ब्राह्मी अभिलेख-डॉ संघप्रकाश दुड्डे

ब्राह्मी लिपि एक प्राचीन भारतीय लिपि है जिसका प्रयोग विभिन्न भाषाओं के लिखने में होता था। यह लिपि वैदिक काल से लेकर मध्यकाल तक काम आई थी। ब्राह्मी लिपि का स्वरूप सरल होता था और यह दृश्यता और आकर्षण में कम होती थी, जिसके कारण इसे पत्थर, शिलालेखों, लकड़ी आदि पर लिखने में आसानी होती थी।

ब्राह्मी लिपि में स्वर और व्यंजन के लिए अक्षर थे, जो बाएं से दाएं ओर लिखे जाते थे। इसमें स्वर और व्यंजन को पहचानने के लिए विशेष चिन्हों का प्रयोग किया जाता था। इस लिपि में बहुत कम संख्या में विशिष्ट अक्षर होते थे, लेकिन वे सामान्य रूप से आवश्यक भाषाओं को प्रकट करने के लिए पर्याप्त थे।

ब्राह्मी लिपि का विकास बाद में विभिन्न लिपियों के रूप में हुआ, जैसे कि देवनागरी, गुरुमुखी, तमिल, आदि। इन नए लिपियों में ब्राह्मी लिपि के मूल अक्षरों का प्रयोग किया गया और उन्हें विभिन्न भाषाओं की आवश्यकताओं के अनुसार बदल दिया गया।

समर्थनिकट, ब्राह्मी लिपि भारतीय लिपियों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देने वाली एक प्रमुख लिपि थी, जिसने विभिन्न भाषाओं के लेखन को संभावना दी और भारतीय साहित्य और संस्कृति के विकास में योगदान है/

ब्राह्मी अभिलेख भारतीय लिपियों के प्राचीन आवश्यक स्रोत होते हैं, जिनमें विभिन्न समयों और स्थानों पर लिखित ग्रंथ, पत्थरों के शिलालेख, लकड़ी के टुकड़े आदि शामिल होते हैं। ये अभिलेख भाषाओं, साहित्य, विज्ञान, धर्म, इतिहास और समाज के विविध पहलुओं को समझने में मदद करते हैं।

ब्राह्मी अभिलेखों में विभिन्न भाषाओं में लिखित पाठ, गीत, मन्त्र, और धार्मिक प्रवचनों के अलावा विज्ञान, गणित, चिकित्सा, ज्योतिष, और अन्य विषयों के बारे में भी जानकारी शामिल होती है।

ये अभिलेख भारतीय संस्कृति और इतिहास के महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं, और विभिन्न शोधकर्ताओं और विद्वानों ने इन्हें अध्ययन करके भारतीय समाज के विकास की समझ में मदद की है। ब्राह्मी अभिलेखों का अध्ययन करके हम अपने पूर्वजों की सोच, विचार, और जीवनशैली को समझ सकते हैं और उनके सांस्कृतिक धरोहर को महत्वपूर्ण बना सकते हैं।

डॉ संघप्रकाश दुड्डे

हिंदी विभाग प्रमुख

संगमेश्वर कॉलेज सोलापुर


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