ब्राह्मी लिपि परिचय-डॉ संघप्रकाश दुड्डे

ब्राह्मी लिपि एक प्राचीन भारतीय लिपि है जिसका प्रयोग विभिन्न भाषाओं के लेखन में होता था। यह लिपि वैदिक काल से मध्यकाल तक काम आई थी और इसका मौलिक रूप सरल और आकर्षक होता था।

ब्राह्मी लिपि की विशेषताएँ:

  1. स्वर और व्यंजन: ब्राह्मी लिपि में व्यक्ति के लिखावट में ब्राह्मी अक्षरों का प्रयोग होता था। इसमें स्वर (वोकल साउंड्स) और व्यंजन (कंसोनेंट साउंड्स) को प्रदर्शित करने के लिए विशेष चिह्न होते थे।

  2. अनुच्छेद: अक्षरों को शब्दों में बाँटने और वाक्यों में सम्बोधित करने के लिए अनुच्छेद (विराम चिन्ह) का प्रयोग होता था।

  3. अक्षरों की सरलता: ब्राह्मी लिपि के अक्षर सरल और गोल आकार में होते थे, जिनका पढ़ने और लिखने में आसानी होती थी।

  4. बाएं से दाएं लेखन: ब्राह्मी लिपि में अक्षर बाएं से दाएं ओर लिखे जाते थे।

  5. ध्वनि और व्याकरण: इस लिपि में व्याकरण के नियमों को पालन करने के लिए विशेष अक्षर होते थे जो ध्वनियों की परिचय कराते थे।

ब्राह्मी लिपि का विकास बाद में विभिन्न लिपियों के रूप में हुआ, जैसे कि देवनागरी, गुरुमुखी, तमिल, आदि। यह लिपि भारतीय साहित्य, भाषा, और संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

ब्राह्मी लिपि एक प्राचीन भारतीय लिपि है जिसका उपयोग विभिन्न भाषाओं को लिखने के लिए किया जाता था। यह लिपि भारतीय उपमहाद्वीप में विकसित हुई और विभिन्न समयों में बदलती रही है।

ब्राह्मी लिपि की विशेषता उसके अक्षरों में होती है, जिन्हें "ब्राह्मी" कहते हैं। इन अक्षरों का व्याकरणिक आकर्षण होता है, जिन्हें बाएं से दाएं दिशा में लिखा जाता है। यह अक्षर अक्षर नहीं होते थे, बल्कि वे स्वर और व्यंजन को प्रकट करने के लिए विशिष्ट चिन्हों का प्रयोग करते थे।

ब्राह्मी लिपि का उद्गम भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों में हुआ और इसका विकास भी विभिन्न भाषाओं के अनुसार हुआ। ब्राह्मी लिपि का प्रयोग वैदिक साहित्य, विज्ञान, धर्म, और सामाजिक लेखन में होता था।

ब्राह्मी लिपि के विकसित रूपों से नए लिपियों का विकास हुआ, जैसे कि देवनागरी, गुरुमुखी, बंगली, आदि। इन नए लिपियों में भी ब्राह्मी लिपि के आकारों का प्रभाव देखा जा सकता है।

समर्थनिकट, ब्राह्मी लिपि भारतीय लिपियों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देने वाली एक प्रमुख लिपि थी, जिसने भाषाओं को लिखने के लिए साधना प्रदान की और भारतीय साहित्य और संस्कृति को विकसित किया।

डॉ संघप्रकाश दुड्डे

हिंदी विभाग प्रमख

संगमेश्वर कॉलेज सोलापुर



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