श्रव्य माध्यम में भाषा की प्रकृति-डॉ संघप्रकाश दुड्डे

श्रव्य माध्यम में भाषा की प्रकृति विशेष रूप से मौखिक संवादों को समझाने और सुनने के लिए अनुकूल होती है। इसमें भाषा के विभिन्न पहलुओं का उपयोग किया जाता है, जो आवाज, ध्वनि, विवरण, उच्चारण, विभाजन, संयोजन, संधि, समास, मुहावरे, शब्दार्थ आदि के रूप में प्रकट होते हैं।

श्रव्य माध्यम भाषा की प्रकृति में निम्नलिखित तत्व शामिल होते हैं:

  1. संयुक्त वाक्य: श्रव्य माध्यम में भाषा एक संयुक्त वाक्यों का उपयोग करती है जो एक से अधिक वाक्यांशों को संयोजित करते हैं। यह उच्चारण और समझने में सुविधाजनक होते हैं।

  2. संधि: भाषा में संधि का उपयोग विभिन्न शब्दों को संयोजित करने के लिए किया जाता है, जिससे शब्दों के बीच की अवगति और ध्वनि की मदद होती है।

  3. मुहावरे: भाषा में मुहावरों का उपयोग विभिन्न विचारों को संक्षेप्त रूप में व्यक्त करने के लिए किया जाता है। ये मजेदार और समझने में आसान होते हैं।

  4. शब्दार्थ: भाषा में शब्दों के अर्थ का महत्वपूर्ण भूमिका होती है। श्रव्य माध्यम में शब्दों के अर्थ को सामान्यतः सरल रखने का प्रयास किया जाता है ताकि उन्हें समझने में आसानी हो।

  5. ध्वनि: भाषा में वर्ण और ध्वनि का उपयोग किया जाता है जो आवाज़ी अभिव्यक्ति के माध्यम से संवादों को समझने में मदद करते हैं।

  6. संभाषण: श्रव्य माध्यम में भाषा का संभाषणिक रूप में उपयोग होता है, जिसमें वक्ता और श्रोता के बीच संवाद होता है। यह बोलचाल के रूप में सरल और सामान्य होता है।

श्रव्य माध्यम में भाषा की प्रकृति ऐसी होती है जो उच्चारण, समझदारी, और साधारणता की सुविधा प्रदान करती है, जिससे लोग उसे सुनकर अच्छी तरह से समझ सकते हैं। इसमें संवाद, अभिव्यक्ति, विवरण आदि के रूप में भाषा के विभिन्न पहलुओं का उपयोग किया जाता है जो सुनने वालों के लिए अधिक सुलभ होते हैं।

श्रव्य माध्यम में भाषा की प्रकृति विविधता और संवेदनशीलता से भरी होती है। श्रव्य माध्यम भाषा सुनने वालों के लिए होता है, जो विभिन्न संदर्भों में उपयोग होता है, जैसे रेडियो, टीवी, पॉडकास्ट, और सार्वजनिक विद्यालयों में शिक्षण आदि। यहां कुछ भाषा की प्रकृति के मुख्य तत्वों को विस्तार से समझाया गया है:

  1. साधारण और सामान्य भाषा: श्रव्य माध्यम में भाषा साधारण और सामान्य होती है, जिससे लोगों को समझने में आसानी होती है। यह विशेष विज्ञान शब्दों और जटिल वाक्य संरचना से बचती है ताकि श्रोता भाषा को आसानी से समझ सके।

  2. संवेदनशीलता: श्रव्य माध्यम में भाषा की प्रकृति भाषा को संवेदनशील बनाती है। यहां भाषा उच्चारण, वर्तनी, और भावात्मकता में संवेदनशील होती है ताकि श्रोता भाषा के माध्यम से भावनाओं को अच्छी तरह समझ सके।

  3. आकर्षक भाषा: श्रव्य माध्यम में भाषा की प्रकृति आकर्षक और आक्रोशनीय होती है। समाचार पत्रिकाओं में, रेडियो और टीवी में उपयोग होने वाली भाषा को उद्दीपक बनाने के लिए वाक्य चयन, उच्चारण, और शब्दों का चयन खास ध्यान से किया जाता है।

  4. समयबद्धता: श्रव्य माध्यम में भाषा की प्रकृति समयबद्ध होती है। समाचार और अन्य सार्वजनिक संदर्भों में, विषयों की प्राथमिकता के अनुसार भाषा चयन किया जाता है ताकि श्रोता को अधिक महत्वपूर्ण और उपयुक्त जानकारी मिल सके।

  5. संक्षेपण: श्रव्य माध्यम में भाषा की प्रकृति संक्षेपण और सुसंगतता होती है। यहां पर वाक्य और शब्दों का संख्या को संक्षेपित रखने का प्रयास किया जाता है ताकि भाषा समय की बचत करे और श्रोता उसे आसानी से समझ सके।

इन तत्वों के संयोजन से श्रव्य माध्यम में भाषा की प्रकृति श्रोताओं को संवेदनशीलता और आकर्षण पूर्वक प्रस्तुत करती है और उन्हें सुविधाजनक रूप से समझने में मदद करती है। श्रव्य माध्यम में भाषा की प्रकृति के उपयोग से समाचार, साहित सभी माध्यम समाहित होते है/

डॉ संघप्रकाश दुड्डे

हिंदी विभाग प्रमुख

संगमेश्वर कॉलेज सोलापुर


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