संघर्ष कहानी समीक्षा-डॉ संघप्रकाश दुड्डे
संघर्ष कहानी समीक्षा-डॉ संघप्रकाश दुड्डे
संघर्ष कहानी सुशीला टाकभौरे जी ने लिखी है इस कहानी में दलित जीवन का यथार्थ चित्रण उन्होंने दर्शकों के सामने रखने का प्रयास किया है यह कहानी हमें मजबूर करती है सोचने के लिए यह कहानी एक ऐसे यथार्थ को प्रकट करती है जिस यथार्थ को आज दुनिया देख रही है आज भी दलितों के साथ किस प्रकार का व्यवहार किया जाता है चाहे शिक्षा हो चाहे सामाजिक क्षेत्र हो चाहे अन्य क्षेत्र हो उसमें दलितों का जीवन आदिवासियों का जीवन किस प्रकार से प्रताड़ित किया जा रहा है इसका लेखा-जोखा संघर्ष कहानी के माध्यम से सुशीला टाकभौरे जी ने दुनिया के सामने रखने का प्रयास किया है यह कहानी एक छोटे लड़के की कहानी है जिसका नाम है शंकर शंकर बहुत ही शरारती करने वाला झगड़ालू लेकिन अपने आप में जिद्दी पराक्रमी होशियार लड़के के रूप में भी उसका व्यक्तित्व हमारे सामने उपस्थित होता है शंकर बहुत बड़ा आदमी बनना चाहता है लेकिन जातीयता के कारण छुआछूत के कारण उसका स्वप्ना जो है टूटने लगता है गांव में जातीयता का वातावरण है छुआछूत का वातावरण है जहां चला जाता है वहां पर विजय उससे छुआछूत की बदबू उसे दिखाई देती है गांव में विषमता का वातावरण है ऐसी हालत में उसकी नानी पारंपरिक रीति रिवाज के अनुसार गांव में काम करने के लिए चली जाती है और इसी मुद्दे को लेकर शंकर के दोस्त पाठशाला में उसका पीछा करते हैं देख शंकर तेरी नानी आ रही है देख शंकर तुम्हारी नानी इस इस प्रकार का काम कर रही है देख शंकर तुम्हारी नानी टोकरा लेकर आ रही है शंकर की नानी गांव में जाकर मेहनत मजदूरी तो करती है उसके बदले में गांव के लोग उसे बासी रोटी या दे देते हैं उसे लेकर वह घर आती है तो शंकर को यह पसंद नहीं है शंकर कोई अच्छा नहीं लगता की नानी गांव में जाकर रोटियां मांगे कुछ काम करें शंकर को लगता है कि हमें स्वाभिमान के अनुसार जीना चाहिए किसी भी प्रकार की गुलामगिरी का जीवन में नहीं जीना चाहिए इसी ख्याल में शंकर अपने परिवार के लोगों के साथ झगड़ा है मां बाप के साथ झगड़ा है नानी के साथ झगड़ा है और एक स्वाभिमान की जिंदगी चाहता है उसे एक बड़ा अफसर बनना है वह एक सपना लेकर जी रहा है अपने अध्यापकों के साथ भी साथ भी उसका व्यवहार ठीक होता है फिर भी स्कूल के बच्चे उसके साथ शरारती का जीवन जी लेते हैं मास्टर जी कई बार उसे मुर्गा बनाते हैं मारपीट उसके साथ भी होती है फिर भी शंकर किसी की बात नहीं मान लेता एक बार तो शंकर अपने दोस्तों के साथ इतनी मारपीट कर लेता है उसकी शिकायत हेड मास्टर तक चली जाती है इसका नतीजा यह होता है किचन कर को स्कूल के बाहर निकाल दिया जाता है तब शंकर के सामने अंधियारा दिखाई देता है संघर्ष तब उसके मन में उत्पन्न होता है उसे बड़ा आदमी बनना था शिक्षा के बगैर बड़ा आदमी बन नहीं सकता इसलिए शंकर के मन में एक चिंगारी पैदा हो सकती है और वह चिंगारी अन्याय के खिलाफ संघर्ष करना बाबा साहब अंबेडकर जी का कहना उसे याद आता है जुल्म से ज्यादा अन्याय अत्याचार सहन करने वाला सबसे बड़ा गुनहगार होता है यह उसे याद आता है और संकल्प कर लेता है संघर्ष करूंगा हाथ में कांटे लेकर लाठी लेकर स्कूल के बाहर खड़ा होता है और पुकारता है ललकार था कोई माई का लाल है तो बाहर आकर दिखा सारे लोग डर जाते हैं सारे बच्चे डर जाते हैं अध्यापक डर जाते हैं हेड मास्टर डर जाते हैं स्कूल में मीटिंग बुलाई जाती है और शंकर को फिर एक बार स्कूल में दाखिला दिया जाता है प्रवेश दिया जाता है तब जाकर शंकर की जय हो जाती है शंकर की जीत हो जाती है शंकर आगे जाकर अंक प्राप्त कर लेता है संघर्ष कहानी यही तो है अन्याय अत्याचार होने के बाद संघर्ष की बुलंद आवाज शंकर के माध्यम से सुशीला टाकभौरे जी ने एक नया पात्र इस कहानी के माध्यम से देने का प्रयास किया है शंकर केवल प्रतिनिधि के तौर पर यह किरदार है लेकिन हमारे समाज में ऐसे हजारों शंकर हमें दिखाई देते हैं जो अन्याय अत्याचार का शिकार बन कर सामाजिक गुलामगिरी की अवस्था को जी रहे हैं आज आवश्यकता है शंकर जैसे पात्र की जो अन्याय अत्याचार के खिलाफ संघर्ष करता है जो अपने हक के लिए न्याय के लिए लड़ता है उसके पूरे जीवन पर बाबा साहब आंबेडकर जी के जीवन चरित्र का प्रभाव है हेड मास्टर जी ने एक बार कहा था कि अन्याय अत्याचार हमें सहन नहीं करना चाहिए यह बाबा साहब की बातें हेड मास्टर जी से वह सुनता है तो उसे बहुत ही अच्छा लगता है अध्यापक भी उसके साथ बहुत ही अच्छा बर्ताव करते हैं लेकिन संघर्ष उसका जारी है संघर्ष एक बच्चे का संघर्ष पूरे समाज के लिए एक आदर्श बन जाता है
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