"मोह" - सुमित्रानंदन पंत: एक समीक्षा

 हिंदी साहित्य के छायावादी युग के प्रमुख स्तंभ सुमित्रानंदन पंत जी की कविता "मोह" की विस्तृत समीक्षा प्रस्तुत है।

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"मोह" - सुमित्रानंदन पंत: एक समीक्षा

सुमित्रानंदन पंत की कविता "मोह" उनकी प्रकृति-चेतना और अध्यात्मिक दृष्टि का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह कविता मानवीय चेतना और ब्रह्मांड के बीच के एक गहन, दार्शनिक और भावनात्मक संबंध को चित्रित करती है, जो छायावाद का केंद्रीय स्वर है।

कविता का सार (Summary)

"मोह" कविता एक ऐसे व्यक्ति की मनःस्थिति को दर्शाती है जो प्रकृति की सुंदरता और विशालता में इतना लीन हो जाता है कि वह स्वयं को उसी का एक अंग समझने लगता है। कवि स्वयं को "मोहमय" अर्थात मोह से भरा हुआ पाता है। यह मोह सांसारिक नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक आकर्षण है। वह स्वयं को आकाश, वन, पर्वत, नदी और समुद्र में विलीन होता हुआ अनुभव करता है। यहाँ तक कि वह अपने अस्तित्व को भी भूलकर, इस सारे ब्रह्मांड को ही अपना "विस्तृत व्यक्तित्व" मानने लगता है। यह आत्मा का ब्रह्मांड के साथ एकाकार होने की अनुभूति है।

प्रमुख विषय-वस्तु (Themes)

1. आत्मा और ब्रह्म का मिलन (अद्वैत भाव): कविता का केंद्रीय भाव शंकराचार्य के "अद्वैत वेदांत" के सिद्धांत - "तत्वमसि" (तू वही है) की ओर संकेत करता है। कवि स्वयं को सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त पाता है। यह व्यक्तिगत सीमाओं के टूटने और सार्वभौमिक चेतना में विलीन होने की अनुभूति है।
2. प्रकृति के प्रति गहन आकर्षण (मोह): पंत के लिए प्रकृति सिर्फ दृश्यमान सौंदर्य नहीं है, बल्कि एक सजीव, चेतन शक्ति है। इस कविता में "मोह" शब्द एक सकारात्मक और दिव्य भावना के रूप में उभरता है, जो कवि को प्रकृति की गोद में ले जाता है।
3. व्यक्तिगत अहं का विलोपन: कविता में "मैं" और "तुम" का भेद मिटता हुआ दिखाई देता है। जब कवि कहता है, "मैं अब नहीं हूँ, केवल तू ही तू है," तो यह उसके व्यक्तिगत अहं के पूर्ण रूप से विलीन होने का प्रतीक है।
4. सौंदर्यबोध का विस्तार: पंत का सौंदर्यबोध केवल बाहरी रूप-रंग तक सीमित नहीं है। यहाँ सौंदर्य एक विशाल, अनंत और आध्यात्मिक अनुभव में बदल जाता है।

काव्यगत विशेषताएँ (Poetic Features)

1. शब्द चयन एवं भाषा: पंत की भाषा अत्यंत कोमल, मधुर और संगीतात्मक है। संस्कृतनिष्ठ तत्सम शब्दों के प्रयोग (जैसे - मोहमय, विस्तृत, व्यक्तित्व, चिरंतन) ने कविता को एक दार्शनिक गाम्भीर्य प्रदान किया है।
2. अलंकार योजना:
   · अनुप्रास: "मैं मोहमय, मोह मेरा तन-मन" - इससे कविता में लय और प्रभाव की सृष्टि हुई है।
   · पुनरुक्ति: "तू ही तू है" - इसके द्वारा एकाग्रता और ज़ोर दिया गया है।
   · रूपक: पूरी कविता ही एक विशाल रूपक है, जहाँ बाह्य जगत आंतरिक अनुभूति का प्रतीक बन जाता है।
3. प्रतीकात्मकता: "आकाश", "वन", "पर्वत", "नदी", "समुद्र" आदि प्रकृति के तत्व अनंतता, शक्ति, गतिशीलता और विस्तार के प्रतीक के रूप में प्रयुक्त हुए हैं। ये सभी मिलकर ब्रह्मांड के विराट स्वरूप को दर्शाते हैं।
4. छंद और लय: यद्यपि कविता मुक्त छंद में है, फिर भी इसमें एक अंतर्निहित संगीतात्मक लय विद्यमान है। यह लय पंत की भाषा की स्वाभाविक माधुर्य का परिणाम है।

छायावाद के संदर्भ में

"मोह" कविता छायावाद की चार प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट रूप से दर्शाती है:

1. रहस्यवाद: प्रकृति और ईश्वर के साथ एकरूप होने का रहस्यमय अनुभव।
2. अतींद्रिय अनुभूति: शब्दों से परे की उस अवस्था को महसूस करना, जहाँ अहं का लोप हो जाता है।
3. प्रकृति का मानवीकरण: प्रकृति को एक सजीव सत्ता के रूप में देखना।
4. संगीतात्मकता: कोमल और लयबद्ध शब्दावली का प्रयोग।

निष्कर्ष (Conclusion)

"मोह" सुमित्रानंदन पंत की वह कविता है जो पाठक को सांसारिक बंधनों से ऊपर उठाकर अनंत और विराट की ओर ले जाती है। यह केवल एक काव्य-रचना नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना का शब्द-चित्र है। यह कविता हमें यह एहसास दिलाती है कि हम इस सृष्टि से अलग-थलग नहीं हैं, बल्कि उसी का एक अटूट और सजीव अंग हैं। इस प्रकार, "मोह" हिंदी साहित्य की उन अमर रचनाओं में से एक है जो मनुष्य को उसके अपने ही वास्तविक, विस्तृत स्वरूप से परिचित कराती है।

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