बुद्ध की करुणा
*जब बुद्ध ने महामारी में रोगी साधु की सेवा की...*
गांधार देश में एक बार भयंकर बीमारी फैल गई. नगर से दूर कुटिया में एक ब्राह्मण वृद्ध साधु बीमारी में काफी कमजोर हो गया. कोई देखभाल करने वाला नहीं था. शरीर से भारी दुर्गंध आ रही थी. वहां से गुजरने वाले भी उसकी सहायता नहीं करते थे.
जब तथागत बुद्ध को मालूम हुआ तो वे अपने भिक्षुओं के दल के साथ जरूरी बर्तन, वस्त्र,गर्म पानी ,जड़ी बूटियों की औषधि आदि लेकर वहां पहुंचें. कुटिया में दुर्गंध के कारण दूसरे भिक्षु भी पास नहीं जा रहे थे लेकिन गौतम बुद्ध ने अपने हाथों से उस साधु के शरीर को धोया और उपचार कर साफ वस्त्र पहनाए.
उस समय वह स्थान अलौकिक प्रकाश से भर गया. तुरंत राजा, उसके मंत्री और देव पुरुष सभी वहां आ पहुंचे और बुद्ध का वंदन किया.
उन्होंने बुद्ध से पूछा कि इतने महान होकर भी आपने इतना साधारण काम क्यों किया?
बुद्ध ने समझाया कि संसार में बुद्धों का एक ही उद्देश्य है. दुखी, दरिद्र, असहाय और अरक्षित का मित्र बनना. जो रोगी हो उनकी सेवा करना, चाहे वह किसी धर्म, पंथ,जाति व मान्यता का हो.
इस प्रकार गौतम ने बुद्ध केवल 'करुणा' का ही उपदेश नहीं दिया. करुणा का अर्थ मानव मात्र से प्रेम करना है. बुद्ध ने इससे भी आगे 'मैत्री' की शिक्षा दी और मैत्री का अर्थ है सभी प्राणियों से प्रेम करना.
भवतु सब्ब मंगल .सबका कल्याण हो..सभी निरोगी हो.
*सभी बौद्ध और समाजसेवक को लोगो की सेवा मे लग जाना चाहीये... अपने गाव मुहल्ले की सफाई कर जीवन को स्वस्थ बनाये*
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