पाली भाषा का उद्भव और विकास-डॉ संघप्रकाश दुड्डे, हिंदी विभाग प्रमुख,संगमेश्वर कॉलेज सोलापुर

पाली भाषा का उद्भव और विकास एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और भाषाई प्रक्रिया है। इसे निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:

  1. उद्भव: पाली भाषा का उद्भव लगभग 6वीं से 3वीं शताब्दी ईसा पूर्व के बीच माना जाता है। यह भाषा प्राचीन भारत में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के समय विकसित हुई थी। गौतम बुद्ध ने अपने उपदेश पाली भाषा में ही दिए थे, जिससे यह भाषा बौद्ध धर्म की प्रमुख भाषा बन गई12.

  2. मूल: पाली भाषा का मूल मागधी प्राकृत से माना जाता है, जो प्राचीन मगध (वर्तमान बिहार) की भाषा थी। यह भाषा संस्कृत से भिन्न थी और आम जनता द्वारा बोली जाती थी13.

  3. विकास: पाली भाषा का विकास बौद्ध धर्म के साथ-साथ हुआ। बुद्ध के उपदेशों को संरक्षित करने के लिए त्रिपिटक ग्रंथों की रचना पाली भाषा में की गई। इसके अलावा, बौद्ध भिक्षुओं ने इस भाषा का उपयोग अपने धार्मिक ग्रंथों और साहित्य के लेखन में किया23.

  4. साहित्य: पाली भाषा का साहित्य मुख्यतः बौद्ध धर्म के ग्रंथों पर आधारित है। त्रिपिटक, जिसमें विनय पिटक, सुत्त पिटक और अभिधम्म पिटक शामिल हैं, पाली भाषा में ही लिखे गए हैं। इसके अलावा, अन्य बौद्ध ग्रंथ और टीकाएँ भी पाली भाषा में लिखी गईं2.

  5. प्रभाव: पाली भाषा का प्रभाव केवल भारत तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि यह श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, कंबोडिया और लाओस जैसे देशों में भी फैला। इन देशों में बौद्ध धर्म के प्रचार के साथ पाली भाषा का भी प्रसार हुआ12.

  6. आधुनिक स्थिति: आज भी पाली भाषा का अध्ययन बौद्ध धर्म के अनुयायियों और विद्वानों द्वारा किया जाता है। यह भाषा बौद्ध धर्म के अध्ययन और अनुसंधान के लिए महत्वपूर्ण है1.

पाली भाषा का उद्भव और विकास बौद्ध धर्म के इतिहास और संस्कृति के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है।

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