संघ वंदना

𑀲𑀁𑀖 𑀯𑀁𑀤𑀦𑀸

𑀲𑀼𑀧𑀝𑀺𑀧𑀦𑁆𑀦𑁄 𑀪𑀕𑀯𑀢𑁄 𑀲𑀸𑀯𑀓𑀲𑀁𑀖𑁄,
𑀉𑀚𑀼𑀧𑀢𑀺𑀧𑀦𑁆𑀦𑁄 𑀪𑀕𑀯𑀢𑁄 𑀲𑀸𑀯𑀓𑀲𑀁𑀖𑁄,
𑀜𑀸𑀬𑀧𑀝𑀺𑀧𑀦𑁆𑀦𑁄 𑀪𑀕𑀯𑀢𑁄 𑀲𑀸𑀯𑀓𑀲𑀁𑀖𑁄,
𑀲𑀸𑀫𑀻𑀘𑀧𑀝𑀺𑀧𑀦𑁆𑀦𑁄 𑀪𑀕𑀯𑀢𑁄 𑀲𑀸𑀯𑀓𑀲𑀁𑀖𑁄𑁇

𑀬𑀤𑀺𑀤𑀁 𑀘𑀢𑁆𑀢𑀸𑀭𑀺 𑀧𑀼𑀭𑀺𑀲𑀬𑀼𑀕𑀸𑀦𑀻, 𑀅𑀞𑁆𑀞𑀧𑀼𑀭𑀺𑀲𑀧𑀼𑀕𑁆𑀕𑀮𑀸
𑀏𑀲 𑀪𑀕𑀯𑀢𑁄 𑀲𑀸𑀯𑀓𑀲𑀁𑀖𑁄, 𑀆𑀳𑀼𑀦𑁂𑀬𑁆𑀬𑁄, 𑀧𑀸𑀳𑀼𑀦𑁂𑀬𑁆𑀬𑁄,
𑀤𑀓𑁆𑀔𑀺𑀦𑁂𑀬𑁆𑀬𑁄, 𑀅𑀜𑁆𑀚𑀮𑀺𑀓𑀭𑀡𑀻𑀬𑁄, 𑀅𑀦𑀼𑀢𑁆𑀢𑀭𑀁 𑀧𑀼𑀜𑁆𑀜𑀓𑁆𑀔𑁂𑀢𑀁 𑀮𑁄𑀓𑀲𑁆𑀲𑀸’𑀢𑀺𑁈

𑀲𑀁𑀖𑀁 𑀚𑀻𑀯𑀺𑀢 𑀧𑀭𑀺𑀬𑀦𑁆𑀢𑀁 𑀲𑀭𑀡𑀁 𑀕𑀘𑁆𑀙𑀸𑀫𑀺𑁇

𑀬𑁂 𑀘 𑀲𑀁𑀖𑀸 𑀅𑀢𑀻𑀢𑀸 𑀘, 𑀬𑁂 𑀲𑀁𑀖𑀸 𑀅𑀦𑀸𑀕𑀢𑀸𑁇
𑀧𑀘𑁆𑀘𑀼𑀧𑀦𑁆𑀦𑀸 𑀘 𑀬𑁂 𑀲𑀁𑀖𑀸 𑀅𑀳𑀁 𑀯𑀦𑁆𑀤𑀸𑀫𑀺 𑀲𑀩𑁆𑀩𑀤𑀸𑁇

𑀦𑀢𑁆𑀣𑀺 𑀫𑁂 𑀲𑀭𑀡𑀁 𑀅𑀜𑁆𑀜𑀁, 𑀲𑀁𑀖𑁄 𑀫𑁂 𑀲𑀭𑀡𑀁 𑀯𑀭𑀁𑁇
𑀏𑀢𑁂𑀦 𑀲𑀘𑁆𑀘𑀯𑀚𑁆𑀚𑁂𑀦, 𑀳𑁄𑀢𑀼 𑀫𑁂 𑀚𑀬𑀫𑀗𑀕𑀮𑀁𑁈

𑀉𑀢𑁆𑀢𑀫𑀗𑁆𑀕𑁂𑀦, 𑀯𑀦𑁆𑀤𑁂𑀳𑀁, 𑀲𑀁𑀖 𑀜𑁆𑀘 𑀢𑀺𑀯𑀺𑀥𑀼𑀢𑁆𑀢𑀫𑀁𑁇
𑀲𑀁𑀖𑁂 𑀬𑁄 𑀔𑀮𑀺𑀢𑁄 𑀤𑁄𑀲𑁄, 𑀲𑀁𑀖𑁄 𑀔𑀫𑀢𑀼 𑀢𑀁 𑀫𑀫𑀁𑁈

𑀲𑀗𑁆𑀖𑁄 𑀯𑀺𑀲𑀼𑀤𑁆𑀥𑁄 𑀯𑀭 𑀤𑀓𑁆𑀔𑀺𑀦𑁂𑀬𑁆𑀬𑁄, 𑀲𑀦𑁆𑀢𑀺𑀤𑁆𑀭𑀺𑀬𑁄 𑀲𑀩𑁆𑀩𑀫𑀮𑀧𑁆𑀧𑀳𑀺𑀦𑁄
𑀕𑀼𑀡𑁂𑀳𑀺 𑀦𑁂𑀓𑁂𑀳𑀺 𑀲𑀫𑀸𑀤𑁆𑀥𑀺𑀧𑀢𑁄, 𑀅𑀦𑀸𑀲𑀯𑁄 𑀢𑀁 𑀧 𑀦𑀫𑀸𑀫𑀻 𑀲𑀁𑀖𑁇

𑀲𑀁𑀧𑀸𑀤𑀦-𑀟𑀸 𑀲𑀁𑀖𑀧𑁆𑀭𑀓𑀸𑀰 𑀤𑀼𑀟𑁆𑀟𑁂
संघ वंदना

सुपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो,
उजुपतिपन्नो भगवतो सावकसंघो,
ञायपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो,
सामीचपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो।

यदिदं चत्तारि पुरिसयुगानी, अठ्ठपुरिसपुग्गला
एस भगवतो सावकसंघो, आहुनेय्यो, पाहुनेय्यो,
दक्खिनेय्यो, अञ्जलिकरणीयो, अनुत्तरं पुञ्ञक्खेतं लोकस्सा’ति॥

संघं जीवित परियन्तं सरणं गच्छामि।

ये च संघा अतीता च, ये संघा अनागता।
पच्चुपन्ना च ये संघा अहं वन्दामि सब्बदा।

नत्थि मे सरणं अञ्ञं, संघो मे सरणं वरं।
एतेन सच्चवज्जेन, होतु मे जयमङगलं॥

उत्तमङ्गेन, वन्देहं, संघ ञ्च तिविधुत्तमं।
संघे यो खलितो दोसो, संघो खमतु तं ममं॥

सङ्घो विसुद्धो वर दक्खिनेय्यो, सन्तिद्रियो सब्बमलप्पहिनो
गुणेहि नेकेहि समाद्धिपतो, अनासवो तं प नमामी संघ।

संपादन-डॉ  संघप्रकाश दुड्डे

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