तथागत बुद्ध श्रेष्ठ भैषज्य
तथागत बुद्ध श्रेष्ठ भैषज्य
तथागत बुद्ध विश्व में भैषज्य गुरू के रुप में जाने जाते है।
भैषज का साहित्यक अर्थ औषधि (दवाई) होता है।
बुद्ध करूणा सागर है। वे किसी का दु:ख नहीं देख सकते है, देखना नहीं चाहते है। इसलिए तो महाभिनिष्क्रमण करते है और दु:ख मुक्ति का मार्ग खोज कर लोगों को बताते है।
दु:ख दो प्रकार के होते है-
१) भवचक्र का यानी जन्म-मरण का दु:ख।
२) दुसरा, जो राग, द्वेष और मोह के कारण कायिक (शारीरिक) दु:ख।
बुद्ध ने दोनों प्रकार के दु:खों से मुक्ति के लिए उपदेश दिया है।
बौद्ध वाङ्गमय में "संपरायिक" दु:ख और संदिट्ठिक" दु:ख , दोनों प्रकार के दु:खों की चर्चा है।
बुद्ध ने संपरायिक और संदिट्ठिक दोनों दु:खों से मुक्ति पाने के लिए उपाय बताए हैं।
तथागत बुद्ध जब किसी रोगी को देखते,तो तुरंत चिकित्सक की भांति उसकी परिचर्या करते और उसके रोग निवारण हेतु औषधि देते थे।
विनय पिटक के महावग्ग में एक घटना का जिक्र किया है-
" उस समय एक भिक्खु को पेट की बिमारी थी। वह अपने पेशाब-पाखाने में पडा था। तब भगवान आनंद को साथ में लिए , जहां उस भिक्खु था वहां गए। जाकर उस भिक्खु को पूछा- भिक्खु तुझे क्या रोग है? " "पेट की बिमारी है" भन्ते भगवान", उत्तर मिला। " क्यों तेरी कोई सेवा नहीं करते? "
"भन्ते! मैंने कोई भिक्खु की सेवा नहीं की है, मैं भिक्खुओं का कुछ नही करने वाला हूँ, इसलिए मेरी कोई सेवा नहीं करते है।"
तब भगवान ने आनंद को कहा- " जाओ, आनंद पानी लेकर आओ, इस भिक्खु को नहलायेंगे।" आनंद पानी लाए। भगवान ने उस भिक्खु को नहलाया। फिर चारपाई पर लेटाया। उस समय भिक्खुओं को इक्ट्ठा कर कहा- " भिक्खुओ! तुम्हारी माता नहीं, तुम्हारे पिता नहीं,जो तुम्हारी सेवा कर सके। यदि तुम एक दुसरे की सेवा नहीं करोगे, तो कौन करेगा? आपको एक दुसरे की सेवा करनी चाहिए। जो रोगी की सेवा करता है,वह मेरी सेवा करता है।
तथागत ने रोगियों के रोग देख कर रोग निवारण हेतु औषधि भी बताई। भैषज्य स्कंघ में तथागत के द्वारा बताई गई औषधियों का विवरण है।
शरद ऋतु में एक समय तथागत श्रावस्ती में विहार करते थे। उस समय भिक्खु बुखार से उठे थे। उनका पिया हुआ यवागु (प्रवाही खिचड़ी) भी वमन हो जाता था। खाया भात भी वमन हो जाता था। इसके कारण वे कृश (पतले) रूक्ष (दुर्बल) और दुर्वर्ण पीले-पीले नसों से सटे शरीर वाले हो गए थे । भगवान ने उन कृशकाय ,दुबले पतले भिक्खु को देखकर भैषज्य (औषधि) लेने की अनुमति दी। भगवान ने पांच भैषज्यों की अनुमति दी- घी, मक्खन,तेल,मधु और गुड (गलिस्ट पदार्थ)
" भिक्खुओं! अनुमति देता हूँ, पांच भैषज्यों को पूर्वान्ह में लेकर पूर्वान्ह में सेवन करने की।"
ऐसे थे, तथागत बुद्ध एक श्रेष्ठ भैषज्य करूणा सागर।
नमो बुद्धाय🙏🏻🙏🏻🙏🏻
Comments
Post a Comment