ब्राह्मी लिपि को सम्राट अशोक का योगदान-डॉ संघप्रकाश दुड्डे

सम्राट अशोक का ब्राह्मी लिपि के विकास में महत्वपूर्ण योगदान था। उन्होंने ब्राह्मी लिपि को अपने साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों में प्रसारित किया और इसे आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया।

अशोक के शासनकाल के दौरान, विभिन्न प्रकार के संघटनात्मक और प्रशासनिक प्रयोगों के लिए ब्राह्मी लिपि का प्रयोग हुआ था। उनके द्वारा शिलालेखों में विभिन्न प्रस्तावनाएं और धार्मिक संदेशों को आक्षेप द्वारा लिखा गया था, जिनमें "धर्ममा" या "धम्मा" के संदेश भी शामिल थे। इन शिलालेखों का आकार ब्राह्मी लिपि में था और यह संदेश उनके साम्राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों में पहुंचने में मदद करते थे।

अशोक के योगदान के कारण, ब्राह्मी लिपि उनके साम्राज्य में भाषाओं और संस्कृतियों के प्रसार में महत्वपूर्ण साधन बनी और उसका प्रयोग विभिन्न क्षेत्रों में शिक्षा, प्रचार, और प्रशासन में हुआ। अशोक के साम्राज्य के पास ब्राह्मी लिपि के उपयोग से संबंधित संग्रहण और आवश्यक जानकारी के अद्भुत स्रोत हैं।

सम्राट अशोक का योगदान ब्राह्मी लिपि के विकास और प्रसार में महत्वपूर्ण रहा है। अशोक का सम्राट बनने के बाद, उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों में अपनी शासन प्रणाली को प्रसारित किया और ब्राह्मी लिपि के प्रयोग को बढ़ावा दिया।

अशोक के कई शिलालेखों में ब्राह्मी लिपि में लिखे गए उल्लेख होते हैं, जिनमें वे अपनी धर्म, नैतिकता, और समाज के महत्वपूर्ण आदर्शों को साझा करते हैं। इन शिलालेखों में ब्राह्मी लिपि का प्रयोग आसानी से पढ़े जा सकने वाले लेखों को सुरक्षित रूप से रिकॉर्ड करने के लिए किया गया था।

अशोक के योजनाबद्ध और संवेदनशील शासन के कारण ही उनका योगदान ब्राह्मी लिपि के प्रसार में विशेष महत्वपूर्ण है। उनके इस प्रयास से ब्राह्मी लिपि का प्रचार और उपयोग बढ़ गया जो भारतीय भाषाओं और साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण साबित हुआ।

डॉ संघप्रकाश दुड्डे

हिंदी विभाग प्रमुख

संगमेश्वर कॉलेज सोलापुर



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