ब्राह्मी लिपि स्वर-डॉ संघप्रकाश दुड्डे
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ब्राह्मी लिपि संस्कृत और इंडो-आर्य भाषाओं के लिए प्राचीन लिपियों में से एक है। यह लिपि मुख्य रूप से संस्कृत और पालि भाषा में प्रयुक्त होती थी, लेकिन इसका उपयोग विभिन्न भाषाओं में भी होता था। ब्राह्मी लिपि का विकास भारतीय उपमहाद्वीप में हुआ था और यह भाषाओं को लिखने के लिए प्राचीन तरीकों में से एक था।
ब्राह्मी लिपि में स्वर और व्यंजन के लिए विशेष चिन्ह होते थे, जिन्हें दिव्यांगुलि द्वारा लिखा जाता था। स्वरों को प्रतिनिधित्व करने के लिए विशेष स्वरचिन्ह थे जो व्यंजन चिन्हों के ऊपर या नीचे आते थे। ब्राह्मी लिपि के स्वरों के कुछ उदाहरण हैं: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।
यदि आपको ब्राह्मी लिपि में स्वरों के अलावा अन्य विषयों पर भी जानकारी चाहिए, तो कृपया विस्तार से पूछें।
ब्राह्मी लिपि संस्कृत और देवनागरी लिपि के समान स्वरूप वाली एक प्राचीन भारतीय लिपि है। यह लिपि संस्कृत और पाली भाषाओं के लिए प्राचीनकाल से उपयोग में थी, और उसके बाद भी कई भाषाओं के लिए उपयोग की जाती रही है। ब्राह्मी लिपि में स्वरों को व्यक्त करने के लिए विशेष चिह्नों का प्रयोग होता था, जिन्हें 'वर्ग' कहा जाता था। निम्नलिखित स्वरों के ब्राह्मी लिपि में वर्णन होते थे:
- अ: अ
- आ: आ𑀲𑁆𑀯𑀭𑁆 (Vowels):
𑀅
𑀆
𑀇
𑀈
𑀉
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𑀋
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𑀐
𑀑
𑀒
𑀅𑀁
𑀅𑀂 - इ: इ
- ई: ई
- उ: उ
- ऊ: ऊ
- ऋ: ऋ
- ए: ए
- ऐ: ऐ
- ओ: ओ
- औ: औ
कृपया ध्यान दें कि इस लिपि का प्रयोग विभिन्न भाषाओं में होता है और स्वरों के ब्राह्मी लिपि में रूप भिन्न-भिन्न हो सकते हैं।
डॉ संघप्रकाश दुड्डे
हिंदी विभाग प्रमुख
संगमेश्वर कॉलेज सोलापुर
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