सरजू भैया (रामवृक्ष बेनीपुरी) डॉ संघप्रकाश दुड्डे सोलापूर

सरजू भैया (रामवृक्ष बेनीपुरी) डॉ संघप्रकाश दुड्डे
                                             सोलापूर

– प्रस्तुत पाठ ‘सरजू भैया‘ में लेखक ने सरजू भैया का शारीरिक, आर्थिक एवं चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन किया है। लेखक के घर के पास ही सरजू भैया का घर है। वह अपनी माँ की अकेली संतान थे। लेखक उन्हें अपना बड़ा भाई तथा स्वयं को छोटा भाई मान एक साथ समय गुजारने लगे सरजू भैया की शारीरिक विशेषता यह थी कि गाँव के सबसे लम्बे और दुबले आदमियों में उनकी गिनती होती थी। रंग साँवला, बड़ी-बड़ी टाँगे तथा बाँहें थीं। धोती पहने, कंधे पर गमछा डाले जब खड़ा होते तो उनका शरीर अस्थिपंजर जैसा प्रतीत होता था। लेकिन वह जिन्दादिल, मिलनसार, मजाकिया और हँसोड़ प्रकृति के थे। जब वह हँसते तो उनके दाँत चमक पड़ते, शरीर के अंग ऐसे हिलने-डुलने लगते जैसे सभी अंग हँस रहे हों। आर्थिक स्थित ऐसी थी कि वह अपने परिवार के साथ-साथ अतिथि-सेवा भी मजे से कर सकते थे, फिर उनकी शारीरिक दशा इतनी कमजोर क्यों थीं?

इस संबंध में लेखक का कहना है कि सरजू भैया अति उदार प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। इनके साथ ‘काजी जी दुबले क्यों? शहर के अंदेशे से‘ कहावत चरितार्थ होती है। इन्हें अपनी चिन्ता कम, दूसरों की चिन्ता अधिक रहती थी। पराए की चिन्ता के कारण इनकी खुशहाल घर-गृहस्थी नष्ट हो गई तो भूकम्प ने मकान ध्वस्त कर दिया। वह अपने लेन-देन के कारोबार से अपनी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ कर सकते थे, लेकिन सरजू भैया लेन-देन को बुरा मानते थे। उनका मानना था कि सूदखोरी में मानव की मानवता नष्ट हो जाती है, क्योंकि महाजन चीलर की भाँति इस प्रकार शोषण करता है कि ऋण लेने वालों को पता नहीे चलता किन्तु सूद की मार से बेहाल हो जात हैं। सरजू भैया परोपकारी स्वभाव के थे। उनके सामने जो कोई आता है, उस पर देवता की तरह पसीज जाते। वह परिश्रमी, चतुर एवं कर्मठ व्यक्ति थे, लेकिन दूसरों के सहयोग में इस प्रकार व्यस्त रहते कि उन्हें अपना काम देखने का मौका नहीं मिलता। गाँव में कोई बीमार होता अथवा कहीं जाने की बात होती या बजार से कोई सामान लाने की बात होती, सरजू भैया बुला लिए जाते। तात्पर्य कि वह गाँव भर के लोगों का बोझ अपने सिर पर उठाए हुए थे, जिस करण इनकी माली हालत खराब हो गई।


लेखक का कहना है कि सरजू भैया का व्यक्तित्व अनुकरणीय, वंदनीय एवं पूजनीय था। उनके इस व्यक्तित्व के समझ लेखक का सिर श्रद्धा से झुक जाता है। लेकिन ऐसे सीधे-साधे किस प्रकार ठगी का शिकार होते हैं, वह कहानी इस प्रकार है:

एकबार लेखक ने सरजू भैया से पैसा तो लिए, लेकिन लौटाए नहीं। जब भैया को स्वयं रूपये का जरूरत हुई तो लेखक से रूपये न माँगकर एक सुदखोर महाजन के पास गए, जो पहले उन्हीं से कर्ज खाता था, लेकिन अब वह धन्न सेठ बन गया। उसने झट उन्हें रूपये दे दिए। जब चलने लगे तो उसने कहा-सबूत के लिए कागज पर निशान बना दीजिए। उन्होंने बमभोला की तरह निशान बना दिया। निशान बनाने के बाद उसने कहा-‘‘जल्दी रूपये दे दो नहीं तो नालिश कर दूगाँ।‘‘ सरजू भैया जब यह बात लेखक को बताई तो वह उनका मुँह आश्चर्य से देख रहे थे।

सरजू भैया को पुत्र नहीं थे, पाँच बेटियाँ ही थीं। उनकी पत्नी बौनी थी। पत्नी की मृत्यु के बाद लेखक की पत्नी दुसरी शादी करने के लिए दबाव डाल रही थी तो उन्होंने कहा-मैं शादी इसलिए करूँ कि शर्माजी को भौजाई से मजाक करने का आनन्द मिले। ऐसा कहकर वह ठठाकर हँसने लगे और लेखक मुस्कुराता रह गया।

पाठ से:

प्रश्न 1. सरजू भैया को जिन्दादिल क्यों कहा गया है ?

उत्तर- सरजू भैया को जिन्दादिल इसलिए कहा गया है क्योंकि वह लोगों की मदद दिल खोलकर करते थे। गाँव की समस्या को अपनी समस्या समझते थे।


प्रश्न 2. लेन-देन के व्यवसाय में सरजू भैया क्यों सफल नहीं हो सकते थे ?


उत्तर- लेन-देन के व्यवसाय में सरजू भैया इसलिए सफल नहीं हो सकते थे, क्योंकि वह जिसे कुछ देते थे, उससे माँगते नहीं थे। इस कारण उनकी पूँजी धीरे-धीरे खत्म हो गई, जबकि लेन-देन में ऋण वसूलना अथवा वापसी के लिए दबाव डालना आवश्यक होता है।

प्रश्न 3. चतुर, फुर्तीले और काम-काजू आदमी होते हुए भी सरजू भैया सुखी-सम्पन्न क्यों नहीं रह सके?

उत्तर- चतुर, फुर्तीले और काम-काजू आदमी होते हुए भी सुखी-सम्पन्न इसलिए नहीं रह सके, क्योंकि उन्हें दुसरे क काम से ही फुर्सत नहीं मिलती थी। फलतः वह न तो खेती कर पाते थे और न ही लेन-देन पर ध्यान देते थे। इसी कारण वह सुखी-सम्पन्न नहीं रह सके।

प्रश्न 4. सरजू भैया ने सादे कागज पर अँगूठे का निशान क्यों बनाया?

उत्तर- सरजू भैया जब उधार लेकर बाँध लिए, तब सूदखोर महाजन ने उनसे कहा कि सबूत के लिए कागज पर निशान बना दीजिए। सरजू भैया पेशोपेश में पड़ गए, क्योंकि वह न तो पैसे लौटा सकते थे और न ही उसकी माँग को नामंजूर कर सकते थे। प्रतिष्ठा का ख्याल रखते हुए उन्होंने सादे कागज पर अंगूठे का निशान बना दिया।

प्रश्न 5. अपनी शादी की बात सुनकर सरजू भैया ठठाकर क्यों हँस पड़े?

उत्तर- वह हँसकर बात टालना चाहते थे।

पाठ से आगे:

प्रश्न 1. ‘काजी जी दुबले क्यों ? शहर के अन्देशे से‘ यह कहावत सरजू भैया पर कहाँ तक चरितार्थ होती है ?

उत्तर- काजी जी दुबले क्यों ? शहर के अन्देशे से‘ यह कहावत सरजू भैया पर पूर्णतः चरितार्थ होती है। क्योंकि उनके पिता जी अच्छे किसान थे, गल्ले का लेन-देन था। लेकिन उनके मरते ही सरजू भैया ने गाँव का बोझ अपने सिर पर उठा लिया। अपना सारा समय लोकोपकार में लगा दिया। फलतः लेन-देन सारी चौपट हो गया। खेती-बारी नष्ट हो गई। पराए उपकार के चलते उन्होंने अपना शरीर सूखा लिया।

प्रश्न 2. आप जोंक, खटमल और चीलर में सबसे खतरनाक किसे मानते हैं, और क्यों ?


उत्तर- मैं जोंक, खटमल और चीलर में चीलर को खतरनाक मानता हुँ, क्योंकि मैं जोंक तथा खटमल का खून चूसना महसूस करता हुँ। मैं उनमें अपना खून प्रत्यक्ष पाता और देखता हुँ। लेकिन चीलर गंदे कपड़े में चुपचाप पड़ा रहता है और व्यक्ति के खून को ऐसे चूसता रहता है कि पता भी नहीं चलता। चीलर चूसे खून को अपने रंग में बदल लेता है। इससे पता भी नहीं चलता।

प्रश्न 3. सरजू भैया के दिनचर्या से आप कहाँ तक सहमत हैं ?

उत्तर- सरजू भैया के दिलचर्या से मैं बिल्लकुल सहमत नहीं हूँ, क्योंकि उनकी कोई दिलचर्या थी ही नहीं। लोगों का बुलावा आते ही वह चल पड़ते थे। दिलचर्या में काम का नियम समय होता है लेकिन उनके लिए कोई नियम समय नहीं था। दुसरों के काम के कारण उन्हें समय पर खाने का समय नहीं रहती थी। फलतः कमर झुक गई। शरीर कंकाल का पर्याय बन गया।

प्रश्न 4. ‘‘सरजू भैया के सेवा-सदन का दरवाजा हमेशा खुला रहता है।‘‘ इस आशय का क्या तात्पर्य हैं ?

उत्तर- इस आशय तात्पर्य है कि दिन हो या रात, चिलचिलाती दोपहर हो या अँधेरी अधरतिया , सरजू भैया हर क्षण लोगों के सहयोग के लिए चल पड़ते थे। वह गाँव भर के बोझ आपने सिर पर लेकर चलते थे। अर्थात लोकोपकार उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य था। इसलिए वह हमेशा अपनी सेवा देने को तत्पर रहते थे।

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