मुकरियाँ" - भारतेंदु हरिश्चंद्र: एक समीक्षा
भारतेंदु हरिश्चंद्र की कविता "मुकरियाँ" की विस्तृत समीक्षा प्रस्तुत है।
"मुकरियाँ" - भारतेंदु हरिश्चंद्र: एक समीक्षा
भारतेंदु हरिश्चंद्र (1850-1885) को आधुनिक हिंदी साहित्य का जनक माना जाता है। उनकी रचना "मुकरियाँ" हिंदी साहित्य में एक विशिष्ट स्थान रखती है। "मुकरियाँ" एक लोकप्रिय काव्य-शैली है, जिसमें छोटे-छोटे, सारगर्भित और प्रायः व्यंग्यपूर्ण छंदों में गहरी बात कही जाती है।
कविता का सार (Summary)
"मुकरियाँ" एक संग्रह है, जिसमें अलग-अलग विषयों पर रचित संक्षिप्त पद शामिल हैं। इन मुकरियों के माध्यम से भारतेंदु ने समकालीन सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और नैतिक विसंगतियों पर करारा प्रहार किया है। ये रचनाएँ तत्कालीन समाज का एक व्यापक चित्र प्रस्तुत करती हैं, जहाँ एक ओर अंग्रेजी शासन का विरोध है, तो दूसरी ओर समाज में फैली कुरीतियों, पाखंड और अंधविश्वासों पर चोट है।
प्रमुख विषय-वस्तु (Themes)
1. सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार: भारतेंदु ने समाज में फैली कुरीतियों जैसे - जाति-पाति का भेदभाव, छुआछूत, नारी की दयनीय दशा, बाल विवाह, पर्दा प्रथा आदि पर तीखा व्यंग्य किया है।
2. धार्मिक पाखंड का विरोध: उन्होंने ढोंगी पंडितों, मुल्लाओं और धर्म के ठेकेदारों के पाखंड को बेनकाब किया है, जो धर्म के नाम पर लोगों को लूटते थे।
3. राष्ट्रीय चेतना और देशप्रेम: कई मुकरियों में अंग्रेजी शासन के शोषण और भारतीयों की दयनीय स्थिति का मार्मिक चित्रण है। वे भारतवासियों में राष्ट्रीयता और स्वाभिमान की भावना जगाना चाहते थे।
4. नैतिक शिक्षा: कुछ मुकरियाँ जीवन मूल्यों, सदाचार, परोपकार और अच्छे व्यवहार की शिक्षा देती हैं।
काव्यगत विशेषताएँ (Poetic Features)
1. भाषा शैली: भारतेंदु ने ब्रजभाषा का प्रयोग किया है, जो उस समय की साहित्यिक भाषा थी। उनकी भाषा सरल, सहज, व्यावहारिक और लोकप्रिय है, जिसमें मुहावरों और लोकोक्तियों का सुंदर प्रयोग मिलता है।
2. व्यंग्य का कौशल: "मुकरियाँ" की सबसे बड़ी शक्ति उसका व्यंग्य है। भारतेंदु का व्यंग्य तीखा, मारक और चुभने वाला है, लेकिन वह हास्य के साथ मिश्रित है, जिससे वह और भी प्रभावी बन जाता है।
· उदाहरण: एक मुकरी में वे कहते हैं कि अब लोग ईश्वर से केवल धन माँगते हैं, क्योंकि धन से ही सब कुछ मिल सकता है।
3. छंद योजना: जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, ये रचनाएँ 'मुकरी' छंद में लिखी गई हैं। यह छंद अत्यंत लघु, संक्षिप्त और सरल होता है, लेकिन इसके भीतर गहरा अर्थ छिपा होता है।
4. अलंकार योजना:
· अनुप्रास: "कहा हिये हिय हीन" जैसे प्रयोगों से भाषा में लयात्मकता आई है।
· व्यंजना: इन छोटी पंक्तियों में व्यंजना शक्ति का विलक्षण प्रयोग हुआ है, जो पाठक को सोचने पर मजबूर कर देता है।
सामाजिक-ऐतिहासिक संदर्भ
भारतेंदु हरिश्चंद्र का काल भारत में पुननर्जागरण और सामाजिक सुधारों का दौर था। उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से राजा राममोहन रॉय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर आदि के सुधार आंदोलनों को साहित्यिक अभिव्यक्ति दी। "मुकरियाँ" उस दौर के समाज का एक जीवंत दस्तावेज है, जो यह दर्शाता है कि कैसे एक सजग रचनाकार अपने समय के सवालों से जूझ रहा था।
निष्कर्ष (Conclusion)
"मुकरियाँ" भारतेंदु हरिश्चंद्र की साहित्यिक प्रतिभा और सामाजिक सरोकार का उत्कृष्ट उदाहरण है। इन लघु रचनाओं में एक संपूर्ण युग की आवाज समाई हुई है। उन्होंने इस सरल और लोकप्रिय विधा के माध्यम से गहरे से गहरे विचार को इतनी सहजता और कलात्मकता से प्रस्तुत किया है कि ये आज भी उतनी ही प्रासंगिक और प्रभावशाली लगती हैं। भारतेंदु ने "मुकरियाँ" के जरिए यह सिद्ध किया कि साहित्य का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज का दर्पण बनना और उसे बदलने की प्रेरणा देना भी है।
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