जहाँ लक्ष्मी कैद है कहानी का सारांश डॉ संघप्रकाश दुड्डे हिंदी विभाग प्रमुख संगमेश्वर कॉलेज (स्वायत) सोलापुर

जहाँ लक्ष्मी कैद है कहानी का सारांश
  डॉ संघप्रकाश दुड्डे
  हिंदी विभाग प्रमुख
  संगमेश्वर कॉलेज (स्वायत)
  सोलापुर 


जहाँ लक्ष्मी कैद है कहानी का सारांश - ‘जहाँ लक्ष्मी कैद है' राजेन्द्र यादव की एक सामाजिक यथार्थ का बोध करने वाली सशक्त कहानी है। लाला रूपाराम पूर्व अनुभव के आधार पर एक अंधविश्वास से आक्रांत होकर अपनी बेटी को घर की लक्ष्मी मान बैठे हैं। उनको लगता है कि अगर बेटी का ब्याह हो जाएगा तो उनके घर की लक्ष्मी चली जाएगी। वे कंगाल बन जाएंगे और कहीं के नहीं रहेंगे। इस विचार से वे अपनी बेटी के प्रति इतना अमानवीय और असंवेदनशील व्यवहार करते हैं कि उनके हृदय से दया, प्रेम, सहानुभूति और ममता जैसे मानवीय मूल्य लुप्त हो गए हैं। परिणाम स्वरूप पिता-पुत्री के संबंध की परिधि संकुचित होकर केवल स्वार्थ आत्मकेन्द्रित भाव और यांत्रिक जीवन से निरंतर संघर्ष करती हुई अंत में हार जाती है। उसके लिए मुक्ति की कोई नई रोशनी दिखाई नहीं पड़ती है। वह मनोरोगी बन जाती है। उसे मिरगी का दौरा आता है । उसके सुनहले सपने मुरझा जाते हैं। वह सिर्फ छटपटा कर रह जाती है। 
गोविन्द गाँव से इंटर पास करके शहर में कालेज की पढ़ाई पूरी करने के इरादे से आया है और वह किसी ट्यूशन या छोटे-मोटे काम की तलाश में है। इस उद्देश्य से वह अपने पिताजी के बचपन के साथी लाला रूपाराम से मिलता है तो लाला रूपाराम उसे आटा चक्की का हिसाब करने का काम सौंपकर चक्की के पास की कोठरी में रहने की इजाजत दे देते हैं। लालाजी गोविन्द को मुंशी जी संबोधित करते हैं ताकि उसका सम्मान कुछ और बढ़ जाए।
यहाँ गोविन्द के अपने पहले ही दिन लाला रूपाराम के बेटे रामस्वरूप से उनकी मुलाकात हो जाती है, जो गोविन्द से लक्ष्मी जीजी के लिए पत्रिका मांगकर ले जाता है और तीसरे दिन उसे वापस करके दूसरी पत्रिका मांगता है। गोविन्द दूसरे दिन पत्रिका देने का वचन देता है। 
लक्ष्मी की लौटाई हुई पत्रिका का एक पन्ना मुड़ा हुआ देककर गोविन्द का ध्यान उस पर जाता है और वह उसे खोलकर पढ़ने लगता है तो उसका दिल धड़कने लगा। उस पन्ने में तीन लाइनों पर नीली स्याही से निशान लगाए गए थे। इन लाइनों में लिखा था - " मैं तुम्हें प्राणों से अधिक प्यार करती हूँ। मुझे यहाँ से भगा ले चलो। मैं फांसी लगाकर मर जाऊँगी।”
इन लाइनों को पढ़कर गोविन्द के मन में प्रेम की उमंगें हिल्लोरें लेने लगीं। कभी वह उसे भगा ले जाने पर सोचता है तो कभी अपने भविष्य - पढ़ाई के बारे में चिंतित हो उठता है। गोविन्द लक्ष्मी की उम्र, सुन्दरता आदि के बारे में तरह-तरह की कल्पनाएँ लगाता है। ऊपर की मंजिल की ओर झांकता है। कोई हम उम्र व्यक्ति के न होने के कारण वह लक्ष्मी के बारे में किसी से इसके संबंध में कोई पूछताछ नहीं कर सकता। वह मन में सोचता है कि कुछ दिन के बाद वह किसी पत्रिका में एक प्रेम पत्र रख देगा जो किसी दोस्त के नाम लिखा गया होगा। अगर वह पकड़ा गया तो चालाकी से 'भूल से चला गया' कहकर झंझट से मुक्त हो जाएगा। वह पहले सोचता है कि किताब में ये निशान किसीने मजाक में लगा दिए होंगे पर यह तर्क उसे निराधार लगता है। क्योंकि उसका इन तीन दिनों में किसी के साथ इतना गहरा परिचय नहीं हो पाया है कि कोई मजाक करने की हिम्मत करे। लकीर सीधी होने के कारण किसी बच्चे का काम भी नहीं है। लक्ष्मी ने निशान भी आवेश की स्थिति में नहीं लगाए होंगे। 
एक दिन खा-पीकर एक चक्कर लगाने के लिए लाला रूपाराम चक्की में आकर टीन की एक कुर्सी पर बैठ जाते हैं तो इतने में ऊपर की मंजिल में आँगन के लोहे के नाल पर एकाधिक सामान गिरने की आवाज सुनाई पड़ी ऊपर से कोलाहल भी सुनाई पड़ा तो गोविन्द किसी भारी विपत्ति की आशंका से भयभीत हो उठा। पर लालाजी परेशान तो जरूर होते हैं लेकिन उनके चेहरे पर भयभीत होने का कोई लक्षण दिखाई नहीं पड़ता। पास बैठे हुए चौकीदार दिलावर सिंह और मिस्त्री सलीम भी इस घटना से हँसते हैं और वे इसे जैसे रोज की एक स्वाभाविक घटना मान रहे थे। 
चौकीदार मुस्कराते हुए जब गोविन्द को परेशान न होने को समझाकर कहता है कि आज चण्डी चेत रही है। सलीम बताता है कि लड़की पर 'जिन' का साया है, जिसका इलाज मौलवी बदरुद्दीन के पास है। चौकीदार बताता है कि 'जिन' का इलाज मौलवी के पास नहीं है। वह ऊपर हो रहे शोर-गुल के रहस्य को टालने के लिए बताता है कि ऊपर कोई चीज किसी बच्चे ने गिरा दी होगी। मिस्त्री सलीम चौकीदार की बात न टालकर साफ -साफ सही बात बोलने को कहता है, क्योंकि यह रहस्य मुंशीजी से ज्यादा दिन छिप कर रह नहीं पाएगा। 
चौकीदार को जब यह विश्वास हो जाता है कि लालाजी के बारे में गोविन्द को कुछ भी पता नहीं है, तब वह लाला रूपाराम का पूरा इतिहास बताता है। वह लालाजी को शहर का मशहूर कंजूस और मशहूर रईस बताता है। वह बताता है कि लाला रूपाराम अफसरों को रिश्वत देकर मिलिटरी ठेके लेकर कालाबाजारी, धूर्तता और चोरी करने लगे। वे लक्ष्मी फ्लोर मिल में गेहूँ पिसवा कर और उसकी सप्लाई करके मोटी रकम जमा करने में सफल हो गये, अब इनके पास साबुन की फैक्टरी, जूते का कारखाना है। इनके पास पच्चीस-तीस रिक्शे और पांच ट्रक चलते हैं। इनके दस-बारह मकानों से किराए के पैसे आते हैं और सूद का व्यापार भी है। इन्होंने भी गाँव में काफी जमीन ले रखी है। इन्हे दौलत जमा करने की हाय-हाय लगी रहती है।
गोविन्द जब उनके परिवार का परिचय जानना चाहता है तो चौकीदार दिलावर सिंह बताता है कि लालाजी की चार संतान हैं। बीबी मर चुकी है। नातेदार - रिश्तेदार कोई नहीं आते । घर पर एक मरियल बुढ़िया रहती है जो घर का सारा काम-काज संभालती है, जो उसके बड़े भाई की बीबी है। इसके बड़े दो बेटे अपने बाल-बच्चों के साथ अलग रहते हैं और साबुन की फैक्ट्री का और जूते के कारखाने का काम संभालते हैं। लेकिन सारा हिसाब लाला रुपाराम रखते हैं। 
चौकीदार ने बताया कि उनकी बेटी लक्ष्मी जो कभी-कभी चंडी बन जाती है। सचमुच घर की लक्ष्मी है। क्योंकि लक्ष्मी के कारण ही लाला रुपाराम आज रईस बन बैठे हैं। पहले इनका बाप सामान्य दर्जे का आदमी था। उसके मर जाने के बाद रुपाराम ने सट्टे में अधिक रुपये कमाने के चक्कर में सारे रुपए गंवा दिए। बड़े भैया रोचूराम ने एक पनचक्की खोली। उसीमें रूपाराम काम करते रहे। इनके खानदान में लड़की को भगवान मानने का विश्वास था। रोचूराम के एक बेटी हुई। बेटी का नाम गौरी रखा गया। लड़की के पैदा होते ही रोचूराम की तकदीर पलट गई। यह देखकर रूपाराम भी एक बेटी लिए तड़पने लगे। मनौती मानने लगे। संयोग से रूपाराम को भी एक लड़की पैदा हुई। उसके उनके सितारे चमकने लगे। उस लड़की का नाम लक्ष्मी रखा गया। सचमुच वह लड़की लक्ष्मी बनकर परिवार में आ गई । रूपाराम ने अलग से 'लक्ष्मी फ्लोर मिल' बनवा ली। उनकी संपत्ति दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ने लगी। दोनों भाई गर्व से कहने लगे -" हमारे यहाँ लड़कियाँ लक्ष्मी बनकर ही आती है।"
कुछ दिन के उपरांत गौरी शादी के लायक हो गई। उसके प्रेम व्यापार को लेकर अफवाहें फैली तो चूराम ने लड़की की शादी कर दी। उसके बाद उसकी बरबादी के दिन आ गए। मिल में आग लग गई। वह मुकदमा हार गया। सब कुछ मटियामेट हो गया। उसका छल्ला-छल्ला बिक गया। एक दिन उसकी लाश तालाब में फूली हुई मिली।
इस घटना का जबरदस्त प्रभाव लाला रूपाराम पर पड़ा। उनको डर लगने लगा कि अगर उनकी बेटी की शादी कर दी जाए तो उनका भी दिवाला निकल जाएगा। इस आतंक से उसने बेटी लक्ष्मी पर पहरा कड़ा कर दिया। पढ़ाई बंद कर दी गई। ट्यूशन मास्टर को भगा लेने की आशंका से घर पर पढ़ाई का विचार भी उन्होंने मन से निकाल दिया। लक्ष्मी को घर में नजरबंद कर दिया गया। घर के भीतर न किसी को आने दिया गया न किसी को जाने दिया गया। लक्ष्मी बहुत रोई पर राक्षस बाप ने एक न सुनी। बेटी पराए घर में चली जाने से वह चौपट हो जाएगा। इस आशंका से लाला रूपाराम ने बेटी की शादी का विचार भी छोड़ दिया पर वे उसकी हर बात मानने लगे उसकी हर जिद पूरी की। लक्ष्मी पहले सबसे लड़ती थी। बाद में चिड़चिड़ी और जिद्दी हो गई। रात भर रोते रहने से धीरे-धीरे उसे दौरा पड़ने लगा। उसे दौरा पड़ते समय वह पागल सा व्यवहार करने लगी। बुरी - बुरी गालियाँ देने लगी - बेमतलब रोने - हँसने लगी। चीजें फेंकने लगी। सामने जो भी चीज पड़ जाए उसे तोड़-फोड़ करने लगी। कभी -कभी वह कपड़े उतार कर फेंक देती और बिलकुल नंगी होकर छाती और जांघ पीटपीटकर बाप से कहने लगती कि तूने मुझे अपने लिए रखा है, मुझे खा, मुझे चबा, मुझे भोग। यह सब सुनकर बाप सह जाता, पर बेटी की मुक्ति की बात सोच नहीं सकता। यह सब कहते - कहते चौकीदार आवेश में आकर लाला के लिए फैसला सुना देता है कि इसकी तो बोटी-बोटी गरम लोहे से दागी जाए और फिर बांधकर गोली से उड़ा दिया जाए।" 
गोविन्द लक्ष्मी की जिन्दगी की यह राम कहानी सुनकर व्याकुल हो जाता है। वाक्यों के नीचे लक्ष्मी के तीन निशान तीन बातों की ओर संकेत कर रहे हैं। मैं तुम्हें प्राणों से अधिक प्यार करती हूँ - दुर्वार लालसा में प्यार साकार न होने की स्थिति में सेक्स के तनाव के कारण उत्पन्न विक्षिप्तता अभिव्यंजित है, ‘मुझे यहाँ से भगा ले चलो' - मैं बंधन से मुक्ति की छटपटाहट और व्यक्तित्व की खोज स्पष्ट हुआ है। ‘मैं फांसी लगाकर मर जाऊँगी' - मैं जीवन की विषमता से संघर्ष करते हुए भी सामाजिक रूढ़ि के कारण पराजय वरण करने की करुण परिणति का आभास मिल जाता है। 
इस घटना से गोविन्द के मन में तीन प्रश्न उभर कर सामने आते हैं। वे हैं - क्या मैं ही पहला आदमी हूँ जो इस पुकार को सुनकर ऐसा व्याकुल हो उठा है। क्या ऐसी पुकार को अनसुनी कर दी है ? अर्थात् समाज के सामने यह एक विकट प्रश्न खड़ा है कि यदि मनुष्य आत्मकेंद्रित और स्वार्थों का नग्न हनन करे, उस स्थिति में समाज कोई प्रतिकार - व्यवस्था न करके केवल तटस्थ नीति अपनाए तो उस समाज का भविष्यत् क्या होगा ? इस कहानी में लेखक यही संदेश देते हैं कि जिस समाज में श्रद्धा, विश्वास, करुणा, सहानुभूति, प्रेम, मूल्य आदि के लिए कोई स्थान नहीं होता वह ढह जाएगा। एक संस्कृति का पतन हो जाएगा।

 

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