वाणी से कुशल कर्म करो -भन्ते महेंद्र रत्न

वाणी से कुशल कर्म करो -भन्ते महेंद्र रत्न
तथागत परमिता संघ  महाराष्ट्र द्वारा आयोजित धम्म देशना में भन्ते महेंद्र रत्न जी का  प्रवचन आयोजित किया गया था उस समय भंते जी धम्म देशना दे रहे थे आरंभ में रुपाली कांबळे ने पंचशील की याचना की तत्पश्चात भदन्त  महेंद्र रत्न जी ने  त्रिशरण पंचशील प्रदान किया भंते का परिचय मेघना पाटिल ने किया भंते जी को देशना के लिए आमंत्रित किया स्मिता मेश्राम जी ने इस समय भंते महेंद्र रत्न  जी ने कहा "कि मनुष्य को वाणी के द्वारा कुशल कर्म करना चाहिए हमेशा हमेशा के लिए वाणी से दुष्कर्म से बचना चाहिए अर्थात पंचशील का पालन मनुष्य जीवन के लिए अनिवार्य है प्राणी हिंसा से दूर रहना है, चोरी से दूर रहना है ,आनाचार से दूर रहना है ,झूठ से दूर रहना है, और नशा पान से दूर रहना है,/ इस प्रकार से पंचशील का पालन मनुष्य जीवन के लिए अनिवार्य अंग है जब तक हम पंचशील का पालन नहीं करेंगे तब तक हमें लाभ नहीं होगा जिस प्रकार से रास्ता है लेकिन उस रास्ते का उपयोग ही हम नहीं कर पाए तो रास्ता लाभदायक नहीं होगा रास्ते का उपयोग करना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है भगवान बुद्ध का मार्ग भी मनुष्य जाति के लिए हीतकारक है उसके लिए पंचशील का पालन करना अनिवार्य है तथागत भगवान बुद्ध ने पंचशील के साथ-साथ आर्य अष्टांगिक का मार्ग भी दिया है  जो मनुष्य जाति के लिए कल्याण के लिए हित कारक है जीवन बड़ा अनमोल है जीवन की आपाधापी में हम बहुत सारी मिथ्या दृष्टि को लेकर अलग-अलग बकवास में व्यर्थ बातों में हम अपना समय गवाते हैं जो कि यह हमारे लिए बहुत ही बड़ा हानिकारक है इसलिए हमें हमारा समय सत्य धर्म के लिए धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए लगाना बहुत ही आवश्यक है जीवन नश्वर है क्षणभंगुर है इसे जो कोई इसे जो कोई भी समझता है उसके जीवन में एक नया प्रकार एक नई रोशनी आ जाती है इसलिए हमें ज्ञान की रोशनी सदा सर्वदा के लिए प्रज्वलित करना बहुत ही आवश्यक है अंधविश्वास से दूर होकर हमें सम्यक दृष्टि अपनाना बहुत ही आवश्यक है मनुष्य आपसी झगड़े में अब सी उलझन में द्वेष आंबा क्रोध अभिमान गर्व में इतना डूब जाता है पद प्रतिष्ठा पैसा संपत्ति अमीरी इसी को ही सब कुछ मान लेता है लेकिन यह सब कुछ नहीं है यह वह व्यक्ति हमेशा हमेशा के लिए जीवन की नैया पार करता है जीवन उस व्यक्ति को समझ में आता है जो धर्म का आचरण करते करते स्वयं आनंदित होता है औरों को भी आनंदित करता है जीवन की इस आपाधापी को समझने के लिए जीवन के हर एक क्षण का उपयोग हमें करना बहुत ही आवश्यक है हमें वर्तमान में जीना चाहिए आज जो भी कुछ घटित हो रहा है उसके बारे में हमें सोचना चाहिए जो है उसके बारे में सोचना चाहिए वर्तमान में जो आदमी जी लेता है उसे धमक का मार्ग अपने आप आगे ले जाता है जो नहीं है उसके पीछे भागना मिथ्या दृष्टि है इसलिए परम कल्याण का मार्ग भगवान बुद्ध ने दिया है इस मार्ग का अनुसरण करना हर मनुष्य का हर व्यक्ति का कर्तव्य बन जाता है हमें दूसरों की निंदा न करते हुए मैं क्या कर रहा हूं मुझे धम्म के पद पर जाना है धर्म का अनुसरण मुझे करना है मुझे निर्वाण का साक्षात्कार करना है मुझे आगे बढ़ना है मुझे धर्म के पथ पर चलना है मैं और मेरे साथी एक साथ मिलकर धम्म की जीवन शैली को अपनाएंगे इस प्रकार का संकल्प हमें करना बहुत ही आवश्यक है भंते जी ने प्रतीत्यसमुत्पाद उदाहरण देकर हमारे जीवन की इस कड़ी को भी समझाने का प्रयास किया है अविज्या पच्याया सनकारा सङ्कर  पचाया भी आनंद विहार पच्याचाया नामरूप नाम और रूप पचाया सड़ायआयतन फहस्स पच्च्यास्या वेदना वेदना  पच्छाया जाति जरा मरण शोक पर देव दुख दो मनुष्य पाया संभव बनती इस कड़ी को जो कोई भी जानता है वह व्यक्ति अपने आप को जान लेता है जीवन की इस कड़ी को जान लेता है जीवन के सत्य मार्ग को जान लेता है जीवन उसे समझ में आता है जो जी लेता है जो व्यक्ति पुनर्जन्म के बारे में सोचता है जो व्यक्ति बार-बार जन्म लेने की आशा करता है उसे कुछ प्राप्त होता नहीं पुनर्जन्म पुनर भव हर व्यक्ति के कुछ चित्र की अवस्था का होता है इसे भी हमें जान लेना बहुत ही आवश्यक है पुनर्जन्म आत्मा का नहीं होता चार महाभूत एक होकर फिर उसका निर्माण होता है उसे ही पुनर भव कहा गया है चार महा भूतों का फिर से मिलन हो ना या एकत्रित होना यही मनुष्य का जन्म है इसे हमें जान लेना बहुत आवश्यक है इस बात की ओर भी हमें ध्यान देना आवश्यक है बहुत सारे लोग पुनर्जन्म को लेकर नित्या दृष्टि में अटक गए हैं उसमें फंस गए हैं उन्हें उससे बाहर आना बहुत ही आवश्यक है हम जिस जीवन में है उस जीवन को समझ लेना उस जीवन की सार्थकता को समझ लेना बहुत ही आवश्यक है जब तक हम उसे नहीं समझेंगे तब तक हम आगे नहीं बढ़ पाते भंते जी ने मनुष्य के जीवन की छोटी-मोटी घटनाओं को उदाहरण के रूप में अलग-अलग उदाहरण देकर उसे समझाने का प्रयास किया तब धम्मदेशना  बहुत ही महत्वपूर्ण रही सीधे सरल शब्दों में धम्मकी देशना देकर उपासक उपासिका इसका आयोजन तथागत परमिता संघ के द्वारा किया गया प्रणाली बागड़े जीने बड़ी मेहनत के साथ इसका सफल आयोजन किया अंत में भंते जी ने प्रश्नों के उत्तर बहुत ही सीधे सरल अर्थों में देखकर धर्म के प्रति अपनी रूचि दिखाएं और सरल सीधे शब्दों में अपने जवाब देती है इससे बहुत सारे लोगों को लाभ हुआ पूरे भारतवर्ष से बौद्ध भिक्षु अन्य मान्यवर गन बड़ी संख्या में धम्मा देशना सुन रहे थे धम्मा देशना का लाभ ले रहे थे

Comments

Popular posts from this blog

10 New criteria of NAAC and its specialties - Dr. Sangprakash Dudde, Sangameshwar College Solapur

जन संचार की परिभाषा ,स्वरूप,-डॉ संघप्रकाश दुड्डेहिंदी विभाग प्रमुख,संगमेश्वर कॉलेज सोलापुर (मायनर हिंदी)

काल के आधार पर वाक्य के प्रकार स्पष्ट कीजिए?