दुम्मेधजातक (बौद्ध जातक कथा परिचय)
"दुम्मेध जातक" (Dummetha Jātaka) बौद्ध जातक कथा का एक विस्तृत परिचय प्रस्तुत है।
दुम्मेधजातक (बौद्ध जातक कथा परिचय)
"दुम्मेधजातक" बौद्ध साहित्य की 547 जातक कथाओं में से एक प्रसिद्ध कथा है। जातक कथाएँ गौतम बुद्ध के पूर्व जन्मों (बोधिसत्त्व के रूप में) की कहानियाँ हैं, जो मुख्य रूप से नैतिक शिक्षा और जीवन के सिद्धांतों को समझाने के लिए कही गई थीं।
"दुम्मेध" शब्द का अर्थ है "मूर्ख ब्राह्मण" या "दुर्बुद्धि वाला"। यह कथा मूर्खता और बुद्धिमानी के मध्य अंतर को बहुत ही स्पष्ट और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करती है।
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कथा का सार (संक्षेप में)
1. पृष्ठभूमि: एक बार की बात है, बोधिसत्त्व का जन्म एक सेठ (धनी व्यापारी) के घर में हुआ था। उनके पिता ने उन्हें व्यापार सिखाने के लिए एक व्यापारिक यात्रा पर भेजा। रास्ते में, उनकी मुलाकात एक मूर्ख और अहंकारी ब्राह्मण (दुम्मेध) से हुई, जो अपने ज्ञान पर इतना मतवाला था कि वह किसी की सलाह नहीं सुनता था।
2. घटना: यात्रा के दौरान, उन्हें एक सुनसान जगह पर एक पुराना, सूखा चमड़ा पड़ा दिखाई दिया। ब्राह्मण ने उसे एक मछली समझ लिया। बोधिसत्त्व (सेठ का पुत्र) ने उसे समझाया कि यह मछली नहीं, बल्कि सूखा चमड़ा है और इसे खाने योग्य नहीं है। लेकिन ब्राह्मण ने अपनी बात पर अड़ा रहा।
3. परीक्षण: बोधिसत्त्व ने एक युक्ति सोची। उन्होंने कहा कि अगर यह मछली है, तो इसे पकाने पर इसकी गंध मछली जैसी आनी चाहिए। उन्होंने उस सूखे चमड़े को आग में डलवाया। जलने पर उससे चमड़े की दुर्गंध आने लगी, न कि मछली की सुगंध।
4. परिणाम: इस प्रयोग से स्पष्ट हो गया कि ब्राह्मण की धारणा गलत थी। ब्राह्मण को अपनी मूर्खता और जिद का अहसास हुआ, और वह शर्मिंदा हुआ। बोधिसत्त्व ने उसे समझाया कि अज्ञान और हठ हमेशा नुकसान ही पहुँचाते हैं।
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कथा का नैतिक संदेश
दुम्मेध जातक कथा कई गहन नैतिक शिक्षाएँ देती है:
1. अज्ञानता और हठधर्मिता का खतरा: कथा इस बात को रेखांकित करती है कि अज्ञानता तब और भी खतरनाक हो जाती है जब उसमें हठ (अपनी गलत धारणा पर अड़े रहना) जुड़ जाता है।
2. विवेक और अनुभवजन्य ज्ञान का महत्व: बोधिसत्त्व ने तर्क और प्रयोग (जलाकर देखना) के माध्यम से सत्य का पता लगाया। यह बुद्धिमानी का उदाहरण है।
3. सीखने की इच्छा: कथा हमें सिखाती है कि दूसरों की बात सुनने और सीखने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए, चाहे वह किसी भी सामाजिक स्थिति का क्यों न हो।
4. बाहरी दिखावे पर न जाना: ब्राह्मण होने के नाते उसका सम्मान था, लेकिन बुद्ध ने दिखावे से परे हटकर वास्तविक ज्ञान और बुद्धिमत्ता को महत्व दिया।
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ऐतिहासिक एवं धार्मिक संदर्भ
· बुद्ध का उपदेश: कहा जाता है कि भगवान बुद्ध ने यह कथा तब सुनाई थी जब कोई व्यक्ति अपनी गलतफहमी पर अड़ा हुआ था। बुद्ध ने बताया कि वह मूर्ख ब्राह्मण आज का अड़ियल व्यक्ति है और बोधिसत्त्व स्वयं बुद्ध थे।
· जातक ग्रंथ: यह कथा "जातक अट्ठकथा" (जातक कथाओं की टीका) में संग्रहित है, जो पालि भाषा में लिखी गई है।
· लोकप्रियता: अपनी सरलता और गहन संदेश के कारण यह कथा बौद्ध देशों में बहुत लोकप्रिय है और इसे बच्चों को नैतिक शिक्षा देने के लिए अक्सर सुनाया जाता है।
निष्कर्ष:
दुम्मेध जातक एक लघुलेकिन शक्तिशाली कथा है जो आज के युग में भी उतनी ही प्रासंगिक है। यह हमें अहंकार छोड़कर, तर्क और विवेक से काम लेने तथा सीखने के लिए खुले रहने की प्रेरणा देती है। यह कथा बुद्ध की शिक्षा का सार दर्शाती है - कि मूर्खता दुःख का कारण है और प्रज्ञा (बुद्धिमत्ता) ही मुक्ति का मार्ग है।
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