प्रार्थना मत कर" - हरिवंश राय बच्चन: एक समीक्षा

हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित प्रसिद्ध कविता "प्रार्थना मत कर" की एक विस्तृत समीक्षा प्रस्तुत है।

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"प्रार्थना मत कर" - हरिवंश राय बच्चन: एक समीक्षा

"प्रार्थना मत कर" हरिवंश राय बच्चन की सबसे चर्चित और प्रभावशाली कविताओं में से एक है। यह कविता उनके 'मधुशाला' संग्रह से ली गई है, जो 1935 में प्रकाशित हुआ था। यह कविता मानवीय दुर्बलताओं, भाग्यवादिता और ईश्वर पर निर्भरता के बजाय स्वयं के संघर्ष और कर्तव्य पर जोर देती है।

कविता का सार (Summary)

कविता की शुरुआत ही एक चुनौतीपूर्ण और विद्रोही स्वर से होती है – "प्रार्थना मत कर, आँसू बहा मत।" बच्चन मनुष्य को हर परिस्थिति में धैर्य और साहस बनाए रखने का संदेश देते हैं। वे कहते हैं कि ईश्वर से प्रार्थना करके या आँसू बहाकर तुम उसकी दया का पात्र नहीं बन सकते। ईश्वर उसी की सहायता करता है, जो स्वयं अपनी सहायता करता है। कवि का मानना है कि संघर्ष ही जीवन का सार है और मुश्किलें ही मनुष्य को मजबूत बनाती हैं।

प्रमुख विषय-वस्तु (Themes)

1. आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन: यह कविता का केंद्रीय भाव है। कवि बाहरी सहारों को छोड़कर स्वयं पर विश्वास करने और अपने बलबूते पर जीवन की चुनौतियों से लड़ने का आह्वान करता है।
2. संघर्ष की महत्ता: कवि संघर्ष को जीवन का अनिवार्य और सकारात्मक अंग मानते हैं। वे कहते हैं कि तूफानों और कठिनाइयों के बिना जीवन अधूरा है। "जीवन में है सागर-पानी, पीने को प्यासा जो पानी।" यह पंक्ति दर्शाती है कि जीवन स्वयं ही एक चुनौतीपूर्ण सागर है, और हमें उसी को पीकर आगे बढ़ना है।
3. नियतिवाद का विरोध: कवि भाग्य के भरोसे बैठे रहने वाली मानसिकता का विरोध करते हैं। वे मानते हैं कि ईश्वर उन्हीं का साथ देता है जो कर्म करते हैं। "वरदान माँगने वालों पर, देवता कभी वर न बरसाए।"
4. मानवीय गरिमा: रोना-गाना और दया की भीख माँगना मनुष्य की गरिमा के विपरीत है। कवि मनुष्य को गर्व और सम्मान के साथ जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं।

काव्यगत विशेषताएँ (Poetic Features)

1. भाषा शैली: कविता की भाषा सरल, स्पष्ट और ओजपूर्ण खड़ी बोली हिंदी है। यह जनसामान्य तक आसानी से पहुँच सकती है।
2. अलंकार:
   · अनुप्रास: "प्रार्थना मत कर", "आँसू बहा मत" - इससे कविता में लयात्मकता और प्रभावशीलता आई है।
   · रूपक: पूरी कविता में जीवन को सागर और संघर्ष को तूफान के रूपक से समझाया गया है।
3. प्रतीकात्मकता: "सागर", "तूफान", "पर्वत", "नाव" आदि प्रतीकों का सुंदर प्रयोग हुआ है। सागर जीवन का, तूफान संकटों का और नाव मनुष्य के जीवन की यात्रा का प्रतीक है।
4. छंद और लय: कविता में एक विशेष प्रकार का मुक्त छंद है, जिसमें एक तरल लयबद्धता है। यह लय कविता के संदेश को और अधिक प्रभावशाली बना देती है।

सामाजिक-ऐतिहासिक संदर्भ

यह कविता उस दौर में लिखी गई जब भारत स्वतंत्रता संग्राम के दौर से गुजर रहा था। इस संदर्भ में, यह कविता देशवासियों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन गई। यह लोगों को निष्क्रियता और प्रार्थना से हटकर सक्रिय संघर्ष और आत्मबल पर जोर देने का संदेश देती थी। यह व्यक्तिगत और राष्ट्रीय, दोनों स्तरों पर आत्मनिर्भरता का घोषणापत्र है।

निष्कर्ष (Conclusion)

"प्रार्थना मत कर" सिर्फ एक कविता नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक दर्शन है। यह निराशा और हताशा के विरुद्ध एक शक्तिशाली वक्तव्य है। बच्चन ने इसे लिखकर हिंदी साहित्य को एक ऐसी रचना दी जो दशकों बाद भी उतनी ही प्रासंगिक और प्रेरणादायक है। यह कविता हर उस व्यक्ति के लिए एक मार्गदर्शक है जो जीवन की कठिनाइयों से घबराकर हार मान लेता है। यह हमें सिखाती है कि "मंजिल मिल ही जाएगी भटकते ही सही, ग़र ख़ुदी के राही हों।"

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