पूजे, जाको पीस खाए संसार !!”
“गुरु गोविंद दोऊ खड़े ,काके लागू पाय । बलिहारी गुरु आपने , गोविंद दियो मिलाय।।”
“यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान। शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।”

“उजला कपड़ा पहरि करि, पान सुपारी खाहिं । एकै हरि के नाव बिन, बाँधे जमपुरि जाहिं॥”
“निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें । बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए।”
“प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए । राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए।”

“जो घट प्रेम न संचारे, जो घट जान सामान । जैसे खाल लुहार की, सांस लेत बिनु प्राण।”
“मैं-मैं बड़ी बलाइ है, सकै तो निकसो भाजि । कब लग राखौ हे सखी, रूई लपेटी आगि॥”
“चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये । दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए।”
“तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार । सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार।”

“जिनके नौबति बाजती, मैंगल बंधते बारि । एकै हरि के नाव बिन, गए जनम सब हारि॥”
“कबीर’ नौबत आपणी, दिन दस लेहु बजाइ । ए पुर पाटन, ए गली, बहुरि न देखै आइ॥”
“जहाँ दया तहा धर्म है, जहाँ लोभ वहां पाप । जहाँ क्रोध तहा काल है, जहाँ क्षमा वहां आप।”
“ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये । औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।”

संत कबीर दास ने अपने संपूर्ण जीवन में लोकहित के लिए कई उपदेश दिए व समाज में फैली कुरीतियों और आडंबरो का खुलकर विरोध किया। इसके साथ ही उन्हें हिंदी साहित्य के महान कवियों में उच्च स्थान प्राप्त हैं। जिनके अनमोल विचारों को आज भी पढ़ा और उनका अनुसरण किया जाता हैं।
पढ़िए भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय
यहाँ संत कबीर दास का जीवन परिचय (Kabir Das Ka Jivan Parichay) के साथ ही भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय की जानकारी भी दी जा रही हैं। जिसे आप नीचे दी गई टेबल में देख सकते हैं:-
संत कबीर दास का जन्म कहाँ हुआ था?
माना जाता है कि संत कबीर दास का जन्म वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था।
कबीर दास के माता-पिता का क्या नाम था?
कबीर दास की माता ‘नीमा’ और पिता का नाम ‘नीरू’ था।
कबीर दास भक्तिकाल में ‘ज्ञानमार्गी शाखा’ के कवि थे।
कबीर दास की मुख्य रचनाएँ ‘साखी’, ‘सबद’ और ‘रमैनी’ हैं।
कबीर दास ने मुख्य रूप से ‘सधुक्कड़ी’ भाषा में रचना की थी।
आशा है कि आपको संत कबीर दास का जीवन परिचय (Kabir Das Ka Jivan Parichay) पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा।
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