वापसी कहानी उषा प्रियावंदा -डॉ संघप्रकाश दुड्डे हिंदी विभाग प्रमुख संगमेश्वर कॉलेज सोलापुर

वापसी कहानी उषा प्रियावंदा -डॉ संघप्रकाश दुड्डे
 हिंदी विभाग प्रमुख
 संगमेश्वर कॉलेज सोलापुर
 वापसी कहानी का सारांश
गजाधर बाबू पैतीस वर्षों तक रेल की नौकरी करके अवकाश प्राप्त हुए थे। वे अपने घर वापस लौटने की तैयारी में लगे हुए थे। सारा सामान बंध चुका था। उस समय उनके मन में जहाँ एक ओर अपने परिवार के बीच जाने की उत्सुकता थी वही दूसरी ओर अपने पड़ोसियों ,कर्मचारियों का स्नेह उन्हें विषाद से भर दे रहा था। गणेशी गजाधर बाबू का बड़ा ख्याल रखता था। वह उनके लिए बेसन का लड्डू बना दिया था। सांसारिक दृष्टि से उनका जीवन सफल था। उन्होंने शहर में एक बड़ा मकान बनवा लिया थे। बड़े लड़के अमर और क्रांति की शादी कर चुके थे। दो बच्चे ऊँची कक्षाओं में पढ़ रहे थे। बच्चों की पढ़ाई के कारण पत्नी अधिकतर शहर में रहती थी और उन्हें अकेला रहना पड़ता था। उन्हें इस बात की अत्यंत ख़ुशी थी कि अब वे अपने परिवार के साथ सुख से रह सकेंगे।
गजाधर बाबू स्नेही व्यक्ति थे। अपने आस – पास के लोगों से उनका मधुर व्यवहार था। बीच-बीच में जब परिवार उनके साथ रहता था तो वह समय उनके लिए असीम सुख का होता था। छुट्टी से लौटकर बच्चों का हँसना – बोलना ,पत्नी का दोपहर में देर तक उनके खाने के लिए प्रतीक्षा करना और उसका सजल मुस्कान सब कुछ याद करते हुए उनकी उदासी और बढ़ जाती थी। बहुत सारे अरमान लिए गजाधर बाबू अपने घर पहुंचे। इतवार का दिन था। गजाधर बाबू के सभी बच्चे इकठ्ठा होकर घर में नाश्ता कर रहे थे। बच्चों की हंसी सुनकर वे प्रसन्न हुए और बिना खांसे अन्दर चले गए। पिता को देखते ही नरेंद चुपचाप बैठ गया ,बहू ने झट से माथा ढक लिया और बसंती ने अपनी हँसी को दबाने की चेष्टा की। उन्होंने नरेंद से पुछा क्या हो रहा था पर नरेंद्र ऐसा चुप हो गया जैसे गजाधर बाबू का वहां आना अच्छा न लगा हो।
बच्चों के इस व्यवहार से वे दुखी हुए। उन्होंने बसंती से अपने लिए चाय पीने के लिए बाहर ही माँगा। अब वे घर में प्रायः बैठक में ही रहते थे क्योंकि मकान छोटा था। गजाधर बाबू घर की हाल चाल देखकर पत्नी को घर खर्च कम करने की सलाह दी परन्तु पत्नी द्वारा उन्हें सहानुभूति नहीं मिली। उन्हें अब यह महसूस होने लगा कि जैसे परिवार की सभी परेशानियों की वो ही जिम्मेदार हैं।
गजाधर बाबू के हिदायत पर बहू खाना बनाने गयी पर चौका खुला छोड़ दी जिससे बिल्ली ने दाल गिरा दी। बसंती ने खाना तो बनाया पर ऐसा जिसे कोई खा न सके। नरेंद्र ने खाना नहीं खाया और अपनी खीज गजाधर बाबू पर उतारने लगा। शीला के घर न जाने की मनाही पर बसंती उनसे रुष्ट हो गयी और अब उनके सामने जाने से कतराने लगी। पुत्री के इस व्यवहार से उनकी आत्मा दुखी हो उठी। उन्हें इस बात से और आघात पहुँचा कि अमर अब अलग होने का सोच रहा है क्योंकि अब अमर के दोस्तों की महफ़िल नहीं जैम पाती थी। दूसरे दिन जब वे घूमकर आये तो देखा कि बैठक से उनकी खाट उठाकर छोटी कोठरी में रख दी गयी है।

अब गजाधर बाबू को ऐसा एहसास होने लगा जैसे कि परिवार में उनकी कोई उपयोगिता नहीं है। इस घटना के बाद वे चुपचाप रहने लगे किन्तु किसी ने उनकी चुप्पी का कारण नहीं पूछा। उन्हें अब अपनी पत्नी के व्यवहार में स्वार्थपरता की बू आने लगी। उन्हें अब परिवार के हितार्थ किसी कार्य के लिए उत्साह न रहा। इसी बीच गजाधर बाबू ने एक दिन अपने घरेलू नौकर को काम से हटा दिया। इसे सुनकर नरेंद्र आग बबूला हो गया। यह सब देखकर उनका मन विचलित हो उठा और उन्होंने मन ही मन तय किया कि अब उन्हें यहाँ नहीं रहना है।

अवकाश प्राप्ति के बाद रामजी मिल वालों ने उन्हें अपनी चीनी की मिल में नौकरी का प्रस्ताव दिया था लेकिन उन्होंने परिवार के साथ रहने की कल्पना के कारण स्वीकार नहीं किया था। अब उन्होंने उसके लिए रजामंदी भेज दी। उन्होंने पत्नी से कहा कि क्या वह भी उनके साथ चलेगी ,परन्तु पत्नी ने इनकार कर दिया। गजाधर बाबू पारिवारिक सुख से वंचित और निराश होकर रिक्शे पर बैठ गए। उनका बिस्तर और असबाब लाद दिया गया। उन्होंने एक नज़र परिवार पर डाली और इतने में रिक्शा चल पड़ा। परिवार के सभी लोग प्रसन्न हुए और गजाधर बाबू की चारपाई घर से बाहर निकाल दी गयी।

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