श्रद्धा युक्त भाव से दिया दान सर्वश्रेष्ठ- भिक्खु ग्यानरक्षित

श्रद्धा युक्त भाव से दिया दान सर्वश्रेष्ठ- भिक्खु  ग्यानरक्षित तथागत परमिता संघ महाराष्ट्र द्वारा आयोजित प्रवचन मालिका में परमिता किस प्रकार से पुष्ट की जाए इस विषय पर महत्वपूर्ण दम देशना आज के सत्र में दी गई पूजा भदंत ज्ञान रक्षित जी ने इस प्रवचन में प्रवचन में उन्होंने कहा कि दया से दिया हुआ दान से भी बढ़कर श्रद्धा युक्त भाव से दिया गया दान सबसे महान होता है दान देते समय देने वाला और लेने वाला दोनों के मन में भी श्रद्धा भाव होना बहुत ही महत्वपूर्ण देने वाला श्रद्धा से देना चाहिए लेने वाला करुणा भाव से लेना चाहिए तभी दान सार्थक हो सकता है दान में किसी भी प्रकार की अहंकार की भावना गर्व की भावना अभिमान की भावना नहीं होनी चाहिए दान देते समय मन में शांत भाव निर्मल भाव करुणा का भाव होना बहुत ही आवश्यक होता है दान देने के बाद मनुष्य का मन करुणा से शांति से भर जाता है दान देने वाला त्याग भावना से अगर दान देता है तो उसमें आनागामी  आनाआगामी फल आनाआगामी मार्ग , अर्हत  पद की प्राप्ति हो सकती है अगर हमारे मन में किसी भी व्यक्ति के प्रति गुना का भाव है तो हमारा मन बेचैन हो सकता है अशांत हो सकता है इसलिए* की भावना हमारे मन में होना बहुत ही आवश्यक होता है दान देते समय मनुष्य का मन हमेशा हमेशा के लिए मंगल भाव होना बहुत ही आवश्यक होता है बाबा साहब आंबेडकर  जी ने भी बोधिसत्व की अवस्था से गुजरते हुए जो अधिकार दिए हैं वह परिपूर्ण पालन हमें दिखाई देता है 22 प्रतिज्ञा में भी बाबा साहब आंंबेडकर ने 10 परमिता का पालन करना अनिवार्य है इस प्रकार की प्रतिज्ञा हमें दी है इसलिए हमारा फर्ज बनता है कि 10 पारमिता  का पालन अंतिम सांस तक उसका पालन होना बहुत ही आवश्यक है भन्ते  जी ने यह भी बात कही कि अगर हम ध्यान करते हैं साधना करते हैं विपश्यना करते हैं तो हमारे मन में जो अकुशल कर्म होते हैं वह अपने आप दूर हो जाते हैं कुशल कर्म करना है पारमिता है उन्होंने परमिता संगति सराहना की तथागत परमिता संघ बाबा साहब का सपना आगे ले जाने के लिए प्रयास कर रहा है इस बात पर उन्होंने खुशी जताई बाबा साहब आंंबेडकर का कारवां आगे ले जाने के लिए हर एक व्यक्ति को धर्म का पालन करना बहुत ही आवश्यक है बुद्ध गुणों का स्मरण करना बुद्ध गुणों के आदर्शों की पूजा करना इसलिए धम्मा पालन गाता हो या धम्मा पद की गाथा हो उसका पालन करना हमें बहुत ही आवश्यक होता है मनो पुग्मागंगम्मा धम्मा मनो सेठा मनौमया मनसाची पदु ठेन भासती  वा करो  ती वा  ततो न  दुख मन वेती चक्क न वह तो पदम सभी प्रवृत्ति प्रवृत्ति का उमक उगमस्थान मनुष्य का मन है जिस प्रकार से बैल चलते समय उसके पीछे गाड़ी का चक्का उसके पैर के पीछे गाड़ी का चक्का चला रहता है ठीक उसी प्रकार जब आदमी पूरे मन से बोलता है पूरे मन से काम करता है दुख उसका पीछा वैसा ही करता है जैसे पैरों के पीछे गाड़ी का चक्का इसलिए मनुष्य को अकुशल कर्म  नहीं करनी चाहिए हमेशा हमेशा के लिए सबका मंगल हो सबका कल्याण हो सारे प्राणी सुखी हो सबका भला हो इसी प्रकार का विचार हर एक व्यक्ति को करना बहुत ही आवश्यक है एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के पास जब आता है तो उसे यही विचार करना बहुत ही आवश्यक हो जाता है धम्मा हमें शांति सिखाता है करुणा से खाता है नए स्कर्म परमिता सिखाता है शांति पार्क नाशिक आता है अधिष्ठान परमिता सिखाता है शिल् पारमिता सिखाता है सत्य परमिता सिखाता है इसलिए मनुष्य के निब्बाण परम् धन   इस प्रकार की अवस्था उसे प्राप्त करने के लिए इस जीवन की सार्थकता को समझने के लिए उसे आगे बढ़ना बहुत ही आवश्यक है इस कार्यक्रम में आरंभ में पूज्य भंते को पंचशील की याचना प्राध्यापक डॉ संघप्रकाश दुड्डे  सोलापुर इन्होंने की धम्मापाल अनगाथा भी अंत में इन्होंने ली  इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए प्रणाली बागडडे नागपुर इन्होंने परिश्रम किया तथागत परमिता संघ के अन्य सदस्य बहुत संख्या में उपस्थित थे इस समारोह का सूत्रसंचालन मेघना पाटील मुंबई इन्होंने किया स्मिता मेश्राम तथा उनकी सारी उपासक  उपसिकाये, भदंत डॉ खेमधम्मो महाथेरों इस समारोह में उपस्थित थे/

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