वास्तववादी "झुंड "समाज परिवर्तन का एक नया अंदाज
झुंड एक वास्तव वादी फिल्म है जो हमें सत्य का दर्शन कराती है आम आदमी का जीवन किस प्रकार से बदल सकता है अगर उसे सही मार्गदर्शक हो सही दिशा दर्शक हो तो किस प्रकार से अपनी मंजिल तक पहुंच जाता है इसका दर्शन झुंड में हमें प्राप्त होता है विजय बाहर से अर्थात अमिताभ बच्चन जी ने इस फिल्म में अपना सर्वश्रेष्ठ दर्शन देने का प्रयास किया है अमिताभ बच्चन महानायक है ही लेकिन इस फिल्म में उन्होंने अपनी अदाकारी इस प्रकार से निभाई है जो हमें देखते देखते ही दिल को छू लेती है इस फिल्म के जितने भी सारे कलाकार है उन कलाकारों को हम बधाई देते हैं उन कलाकारों के प्रति मंगल भावना प्रकट करते हैं ऐसी फिल्म बहुत दिनों के बाद देखने को मिलती है दर्शकों से मैं विनती करना चाहूंगा कि आप अपने परिवार के साथ इस फिल्म को देखें अपने मित्र जनों को भी देखने के लिए प्रेरित करें ऐसी फिल्म आपको एक नया उमंग एक नया उत्साह एक नई चेतना जीवन का राह जीवन की सच्चाई इस फिल्म में हमें जरूर दिखाई देगी खेल जगत के लिए इस फिल्म में एक नया मोड़ निर्माण किया है जिसे हर कोई भूल नहीं सकता नागराज मंजुले जी को बहुत-बहुत धन्यवाद सारे कलाकारों को भी धन्यवाद
कलाकार - अमिताभ बच्चन, छाया कदम, किशोर कदम उर्फ सौमित्र, आकाश थोसर, रिंकू राजगुरु, सोमनाथ अवघड़े
निर्देशक - नागराज मंजुले
अवधि - 2 घंटे 56 मिनट
स्टार - फोर स्टार (****)
राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक नागराज मंजुले ने 'पिस्तुल्या', 'फैंड्री', 'नाल' और 'सैराट' जैसी अलग-अलग फिल्में बनाने के बाद हिंदी फिल्मों में कदम रखा है। उनकी हिंदी फिल्म 'झुंड' प्रदर्शित हो चुकी है।फिल्म में बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन मुख्य भूमिका में हैं। फिल्म की टैगलाइन 'झुंड नहीं ये टिम है...' बहुत कुछ कहती है। फिल्म वंचितों और वंचितों की प्रतिभा को उजागर करती है और उनके सवालों को फिल्म में उजागर किया जाता है।
फिल्म की कहानी शुरू होती है मलिन बस्तियों की गंदी गलियों से, जो युवा नशे, लूटपाट और शराब के आदी हैं। एक दिन, विजय बोराडे (अमिताभ बच्चन), झुग्गी के पास एक कॉलेज के एक सेवानिवृत्त खेल प्रोफेसर, झुग्गी में बच्चों को मैदान पर एक बॉक्स के साथ फुटबॉल खेलते हुए देखता है और उन्हें उनकी प्रतिभा के बारे में पता चलता है। शुरुआत में विजय बोराडे 500 दैनिकपैसे का लालच उन्हें फुटबॉल खेलने के लिए आकर्षित करता है और फुटबॉल के खेल के माध्यम से वे स्लम के बच्चों को ड्रग्स और अपराध जैसी चीजों से दूर रखकर एक आमूलचूल परिवर्तन लाने की कोशिश करते हैं। उनकी यह कोशिश कामयाब होती है या नहीं, यह देखने के लिए आपको यह फिल्म देखनी होगी।फिल्म 'झुंड' विजय बरसे के जीवन पर आधारित है।विजय बरसे एक सेवानिवृत्त स्पोर्ट्स प्रोफेसर हैं जिन्होंने कई स्लम बच्चों को फुटबॉल पढ़ाया है। इतना ही नहीं, उन्होंने स्लम सॉकर नाम से एक एनजीओ भी स्थापित किया है। इस फिल्म में निर्देशक नागराज मंजुले ने अपनी प्रेरक कहानी के माध्यम से झुग्गी-झोपड़ियों की असंख्य समस्याओं को दिखाने की कोशिश की है। हमेशा की तरह नागराजमंजुले ने मलिन बस्तियों की अनेक समस्याओं को इंगित करने का प्रयास किया है। हमेशा की तरह नागराज मंजुले ने फिल्म का निर्देशन करने की पूरी कोशिश की है। उन्होंने इस फिल्म में अभिनय भी किया है। इस फिल्म की कहानी भी उनके लेखन में सन्निहित है और उन्होंने इसे बखूबी पेश किया है। यह फिल्म हमें सिखाती है और सोचने पर मजबूर करती है। फिल्म मनोरंजन के साथ-साथ जानकारी देने का भी प्रबंधन करती हैयह आपको शुरू से अंत तक बांधे रखता है, भले ही वह तेजी से आगे बढ़ रहा हो। साथ ही मुझे लगता है कि फिल्म की लंबाई थोड़ी कम की जा सकती थी।नागराज मंजुले दिग्दर्शक झुंड आज के दौर में बहुत ही महत्वपूर्ण वास्तव वादी कलाकृति फिल्म दुनिया में आ चुकी है अमिताभ बच्चन रिंकू राजगुरु आकाश ठोसर आदि ने बहुत ही बेहतरीन अदाकारी इस फिल्म में की है इस फिल्म में एक ऐसे माहौल से बच्चों को एकत्रित किया गया है जिन्हें सदियों से अनदेखा किया गया है ऐसे बच्चों को लेकर टीम बनाना और उनके मन में जिद परिश्रम मेहनत के बल पर अपने बलबूते पर खड़ा करना और संघर्ष करना इस फिल्म की कामयाबी है यह फिल्म आने वाली सदियों के लिए एक नया मिसाल बन जाएगी इसमें कोई शक नहीं वास्तव में वास्तव वादी फिल्में बहुत कम बनती है नागराज मंजुले द्वारा इस फिल्म से नया संदेश पूरी समाज व्यवस्था को देने का प्रयास उन्होंने किया है कोई भी व्यक्ति अपने बलबूते के बल पर खड़ा हो सकता है और दुनिया को बदल सकता है बदलने की ताकत उसके दिमाग में होनी चाहिए हम हर कुछ प्रयास कर सकते हैं और इस प्रयास का फल झुंड है झुंड के द्वारा अमिताभ बच्चन ने जो अदाकारी की है आज तक की अमिताभ बच्चन की सबसे बेहतरीन सर्वश्रेष्ठ फिल्म के रूप में उसे समीक्षक सारी जनता पसंद कर रही है यह फिल्म हर एक व्यक्ति को देखना इसलिए आवश्यक है कि आज तक हम ऐसी फिल्में देखते रहे जो कल्पना पर आधारित उसका कुछ रंग हमें पता नहीं लेकिन इस फिल्म के द्वारा हम अपने किरदारों को हम अपने स्वयं को इस किरदार के रूप में इस पात्र के रूप में हम देख सकते हैं आम इंसान किस प्रकार से जिंदगी जी लेता है और उसकी जिंदगी सार्थक कब बनती है उनके मन में एक चेतना एक नई उमंग किस प्रकार से भर दी जा सकती है इसका जीता जागता उदाहरण झुंड है विजय बारसे के व्यक्तित्व को अमिताभ बच्चन जी ने खुद ही बहुत ही मेहनती से बहुत ही श्रेष्ठतम किरदार के रूप में अपने आप को साबित कर दिया है नागराज मंजुले श्रेष्ठतम बहुत ही श्रेष्ठतम निर्देशक होने के नाते उन्होंने हिंदी जगत में अपना पहला कदम इस प्रकार से रखा है आने वाली सदी से हमेशा हमेशा के लिए याद रखेगी और हम उम्मीद करते हैं आने वाले दिनों में नागराज मंजुले इसी प्रकार की फिल्में जो सामाजिक वास्तविकता को लेकर समाज का दर्शन फुले शाहू आंबेडकर की विचारधारा को छत्रपति शिवाजी महाराज की विचारधारा को शाहू महाराज की विचारधारा को परिवर्तन वादी विचारधारा को सत्यवादी विचारधारा को इस प्रकार से फिल्मों के माध्यम से लोगों के सामने रखने का एक नया अंदाज जो उन्होंने पेश किया है उसे लोग बहुत ही पसंद कर रहे हैं इस फिल्म को ऑस्कर अवार्ड मिले अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में इस फिल्म का नामांकन हो इस प्रकार के हम आशा करते हैं सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ खलनायक का पुरस्कार इस फिल्म को जरूर मिलेगा इस प्रकार की हम उम्मीद करते हैं और झुंड की पूरी टीम को जिन्होंने अपना योगदान दिया है अंतिम आदमी तक जिन्होंने इस फिल्म को बनाने में अपना पूरा योगदान दिया है उन सभी के प्रति शुभकामना उनके प्रति मंगलकामनाएं हम प्रकट करते हैं
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