अनुसंधान में मन वचन और कर्म के अनुसार शोध कार्य हो डॉ नरेश सिहाग -हरियाणा ,राजस्थान

अनुसंधान में मन वचन और कर्म के अनुसार शोध कार्य हो डॉ नरेश सिहाग

संगमेश्वर कॉलेज सोलापुर स्वायत्तता हिंदी विभाग तथा हिंदी विकास मंच सोलापुर आयोजित राष्ट्रीय व्याख्यानमाला में नवम पुष्प प्रकट करते समय प्रमुख वक्ता डॉ नरेश सिहाग ने हरियाणा से अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहीं की अनुसंधान करते समय मार्गदर्शक और शोधार्थी के बीच में तारतम में होना बहुत ही आवश्यक है शोधार्थी को विषय चयन करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इस विषय पर पहले कभी काम हुआ है या नहीं इसे खोज करना चाहिए और 80% साहित्य उपलब्ध होने के बाद ही विषय चयन करने के बाद मार्गदर्शक के साथ सलाह मशवरा करते हुए सिनॉप्सिस करना बहुत ही आवश्यक होता है साहित्य के द्वारा अपना काम होने के कारण जब तक साहित्य का उपलब्ध तब तक काम आगे बढ़ने वाला नहीं है शोधार्थी को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आपको जिस विषय में रुचि है जो विषय आपको अच्छा लगता है जिस विषय में आप काम करने के लिए बहुत ही रुचि रखते हो उसी विषय को शोध के लिए चुनना आवश्यक होता है अगर मार्गदर्शक के द्वारा दिया गया विषय अगर शोधार्थी लेता है तो अच्छे ढंग से काम नहीं कर पाएगा अच्छे ढंग का मौलिक कार्य अगर होना है तो मार्गदर्शक और शोधार्थी के बीच में तारतम्य का होना बहुत ही आवश्यक होता है शोध के लिए संदर्भ ग्रंथों का होना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है प्राचीन ग्रंथ हो आधुनिक ग्रंथ हो चाहे किसी प्रकार के भी ग्रंथ हो अगर आपके पास है तो ही काम आगे बढ़ सकता है 10% काम आपके मित्रों के साथ विद्वानों के साथ सहारा सलाह मशवरा करते हुए आप उस काम को अंजाम दे सकते हो नहीं तो यह काम आगे नहीं बढ़ सकता इसलिए शोध कार्य करना एक महत्वपूर्ण कार्य होता है शोध कार्य के द्वारा ही हम एक नया अविष्कार एक नया सुरजन हम समाज को दे सकते हैं समाज के लिए उपयोगी हो इस प्रकार का हम करते हैं तो उसका लाभ हमें भी मिलता है और समाज को भी मिलता है अनुसंधान के कारण नया अविष्कार का होना महत्वपूर्ण होता है सामाजिक बदलाव धार्मिक बदलाव चिंतन मनन यह महत्वपूर्ण होता है शोध कार्य करते समय आपके पास अनुसंधान की दृष्टि हो ना लेखन की कला को जानना भाषा शैली को देखना महत्वपूर्ण होता है संदर्भ ग्रंथों की सूची यह भी महत्वपूर्ण होता है किसी साहित्यकार पर आप अनुसंधान काम कर रहे हो तो उस साहित्यकार से साक्षात्कार कर लेना बहुत ही आवश्यक होता है उनके ग्रंथ अगर हमें नहीं मिल पाते तो अनुसंधान का कार्य सफल नहीं हो सकता इसलिए यह काम करते समय सहजता के साथ मन पूर्वक धैर्य पूर्वक यह काम होना बहुत ही आवश्यक है हमारे पास लगन चाहिए निष्ठा चाहिए शोध प्रक्रिया की एक सिद्धांत की दृष्टि चाहिए अनुसंधान में मार्गदर्शक और शोधकर्ता के बीच में एक अच्छा मिलन होना एक प्रकार का विचारों का आदान-प्रदान होना बहुत ही आवश्यक होता है अगर एक दूसरे के प्रति भेदभाव पूर्ण वातावरण हो एक दूसरे के प्रति तो अनुसंधान का काम पूरा नहीं हो सकता इसलिए मार्गदर्शक की भी जिम्मेदारी बढ़ जाती है शोधार्थी को उसके मन के अनुसार विषय का चयन करना जरूरी होता है इसलिए अनुसंधान की प्रक्रिया शोध की प्रक्रिया में हमें ध्यान देना जरूरी है कि मार्गदर्शक और शोधार्थी एक मित्र वक़्त होना मित्र जैसा व्यवहार करना जाति पाति का भेदभाव दूर करना अगर इस प्रकार का भेदभाव हो तो शोध कार्य नहीं हो सकता शोधार्थी को भी ली नेता के साथ अपने मार्गदर्शक के पास जाकर अपनी अपनी ज्ञान की बातें मार्गदर्शक को बता कर जांच कर लेना बहुत ही आवश्यक होता है इसलिए हमें यह ध्यान देना जरूरी है इस शोध में पुनरावृत्ति ना हो बार-बार एक ही बात की रत्नों हो इसे भी ध्यान देना बहुत ही आवश्यक है आपकी सहेली प्रभावी हो मधुरता पूर्ण हो इसे भी जानना समझना बहुत ही आवश्यक होता है इस प्रकार का अनुसंधान आत्मक व्याख्यान डॉक्टर नरेश कुमार सिहाग जी ने दिया इस व्याख्यान से पूरे भारतवर्ष से अलग-अलग विश्वविद्यालयों से छात्र-छात्राएं शोधकर्ता प्राध्यापक गण उपस्थित थे सबसे पहले हिंदी विभाग प्रमुख डॉक्टर संघ प्रकाश दुड्डे  ने वक्ता का परिचय और स्वागत किया सूत्रसंचालन शिव जागीरदार ने किया आभार प्रकट अन डॉक्टर दरयप्पा बताले ने किया इस समय डॉ अरुण कुमार इंगले डॉ अशोक बाजपेई डॉक्टर दादासाहेब खांडेकर डॉ रियाज खान भारत के तमाम विद्वत जन उपस्थित थे

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  1. शानदार प्रस्तुति

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  2. शोधकर्ताओं के लिए लाभदायक

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  3. शानदार प्रस्तुति

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