महाप्रजापति गौतमी धम्मदीक्षा दिवस :
🌹महाप्रजापति गौतमी धम्मदीक्षा दिवस :
फागुन पूर्णिमा🌹
-- होली बनाम फागुन पूर्णिमा --
भगवान बुद्ध के समय में भी -
🎯 आज की होली जैसा एक उत्सव होता था,
जिसमें सप्ताह भर तक लोग एक दूसरे पर-
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🔹धूल,
🔹कीचड़,
🔹गोबर,
🔹रंग फेकते और
🔹मलते थे तथा
🔹ऊंचे स्वर में अपशब्दों का प्रयोग करते थे।
🔴 प्रसंग :
🔸खुद्दक निकाय के -
🔸धम्मपद अट्टकथा के -
🔸अप्पमाद वग्गो में है -
भगवान् ,
कोशल राज्य की राजधानी श्रावस्ती के जेतवन में वर्षावास कर रहे थे।
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इस उत्सव के कारण श्रद्धालु उपासक-उपासिकाओं ने भगवान से निवेदन किया कि आप जेतवन के बाहर न निकलिए,
हम लोग आप सहित संघ के लिए भोजन जेतवन में ही पहुंचा देगें।
🙏
श्रद्धालु उपासक-उपासिकाओं ने क्रम से आपस में धम्म सेवा लगा कर एक सप्ताह तक बुद्ध प्रमुख संघ को जेतवन के विहार में भोजनदान किया।
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एक सप्ताह के उपरांत भगवान संघ के साथ पिण्डपात के लिए जेतवन विहार के बाहर निकले तथा उपासकों-उपासिकाओं ने बुद्ध प्रमुख संघ को महादान कर पुण्यलाभ किया।
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इस अवसर पर श्रद्धालुओं ने अपनी व्यथा व्यक्त की -
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"भगवान,
🔹यह सात दिन हमारे लिए बड़े कष्ट में बीते।
🔹मूर्खों द्वारा प्रयुक्त असभ्य-अपशब्द सुन-सुन
कर हमारे कान फटे जाते थे।
🔹उन्हें किसी की लज्जा या संकोच ही नहीं
था।
🔹इसीलिए आप श्रीमान से हम लोगों ने नगर
में न निकलने का अनुरोध किया था।"
भगवान ने श्रद्धालुओं का अनुमोदन करते हुए कहा -
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"मूर्खों के कर्म ऐसे ही होते हैं।
मेधावीजन अप्रमाद की रक्षा करते हैं।"
यह कह कर भगवान ने गाथा का संगायन किया,
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"पमादमनुयुंजन्ति बाला दुम्मेधिनो जना।
अप्पमादं च मेधावी, धनं सेट्ठं व रक्खति।।
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अनुवाद -
🌹मूर्ख-दुर्बुद्धि प्रमाद करते हैं।
मेधावी पुरुष श्रेष्ठ धन की तरह
अप्रमाद की रक्षा करते हैं।"
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इस प्रकार वर्तमान में प्रचलित -
होली को बौद्ध पर्व सिद्ध करना अन्यथा चेष्टा ही कहा जाएगा ।
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लेकिन फाल्गुन पूर्णिमा का भगवान बुद्ध और बौद्धों से बड़ा गहरा सम्बन्ध है।
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लेकिन वे इस पूर्णिमा को होली के जैसा नहीं मनाते हैं।
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इस दिन बौद्ध उपासक-उपासिकाऐं उपोसथ धारण करते हैं।
उपोसथ -
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गृहस्थ के लिए बुद्ध ने बहुत कल्याण कारक मार्ग बताया जिसमें सबसे पहला है -
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गृहस्थ अपने रोज के जीवन में 5 शीलों का पालन करे तो वो हितकारक है।
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किन्तु माह के 4 दिन (पूर्णिमा, प्रत्येक अष्टमी, अमावस्या) 8 शीलों का पालन करना बहुत जरूरी है, यही उपोसथ है।
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बुद्ध के समय से यह उपोसथ की परंपरा है।
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उपोसथ करने का कारण -
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हम देखते हैं कि पूर्णिमा से लेकर अष्टमी तक समुद्र में ज्वार आता है और उसी प्रकार अमावश से लेकर अष्टमी तक भाटा।
यह जो ज्वार-भाटा आता है समुन्दर में।
उसकी वजह से हायड्रोजन गैस बढ़ता है यह हायड्रोजन गॅस का स्वभाव है कि दूसरे वायु को बढ़ाने में मदद करता है।
तो यह हायड्रोजन जैसे डबल ट्रिपल बढ़ता है तो जो पहले से ही वातावरण में हीलियम (नोबेल गैस) नाम का वायु है - जो जीवशृष्टि के लिए घातक है वह बढ़ाने में यह हायड्रोजन वायु मदद करता है,
जैसे हीलियम बढ़ता है
वैसे उसमे से अनेक प्रकार के वायु बाहर वातावरण में फैल जाते है।
जो जीवसृष्टि के लिए घातक है।
इस वजह से हम देख सकते है कि,
दोपहर 12 के बाद से 2:30 (अंदाज से आगे पीछे हो सकता है) तक वातावरण गरम होता है और वातावरण में बदलाव आने से हमारी पाचन संस्था धीमी हो जाती है ,
यानी पाचन क्रिया मंद हो जाती है।
इसलिए हमें दोपहर 12 बजे के पहले भोजन कर लेना चाहिये।
जिससे हम स्वस्थ रह सके।
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आठ शील
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पाणातिपाता वेरमणी सिक्खापदं समादियामि।
अर्थ-
अनावश्यक हिंसा नही करनी चाहिए।(1)
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अद्दिन्नादाना वेरमणी सिक्खापदं समादियामि।
अर्थ-
जो मेरे हिस्से की चीज नहीं है, उसे बगेर पूछे नही लूँगा।(2)
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अब्रम्हाचर्या वेरमणी सिक्खापदं समादियामि।
अर्थ-
पूरी तरह से ब्रम्हचर्य का पालन करना चाहिए। (3)
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मुसावादा वेरमणी सिक्खापदं समादियामि।
अर्थ-झुठ नही बोलना चाहिए।(4)
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सूरा-मेरय-मज्ज पमादठाना वेरमणी सिक्खापदं समादियामि।
अर्थ-
किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थों का सेवन नही करना चाहिए।(5)
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विकाल-भोजना वेरमणी सिक्खापदं समादियामि।
अर्थ-
दोपहर 12 बजे के पहले भोजन करना चाहिए। दोपहर 12 के बाद सिर्फ प्रवाही ले सकते है। (दूध,चाय,निम्बू पानी)(6)
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नच्च-गीत-वादित विसूकदस्सना, माला-गन्ध-विलेपन-धारण-मंडन विभूसनट्ठाना वेरमणी सिक्खापदं समादियामि।
अर्थ-
मैं किसी भी प्रकार के नाच-गान-वादन-नाट्य का व बहोत सारी मालाएं, परफ्यूम या कोई भी कॉस्मेटिक लगाने व शरीर को आभूषित विभुषित करने से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता/करती हूँ ।(7)
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उच्चासयन-महासयना वेरमणी सिक्खापदं समादियामि।
अर्थ-
मैं बहुत ऊंची और बड़ी विलासतामय शैय्या पर सोने से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता/करती हूँ ।(8)
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बौद्ध उपासक व उपासिका -
प्रत्येक -
🔸अष्टमी,
🔸अमावस्या व
🔸पूर्णिमा के दिन अष्टशील उपोसथ व्रत
धारण करने की प्रतिज्ञा करते हैं और
उन्हें धारण करते हैं।
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भगवान बुद्ध को बोधिज्ञान (बुद्धत्व) पूर्णिमा की रात्रि के समय प्राप्त हुआ था।
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इसलिए बौद्धों में पूर्णिमा की रात बड़ी मंगलदायी और पवित्र मानी जाती है।
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अष्टशील उपोसथ के दिन अनुव्रत धारण कर मन को परिशुद्ध करने का अभ्यास किया जाता है.
उपोसथ के दिन उपासक-उपासिकाओं को सुबह बुद्ध विहार में जाना चाहिए.
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भिक्खु को वंदन कर उनसे त्रिशरण व अष्टशील उपोसथ की याचना करनी चाहिए और
पूरे दिन अष्टशील का पालन करना चाहिए.
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इस दिन उपासक उपासिकाओं के लिए अलग-अलग रहने की व्यवस्था होती हैं,
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जिसे उपोसथागार कहा जाता है।
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उस दिन वे सभी बुद्ध विहार में ही दोपहर १२ बजे तक सामुदायिक भोजन ग्रहण करते हैं.
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दोपहर १२ बजे के बाद वे कुछ भी नहीं खाते. रात के समय उस दिन भोजन बिल्कुल नहीं करते,
रत्रि के समय को विकाल माना जाता है.
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उस दिन अधिक से अधिक -
🔸ध्यान भावना,
🔸विपस्सन्ना भावना,
🔸धम्म वंदना,
🔸बुद्ध वाणी का पाठ,
🔸सुत्र-पाठ ग्रंथ पाठ,
🔸ध्यान अभ्यास,
🔸वंदना आदि बड़ी श्रद्धा भावना से की जाती
है.
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उपोसथ व्रत के दिन कभी-कभी पूरी रात जागकर ध्यान अभ्यास में बितायी जाती है.
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दूसरे दिन सुबह 5-6 बजे सूर्योदय के समय बुद्ध, धम्म तथा संघ की वंदना करके
भिक्खु से त्रिशरण पंचशील की याचना करते हैं और
अष्टशील छोड़कर नियमित पंचशील को धारण करके दूसरे दिन सुबह सभी उपासक और उपासिकाएँ घर चले जाते है.
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उपासक - उपासिकाओं को महीने में कम से कम एक दिन अपने काम से छुट्टी लेकर, अनुशील व्रत लेकर अपने मन को वास्तविक त्याग और शील में प्रतिष्ठित करना चाहिए.
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उपोसस के दिन -
🔸दान देना,
🔸शील पालन,
🔸ध्यान भावना आदि से अपने मन को
परिशुद्ध करने का प्रत्यक्ष अभ्यास बौद्ध
उपासकों की परंपरा है,
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यदि बुद्ध विहार में उपासक, उपासिकाओं के ठीक तरह से उपोसथ व्रत के दिन रात बिताने की व्यवस्था न हो,
तो विशेष प्रतिज्ञा करके यह उपोसथ व्रत अपने घर में भी किया जाता है.
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लेकिन व्रत धारण शील सम्पन्न भिक्खु या भिक्खुणी से ही करना चाहिए।
संक्षेप में -
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उपोसथ के दिन उपासक-उपासिकाएं भिक्खु-भिक्खुनियों जैसी दिनचर्या जीते हैं।
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🔸सुबह/शायं बुद्ध वन्दना,
🔸तिरतन वन्दना,
🔸धम्म ग्रन्थ का पाठ,
🔸परित्त पाठ,
🔸ध्यान।
🔸भिक्खु, भिक्खुनी या संघ के दर्शन।
🔸उन्हें यथा सामर्थ्य भोजनदान व अन्य दान।
🔸दोपहर के पहले भोजन।
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🔸सायंकाल भोजन नहीं।
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🔹यदि बीमार, वृद्ध या गर्भवती है तो
🔹सायंकाल न चबाने वाला भोजन जैसे -
🔹फलों का रस,
🔹गीली खिचड़ी (यवागू) ले सकते हैं।
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ऐसे उपोसथ को भगवान ने महान फल वाला बताया है।
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बौद्धगण फाल्गुन पूर्णिमा ऐसे मनाते हैं।
🌹फागुन पूर्णिमा का महत्त्व🌹
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1.सम्यक संबोधी के बाद प्रथम राजग्रह आगमन पर धम्मसेनापति सारिपुत्त उपतिस्स
व कोलित मोग्गलायन का संघ में प्रवेश ।
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2.अपने पिता शुद्धोधन के आग्रह पर 20000 अर्हत मित्रों के साथ तथागत ने प्रथम बार कपिलवस्तु में प्रवेश किया।
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3.तथागत ने पुत्र राहुल, जीवनसंगिनी यशोधरा को धम्मदीक्षा देकर संघ में शामिल किया।
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4.तथागत ने आनंद को धम्मदीक्षा दी।
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5.तथागत ने महाप्रजापति गौतमी को दीक्षा दी।
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6-पहली बार चीनी भाषा में धम्मपद का अनुवाद हुआ, 823 में।
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7-महाप्रजापति गौतमी पुत्र राजकुमार नंद को धम्मदीक्षा दी।
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8-प्रथम बौद्ध संगीति समाप्त हुई.
संदर्भ-
1.राजेश चन्द्रा जी की फेसबुक वाॅल : 19.3.2019
2.भगवान बुद्ध धम्म-सार व धम्म-चर्या
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