बिरादरी बाहर कहानी की समीक्षा -डॉ संघप्रकाश दुड्डे
बिरादरी बाहर कहानी की समीक्षा राजेंद्र यादव नई कहानी के सशक्त हस्ताक्षर है वह सामाजिक संचेतना के कहानीकार है साथ ही प्रगतिशील कालावधी रचनाकार हैं
अभिमन्यु की हत्या आत्महत्या, किनारे से किनारे तक, खेल खिलौने, टूटना ,अपने पार, जहां लक्ष्मी कैद है ,मेरी प्रिय कहानियां ,राजेंद्र यादव की श्रेष्ठ कहानियां ,रेखाएं लहरें और परछाइयां ,देवताओं की मूर्तियां, छोटे-छोटे ताजमहल, प्रतिक्षा ,आदि राजेंद्र यादव प्रसिद्ध कहानी संग्रह हैं/
राजेंद्र यादव की कहानियों में भिन्न-भिन्न वर्गों का चित्रण पाया जाता है तथा के अधिकतर कहानियों में इन्होंने मध्यम वर्ग को विषय बनाया है और मध्यम वर्ग की सामाजिक तथा धार्मिक रूढ़ियों का चित्रण किया है नारी की दयनीय ता से अधिक प्रभावित है अर्थ की चक्की पीसने वाले किसान मजदूर धर्म के बोझ से दबे अज्ञानी प्रेमचंद कुंठा से ग्रस्त स्त्री-पुरुष मुक्त यौनाचार को स्वीकृति देने वाले उच्च वर्गीय संभ्रांत लोग उनकी कहानियों में स्थान पा चुके हैं इसलिए इनकी कहानियों में निम्न मध्यमवर्गीय और उच्च वर्गीय तीनों वर्गों के पात्र कार्यरत है तथा उनमें मानव सुलभ गुण दोष भी पाए जाते हैं राजेंद्र यादव की कहानियों में कथ्य और कथन दोनों की नवीनता देखने को मिलती है उनकी भाषा शैली सशक्त सारगर्भित और प्रवाह पूर्ण है नई कहानी को विशेष अर्थ बता प्राप्त करा देने के साथ-साथ राजेंद्र यादव ने एक सजग साहित्यकार की हैसियत से कहानियों के माध्यम से नवीन जीवन दृष्टि की स्थापना करने का प्रयास किया है उन्होंने ने सामाजिक तत्व और मानव मानव मूल्यों मूल्यों को विश्लेषक और मुखरित किया है /
बिरादरी बाहर आज के समय में तीव्र रूप धारण करने वाले नई पुरानी पीढ़ी के शाश्वत द्वंद की कहानी है समय और सामाजिक स्थितियां हमेशा नई-नई बिरादरी या बना देती है जिन के संदर्भ में पुराने वर्ग और जीवन मूल्य बदल जाते हैं बिना सीधे संघर्ष में आते हुए भी यह वर्ग बिरादरी बाहर होता चला जाता है इस वास्तविकता की अनुभूति क्रमशः अस्तित्व की अनुभूति का पर्याय हो जाती है आज बिरादरी या धर्म समाज या प्रांतों की एकता से नहीं एक समय में रहने वाले एक युग बोध से बनती है शेष सब कुछ बिरादरी से अपने आप निकल जाता है यह वातावरण या प्रवेश आज कहानी में नायक का स्थान ले रहा है पात्र तो उसे प्रस्तुत करने जी ने और भोगने वाले क्षण ही सामने रख सकते हैं संपादक की हैसियत से अपनी ही कहानी पर राजेंद्र यादव की यह टिप्पणी बिल्कुल सार्थक है
बिरादरी बाहर कहानी का प्रमुख पात्र पारस बाबू एक बड़े परिवार का मुखिया है और पुराने विचारों का समर्थक है प्रस्तुत कहानी इसी पुरुष की आंतरिक बड़बड़ आहट का सुंदर नमूना है तथा जिद्दी पारस बाबू में एक स्नेहा संचालित कोमल पिता भी छुपा हुआ है बाहरी कठोरता और भीतरी कोमलता के द्वंद्व को राजेंद्र यादव ने सफलता के सफलता से शब्द बंद किया है एक और पारस बाबू अपनी पुत्री को मालती और जमाई से काफी चढ़ते हैं तो दूसरी दूसरी ओर पारस बाबू अपनी पुत्री को मालती और जमाई से काफी चढ़ते हैं तो दूसरी ओर उनके बिना रह भी नहीं पाते एक और वह उनसे बचकर रहते हैं तो दूसरी ओर प्रतिक्षण उन्हीं की चेतना से ग्रस्त रहते हैं उन्हें अपनी बिरादरी से बाहर होने का अभाव महसूस होता है /
बिरादरी बाहर कहानी में जो बयान किया है वह सब कुछ पारस बाबू के मन में ही घटित होता है पारस बाबू जो कहना चाहते हैं वह कहते कहते रह जाते हैं इस प्रकार इस कहानी में दो विचारधाराओं के संघर्ष से पीड़ित बेबस व्यक्ति का मनोदशा का मनोवैज्ञानिक चित्रण किया है विशेष ढंग से प्रस्तुत की हुई यह कहानी कहानी क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान पा चुकी है राजेंद्र यादव ने मानव जीवन की अनेक विडंबना विशेषताओं तथा विद्रूपता ओं का चित्रण बिरादरी बाहर कहानी में किया है बिरादरी बाहर में रिटायर्ड पिता की इच्छा के विरुद्ध बेटी ने अंतरजातीय विवाह कर लिया है अपने पति के साथ 2 साल बाद लौटी है तो पूरा परिवार उसकी आवभगत में जुड़ गया है और अपने ही घर में उपेक्षित और अलग-थलग पड़ गए पिता खुशी के माहौल में आई स्वर्ग सा करते हैं मध्यम वर्गीय पुरानी और नई पीढ़ी का संघर्ष हमें बिरादरी बाहर में दिखाई देता है पारस बाबू मालती का अंतरजातीय विवाह नहीं सह पाते अंतरजातीय विवाह से भी अधिक परेशानी उन्हें यह है कि लड़का निम्न जाति का है कनिष्ठ जाति का लड़का उनके लिए सबसे बड़ी समस्या है बिरादरी का ही लड़का होता तो वे इतने दुखी नहीं होते परिवार का प्रत्येक सदस्य मालती के विवाह को स्वीकार कर लेता है इसलिए पारस बाबू सब से हटकर अकेलापन महसूस करते हैं बिरादरी बाहर में पारस बाबू के विचार प्राचीन मान्यता अनूठी परंपरा जाति व्यवस्था को मानने वाले हैं जाति व्यवस्था से जुड़े उनके संस्कार बदलते नहीं है पारस बाबू के माध्यम से हमारे समाज में अब भी हमारे वही पुराने जातीय संस्कार कुंडली मारकर बैठे हैं मालती आधुनिक विचारधारा वाली लड़की है जाति बिरादरी के बाहर जाकर शादी करना प्रगतिशील ताकि निशानी मानती है राजेंद्र यादव द्वारा लिखित बिरादरी बाहर कहानी 60 वर्ष पूर्व बदली हुई परिस्थितियों में भी उतनी ही सामाजिक प्रगतिशील और प्रासंगिक कहानी लगती है राजेंद्र यादव जी अपने अन्य कहानियों की तरह इस कहानी में अपने अनुभव को चित्रित करते हैं एक ऐसा अनुभव सत्य जो किसी खास व्यक्ति से शुरू होकर अंततः पूरे समाज का हो जाता है व्यक्ति सत्य बनाम समाज सत्य के विचार और उनकी टकराए से अपनी उपजी चिंगारियां जिसमें आधुनिक प्रगतिशील ताकि ऊर्जा भी शामिल है इस कहानी की बहुत बड़ी विशेषता है दूसरों के बहाने अपने भीतर और अपने बहाने दूसरों के भीतर जाते हुए जातीय नैतिकता और मूल्यों की टक्कर आहट की जो तस्वीर यह कहानी स्पष्ट करती है जैसे ऊपर रोशनी है नीचे अंधेरे में खड़े होकर ऊपर देखेंगे तो उन्हें कोई देखें थोड़े ही पाएगा पेशा कार के पास बैठे बैठे उन्हें अफसोस हो रहा था एक बार एक आदमी को देखें तो सही कि आखिर मालती ने इसमें क्या पाया इस प्रसंग में बताना जरूरी है की सीढ़ियों से ताक झांक करने वाले यह सज्जन वही पारस बाबू है जिन्हें कभी बेटी मालती के अंतरजातीय विवाह के फैसले का जान सुनकर दिल का दौरा पड़ गया था और यह नया आदमी और कोई नहीं बल्कि उनका वही विजातीय दामाद है जिसे मालती ने अपनी इच्छा से शादी कर ली थी पारस बाबू का नीचे अंधेरे में खड़े होकर अपने दामाद को यू देखने की कोशिश अपने प्रति कार्यों में भीतर के बहाने बाहर और बाहर के भीतर देखने का ही उपक्रम है बिरादरी बाहर कहानी में यह बताना जरूरी है कि पारस बाबू यदि मालती के निर्णय के विरुद्ध है तो उनके पीछे कोई तर्क या विवेक न होकर लोग क्या कहेंगे की भावनाएं लोग और समाज में व्याप्त रूढ़ियों और तथाकथित इज्जत की चिंता में ऐसे भूल जा रहे हैं कि वे उन स्थितियों की मन ही मन कल्पना करते हैं जब वे बाजार जा रहे हैं और लोग एक दूसरे को कोहनी मारते हुए उन पर कप्ति फस रहे हैं कि इन्हीं पारस बाबू की बेटी ने गैर जाति के लड़के से शादी कर ली है सामाजिक प्रतिष्ठा के चले जाने का यह है उन पर इस कदर हावी है कि वे खुद तो शादी में नहीं शामिल होते और अपनी पत्नी को भी जाने नहीं देते इस कहानी में एक सामाजिक द्वंद एक सामाजिक सच्चाई जाति व्यवस्था के प्रति आज भी लोगों के मन में किस प्रकार की व्यवस्था है अपने ही जाति में अपने ही धर्म में अपने ही परिवार में अपने ही सांप्रदायिकता में जड़े रखने की प्रवृत्ति आज समाज में किस प्रकार से दिखाई दे रही है यह कहानी उस को बयान करती है पारस बाबू के माध्यम से आज हमारे समाज में कई ऐसे लोग दिखाई देंगे जो जाति व्यवस्था की जड़ को मजबूत करना चाहते हैं यह कहानी जाति व्यवस्था को मजबूत न करते हुए जाति वेब स्थान को तोड़ने में मदद करती है जैसे कि पारस बाबू की लड़की अंतरजातीय विवाह करके इस व्यवस्था को तोड़ने का प्रयास करती है इस महीने में यह कहानी दो समाज को जोड़ने वाली कहानी मानी जाती है श्रेष्ठतम कहानी मानी जाती है इस कहानी में राजेंद्र यादव को बड़ी ही सफलता प्राप्त हो गई है
डॉ संघप्रकाश दुड्डे
संगमेश्वर महाविद्यालय
हिंदी विभाग प्रमुख सोलापुर
Sarasha
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