कृष्ण भक्ति शाखा की विशेषताएं? डॉ संघप्रकाश दुड्डे ,हिंदी विभाग प्रमुख,संगमेश्वर कॉलेज सोलापूर

कृष्ण भक्ति शाखा, जिसे कृष्णाश्रयी शाखा भी कहा जाता है, हिंदी साहित्य के भक्ति काल की एक महत्वपूर्ण धारा है। इस शाखा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  1. सगुण भक्ति: इस शाखा के कवियों ने भगवान कृष्ण को सगुण रूप में आराधना की है। उनके काव्य में कृष्ण के बाल्य और यौवन रूप का विशेष वर्णन मिलता है1.

  2. राधा-कृष्ण की लीलाएँ: कृष्ण भक्त कवियों ने अपने काव्य में राधा और कृष्ण की लीलाओं का सुंदर चित्रण किया है। इन लीलाओं में बाल्यकाल की चपलता और यौवन की रास लीलाएँ प्रमुख हैं1.

  3. वात्सल्य और श्रृंगार रस: इस शाखा के काव्य में वात्सल्य और श्रृंगार रस की प्रधानता है। सूरदास, नंददास, और रसखान जैसे कवियों ने अपने काव्य में इन रसों का सुंदर प्रयोग किया है2.

  4. भाषा और शैली: कृष्ण भक्त कवियों ने ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। उनकी भाषा सरल, सहज और संगीतात्मक है, जिससे उनके काव्य को गाया जा सकता है2.

  5. प्रकृति चित्रण: कृष्ण भक्त कवियों ने अपने काव्य में ब्रजभूमि और उसकी प्राकृतिक सुंदरता का भी वर्णन किया है। उनके काव्य में प्रकृति का चित्रण अत्यंत मनोहारी है2.

  6. प्रेम और भक्ति: कृष्ण भक्त कवियों ने प्रेम और भक्ति को प्रमुखता दी है। उनके अनुसार, सच्ची भक्ति और प्रेम से ही भगवान कृष्ण की कृपा प्राप्त की जा सकती है2.

  7. प्रमुख कवि: इस शाखा के प्रमुख कवियों में सूरदास, रसखान, नंददास, और मीरा बाई शामिल हैं। इन कवियों की रचनाएँ कृष्ण भक्ति शाखा की प्रमुख कृतियाँ हैं1.

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