"धन्य लाल की माई" - मैथिलीशरण गुप्त: एक समीक्षा

 "धन्य लाल की माई" (मैथिलीशरण गुप्त के 'साकेत' से) की समीक्षा प्रस्तुत कर रहा हूँ:

"धन्य लाल की माई" - मैथिलीशरण गुप्त: एक समीक्षा

मैथिलीशरण गुप्त की "साकेत" महाकाव्य में आई यह पंक्ति "धन्य लाल की माई" रामकथा के एक अत्यंत मार्मिक और विचारणीय प्रसंग को दर्शाती है। यह प्रसंग पारंपरिक रामकथा के पात्रों के प्रति हमारी दृष्टि को चुनौती देता है और चरित्र-चित्रण की जटिलता को उजागर करता है।

कविता/प्रसंग का सार (Summary)

यह प्रसंग राम के वनवास के बाद का है, जब भरत राम को मनाने वन जाते हैं। भरत और राम के बीच के अगाध भ्रातृप्रेम को देखकर अयोध्यावासी भावुक हो उठते हैं। इसी संदर्भ में लोग कैकेयी को "धन्य लाल की माई" (वह धन्य है जिसने ऐसे पुत्र को जन्म दिया) कहकर सम्मान देते हैं। यहाँ कैकेयी का चरित्र उसकी विवादास्पद भूमिका से हटकर एक ऐसी माँ के रूप में उभरता है जिसने भरत जैसे आदर्श पुत्र को जन्म दिया।

प्रमुख विषय-वस्तु (Themes)

1. मातृत्व का पुनर्मूल्यांकन: यह प्रसंग मातृत्व की जटिल अवधारणा को सामने लाता है। कैकेयी जो रामकथा में सामान्यतः एक खलनायिका के रूप में चित्रित है, यहाँ एक आदर्श पुत्र की माँ के रूप में गौरवान्वित है।
2. नैतिक द्वंद्व: गुप्त जी ने कैकेयी के चरित्र में नैतिक द्वंद्व को सूक्ष्मता से प्रस्तुत किया है। एक ओर उसका वह कृत्य जिसने पूरे राज्य को दुःख में डाल दिया, दूसरी ओर उसी का पुत्र जो सभी के हृदय जीत रहा है।
3. सामाजिक धारणा और यथार्थ: यह प्रसंग सामाजिक धारणाओं की सापेक्षता को दर्शाता है। एक ही व्यक्ति के प्रति समाज का दृष्टिकोण परिस्थितियों के अनुसार बदल सकता है।
4. भ्रातृप्रेम की महत्ता: भरत का राम के प्रति समर्पण और प्रेम इस पूरे प्रसंग का केंद्रीय भाव है जो कैकेयी को इस "धन्य" उपाधि का पात्र बनाता है।

काव्यगत विशेषताएँ (Poetic Features)

1. भाषा शैली: गुप्त जी ने खड़ी बोली में ही संस्कृतनिष्ठ शब्दों का समावेश करके भाषा को ओज और गाम्भीर्य प्रदान किया है। "धन्य लाल की माई" जैसी पंक्ति में लोकभाषा की सरलता और महाकाव्य की गरिमा का अद्भुत समन्वय है।
2. अलंकार:
   · अनुप्रास: "लाल की" में अनुप्रास अलंकार है।
   · व्यंजना: "धन्य" शब्द में व्यंजना शक्ति विद्यमान है जो कैकेयी के पूरे चरित्र और कृत्यों पर एक सूक्ष्म टिप्पणी प्रस्तुत करती है।
3. विरोधाभास: पूरा प्रसंग एक सुंदर विरोधाभास रचता है - जिस कैकेयी को पूरी अयोध्या दोषी मान रही थी, उसी कैकेयी को लोग "धन्य" कह रहे हैं। यह विरोधाभास कवि की मौलिक दृष्टि को दर्शाता है।
4. मनोवैज्ञानिक चित्रण: गुप्त जी ने अयोध्यावासियों और कैकेयी की मनःस्थिति का सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक चित्रण प्रस्तुत किया है।

साहित्यिक एवं सांस्कृतिक महत्व

1. मौलिक व्याख्या: गुप्त जी ने पारंपरिक रामकथा की एक नवीन और मानवीय व्याख्या प्रस्तुत की है। वे कैकेयी को केवल दोष देने के स्थान पर उसके चरित्र के दूसरे पक्ष को भी दर्शाते हैं।
2. नारी चरित्र का पुनर्पाठ: यह प्रसंग रामकथा में नारी चरित्रों के एकपक्षीय चित्रण के विरुद्ध एक सार्थक हस्तक्षेप है।
3. सामाजिक संदेश: गुप्त जी का यह लेखन हमें सिखाता है कि किसी व्यक्ति या घटना का केवल एक पक्ष देखकर उसके बारे में अंतिम राय नहीं बना लेनी चाहिए।

निष्कर्ष (Conclusion)

"धन्य लाल की माई" का प्रसंग मैथिलीशरण गुप्त की मानव-मन के गहन अवलोकन और साहित्यिक कौशल का परिचायक है। यह हमें दिखाता है कि महान साहित्य किसी भी चरित्र या स्थिति को सरल सकारात्मक-नकारात्मक खानों में बाँटने के स्थान पर उसकी जटिलता और बहुआयामी प्रकृति को समझने का प्रयास करता है। इस प्रकार, यह प्रसंग न केवल रामकथा का एक अंग है, बल्कि मानवीय संबंधों और सामाजिक धारणाओं पर एक गहन दार्शनिक विमर्श भी प्रस्तुत करता है।

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