गूँगे कहानी की समीक्षा -डॉ संघप्रकाश दुड्डे

गूंगे कहानी की समीक्षा गूंगे कहानी पूरी कहानी में  किशोर के माध्यम से शोषित पीड़ित मानव की अवस्था का चित्रण लेखक रागेव राघव ने बहुत ही अच्छे ढंग से करने का प्रयास किया है ऐसे विकलांगों के प्रति व्याप्त संवेदनहीनता को रेखांकित करने का प्रयास गूंगे कहानी में करने का प्रयास किया है ऐसे व्यक्तियों को जो देखते सुनते हुए भी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर पाते उन्हें गूंगे कहते हैं और और बाहर कहां गया है इसीलिए गूंगे कहानी का शीर्षक जो है पूर्णतया सार्थक लगता है कहानी का प्रमुख पात्र गूंगा किशोर है वह जन्म से बहरा होने के कारण गूंगा है गूंगा बहुत मेहनती एवं स्वाभिमानी है गूंगा किशोर तीव्र बुद्धिमान है वह हाथ के इशारे से बताता है कि जब वह छोटा था उसकी मां उसे छोड़कर चली गई थी क्योंकि उसका बाप मर गया था वह यह भी बताता है कि वह भीख नहीं लेता मेहनत का खाता है गूंगा गला खोल कर दिखाता है कि बचपन में गला साफ करने की कोशिश में किसी ने उसका का कल काट दिया चमेली ने पहली बार का कल के महत्व को अनुभव किया जो कि उसको महसूस हुआ कि किशोर के गले को किसी ने काट दिया है चमेली बहुत भावुक महिला थी उसने चार रुपए और खाने पर गूंगे को नौकर रख लिया था पड़ोसन सुशीला ने उसे सावधान किया कि वह बाद में पछताएगी उसने फूफा के बारे में बताया कि वे उसे बहुत मारते थे अब वह वापस नहीं जाना चाहता वे चाहते थे कि गूंगा पल्लेदारी करके पैसा कमा कर उन्हें दे एक दिन गूंगा भाग गया सबके खाना खा चुकने के पश्चात गूंगे ने आकर इशारे से खाना मांगा चमेली ने गूंगे से रोटी या उसके आगे फेंक दें पहले तो गूंगे ने गुस्से में रोटी छुई तक नहीं पर फिर न जाने क्या सोचकर उसने रूठिया उठाकर खाली फिर तो अक्सर गूंगा कभी-कभी भाग जाता था एक बार चमेली ने पुत्र बसंता ने कसकर गूंगी को थप्पड़ जड़ दिए का हाथ उठा फिर न जाने क्या सोचकर रुक गया उसकी आंखों में पानी भर आया और वह रोने लगा चमेली के आने पर बसंता बताता है कि गूंगा उसे मारना चाहता था गूंगा सुन नहीं सकता पर चमेली की भाव से वह सब कुछ समझ जाता था चमेली ने गूंगे को मारने के लिए हाथ उठाया तो गूंगे ने उसका हाथ पकड़ लिया चमेली को लगा जैसे उसके पुत्र में पुत्र ने उसका हाथ पकड़ लिया हो उसने गुना से अपना हाथ छुड़ा लिया उसकी सोच विचार से उसका बेटा गूंगा होता तो वह भी ऐसे ही कष्ट उठा था इस प्रकार की विचारधारा उसके मन में आए गूंगे के हाथ पकड़ने से चमेली को उसके शारीरिक बल का अंदाजा हुआ कि गूंगा बसंता से कहीं आता अधिक ताकतवर है परंतु फिर भी उसने अपना हाथ बसंता पर नहीं चलाया था इसीलिए की बसंता बसंता है गूंगा गूंगा है किंतु पुत्र भी ममता ने पुत्र की ममता ने इस विषय पर चादर डाल देते एक बार गुना से विक्षुब्ध चमेली ने गूंगी से कहा कि ोरे तू ने चोरी की है गूंगा चुप हो गया चमेली ने हाथ पकड़कर द्वार से निकल जाने को कहा गूंगे की समझ में कुछ नहीं आ रहा था चमेली उस पर खूब चिल्लाए उसे बहुत बुरा भला कहा लेकिन जैसे मंदिर की मूर्ति कोई उत्तर नहीं देती वैसे ही उसने भी कुछ नहीं कहा उसे केवल इतना ही समझ में आया की मालकिन नाराज है और उसे घर से निकल जाने को कह रही है उसे इस बात पर हैरानी और अविश्वास हो रहा था कि अंततः चमेली ने उसे हाथ पकड़कर दरवाजे से बाहर धकेल दिया करीब 1 घंटे घंटे बाद शकुंतला और बसंता यह कह कर चिल्ला उठे अम्मा अम्मा चमेली ने देखा कि गूंगा खून से भीगा था उसका सिर फूट गया था वह एक सड़क के पार लड़कों से पीटकर आया था क्योंकि वह गूंगा होने के कारण उनसे दबना नहीं चाहता था दरवाजे की दहलीज पर सिर रखकर वह कुत्ते की तरह चिल्ला रहा था एमएलए चुपचाप देखती रही चमेली सोचती रही कि आज के दिन ऐसा कौन है जो गूंगा नहीं है गूंगा भी स्नेहा चाहता है समझना समानता चाहता है लेकिन गूंगे की ओर कोई ध्यान नहीं देता इस कहानी के माध्यम से गूंगे की कहानी के माध्यम से हमारे सामने रागेव राघव ने एक सामाजिक वास्तविक दर्शन हमारे सामने रखने का प्रयास किया है किशोर एक गूंगा है लेकिन भीकारा नहीं भिखारी नहीं बलवान है स्वाभिमानी है वह अपना पक्ष रखने के लिए समर्थ है वह मार खाता है लेकिन चुपचाप बैठा है मजबूर है विवश अनाथ है इसलिए वह चुपचाप बैठता है घर का काम करता है जो कुछ भी कहता है वह सारी जिम्मेदारी पूरी कर देता है फिर भी उसके साथ अन्याय किया जाता है समानता का व्यवहार उसके साथ नहीं किया जाता इस बात को राघव राघव ने हमारे सामने रखने का प्रयास किया है बहुत ही श्रेष्ठतम कहानी गूंगे के माध्यम से हमारे सामने रखने का प्रयास किया है आज समाज में हर कोई गूंगा है अन्य अत्याचार होते हुए देखकर भी कोई किसी के ऊपर अन्याय अत्याचार का मुकाबला करने के लिए राजी नहीं होता संघर्ष नहीं करता हर जगह पर हर गली में हर मोड़ पर नारी पर अत्याचार हो रहे बच्चों पर अत्याचार हो रहे बूढ़े पर अत्याचार हो रहे लेकिन सारे लोग गूंगे की तरह देखते रहे हैं यह अन्याय कब तक चलता रहेगा मानवता इससे नष्ट हो रही है हमारे समाज में इस प्रकार की अन्याय अत्याचार की भावना अगर बढ़ जाएगी तो इंसान इंसान नहीं रह जाएगा इंसानियत के ऊपर का विश्वास टूट जाएगा इस प्रकार का भाव इस कहानी से हमें प्राप्त होता है/

, डॉ संघ प्रकाश दुड्डे 
संगमेश्वर महाविद्यालय 
हिंदी विभाग प्रमुख सोलापुर

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