वापसी कहानी उषा प्रियावंदा समीक्षा डॉ संघप्रकाश दुड्डे संगमेश्वर कॉलेज हिंदी विभाग प्रमुख सोलापुर
वापसी कहानी उषा प्रियावंदा समीक्षा डॉ संघप्रकाश दुड्डे संगमेश्वर कॉलेज हिंदी विभाग प्रमुख सोलापुर
वापसी' कहानी में परंपरा और आधुनिकता का द्वंद्व है। आधुनिकता के इस दौर में दो पीढ़ियों के बीच हो रहे बदलाव व टकराव का लेखा जोखा प्रस्तुत है। कहानी में सेवानिवृत्त हो कर घर लौटे गजाधर बाबू को अपने ही घर में पराया कर दिए जाने के कटु अनुभवों को चित्रित किया गया है।
वापसी' कहानी का प्रमुख उद्देश्य एक ऐसे व्यक्ति की विडंबना को दर्शाती है, जो अपनी पूरे जीवन की नौकरी के बाद रिटायरमेंट के बाद अपने परिजनों के साथ अपना शेष जीवन बिताने के लिये अपने परिजनों के पास रहने के के लिये आते हैं, लेकिन वहाँ पर उन्हे उपेक्षित व्यवहार मिलता है, तो वो वापस अपनी नौकरी पर जाने का निर्णय लेते हैं।
गजाधर बाबू इस कहानी के केंद्रीय चरित्र है और पूरा घटनाक्रम उनके माध्यम से ही हमारे सामने आता है।
उषा प्रियंवदा की कहानी 'वापसी' से लिया गया है। इस कहानी में मुख्य पात्र गजाधर बाबू रेलवे की नौकरी से रिटायर होकर अपने घर लौट रहे हैं । पत्नी अपने बच्चों के साथ शहर में रहती हैं। उन्हें अपनी पत्नी के साथ बिताये दिनों की याद आ रही है ।
वापसी' कहानी में जब गजेंद्र बाबू अपनी नौकरी से रिटायर होकर अपने बीवी-बच्चों के पास रहने को आए तो उनके घर में गनेसी जी नाम का नौकर था
गजाधर बाबू के कुल चार बच्चे थे-बड़ा बेटा अमर,छोटा बेटा नरेन्द्र,बड़ी बेटी। कान्ति तथा छोटी बेटी बसन्ती।
उषा प्रियंवदा की कहानी 'वापसी' में गजाधर बाबू के रिटायर होकर घर लौटने और घर में उपेक्षित माहौल मिलने के बाद फिर से घर छोड़कर अन्यत्र लौटने के चक्र को बेहद मार्मिक रूप से अभिव्यक्त किया गया है. 24 दिसम्बर 1930 को कानपुर में जन्मी सुविख्यात लेखिका उषा प्रियंवदा नई कथाकारों की पंक्ति में प्रमुख स्थान रखती हैं.
बड़े लड़के अमर और लड़की कांति की शादियाँ कर दी थी, दो बच्चे ऊँची कक्षाओं में पढ़ रहे और उनके बच्चे और पत्नी शहर में, जिससे पढ़ाई में बाधा न हो। गजाधर बाबू स्वभाव से बहुत स्नेही व्यक्ति थे और स्नेह के आकांक्षी भी।
गजाधर बाबू पैंतीस वर्ष पश्चात् रेलवे में नौकरी करके रिटायर होते है। अपनी नौकरी में अधिकतर उन्हें अपने परिवार से अलग रहना पङता। वह स्नेही व्यक्ति थे।
गजाधर बाबू दोबारा चीनी की मिल की नौकरी पर इसलिए गए क्योंकि जब उन्होंने अपनी नौकरी से रिटायर होने के बाद घर वापस आने पर यह देखा कि अपने इस अकेलेपन को दूर करने के लिए अपने परिवार के साथ रहने की सोच कर आए थे, उसी परिवार ने उनकी उपेक्षा करने शुरू कर दी थी।घर का दूसरा कमरा अमर और उसकी बहू के पास था, तीसरा कमरा, जो सामने की ओर था, बैठक था। गजाधर बाबू के आने से पहले उसमें अमर की ससुराल से आया बेंत की तीन कुर्सियों का सेट पड़ा था, कुर्सियों पर नीली गद्दियाँ और बहू के हाथों के कड़े कुशन थे।
वापसी' कहानी की मूल संवेदना एक ऐसे व्यक्ति की विडंबना को दर्शाती है, जो अपनी पूरे जीवन की नौकरी के बाद रिटायरमेंट के बाद अपने परिजनों के साथ अपना शेष जीवन बिताने के लिये अपने परिजनों के पास रहने के के लिये आते हैं, लेकिन वहाँ पर उन्हे उपेक्षित व्यवहार मिलता है, तो वो वापस अपनी नौकरी पर जाने का निर्णय लेते हैं।
वापसी' कहानी में परंपरा और आधुनिकता का द्वंद्व है। आधुनिकता के इस दौर में दो पीढ़ियों के बीच हो रहे बदलाव व टकराव का लेखा जोखा प्रस्तुत है। कहानी में सेवानिवृत्त हो कर घर लौटे गजाधर बाबू को अपने ही घर में पराया कर दिए जाने के कटु अनुभवों को चित्रित किया गया हैगजाधर बाबू ने आहत, विस्मित दृष्टि से पत्नी को देखा। उनसे अपनी हैसियत छिपी न थी। उनकी पत्नी तंगी का अनुभव कर उसका उल्लेख करतीं, यह स्वाभाविक था, लेकिन उनमें सहानुभूति का पूर्ण अभाव गजाधर बाबू को बहुत खटका। उनसे यदि राय-बात की जाती कि प्रबंध कैसे हो, तो उन्हें चिन्ता कम, संतोष अधिक होता।
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