वेदेहिकाय वीमंसा: एक परिचय

"वेदेहिकाय वीमंसा" (Vedehikāya Vīmaṃsā) एक महत्वपूर्ण बौद्ध ग्रंथ है। यहाँ इसका परिचय दिया जा रहा है:

वेदेहिकाय वीमंसा: एक परिचय

"वेदेहिकाय वीमंसा" का शाब्दिक अर्थ है "विदेहिका (नामक भिक्षुणी) की जाँच-पड़ताल"। यह बौद्ध धर्म के प्रारंभिक ग्रंथों (पालि तिपिटक) में स्थित एक महत्वपूर्ण सूत्र (सुत्त) है, जो विनय (शिष्टाचार संहिता) और मनोविज्ञान पर गहन प्रकाश डालता है।

यह कथा विशेष रूप से भिक्षुणी संघ में हुई एक घटना और उससे जुड़े नियमों के बारे में बताती है।

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1. स्रोत और स्थान

· यह सूत्र पालि तिपिटक के सुत्तपिटक के मज्झिम निकाय (मध्यम संग्रह) के उपरि पण्णासक (अंतिम पचास सूत्रों के समूह) में संकलित है।
· इसे "विदेहिका-सुत्त" (Vedehika Sutta) के नाम से भी जाना जाता है।

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2. कथा का सारांश

यह सूत्र एक भिक्षुणी (बौद्ध साध्वी) विदेहिका (Vedehikā) की कहानी कहता है:

· प्रतिष्ठा: विदेहिका भिक्षुणी बाहरी तौर पर बहुत शांत, सहनशील और मृदुभाषी मानी जाती थी। उसकी इस "अच्छी प्रतिष्ठा" का बाहरी चर्चा थी।
· संदेह: कुछ भिक्षुणियों को इस बात पर संदेह हुआ कि क्या उसका यह शांत और सहनशील स्वभाव वास्तविक है या केवल दिखावा है। उन्होंने यह जाँच करने का निश्चय किया कि क्या वह वास्तव में अपने स्वभाव पर पूरी तरह काबू रखती है।
· परीक्षण: उन्होंने जान-बूझकर विदेहिका के सेवक (उपासिका) के सामने उसकी बुराई करनी शुरू कर दी और देखना चाहा कि वह कैसी प्रतिक्रिया देती है।
· परिणाम: जब विदेहिका को इस बात का पता चला, तो वह अत्यधिक क्रोधित हो गई और उसने अपनी सेवक को डाँटा-फटकारा। इस घटना ने साबित कर दिया कि उसकी शांति और सहनशीलता सतही और दिखावटी थी। उसके भीतर का क्रोध अभी भी मौजूद था।

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3. शिक्षा और महत्व

इस सूत्र से मिलने वाली प्रमुख शिक्षाएँ इस प्रकार हैं:

1. वास्तविक और कृत्रिम चरित्र में अंतर: यह सूत्र बाहरी दिखावे और आंतरिक वास्तविकता के बीच के अंतर को उजागर करता है। असली सदाचार केवल दिखावे के लिए नहीं, बल्कि आंतरिक शुद्धि से उपजता है।
2. क्रोध का खतरा: यह कथा दर्शाती है कि क्रोध (कोध/दोस) एक शक्तिशाली मानसिक अशुद्धि है, जो सबसे "शांत" दिखने वाले व्यक्ति के भीतर भी छिपा हो सकता है और उचित परिस्थितियों में बाहर निकल आता है।
3. आत्म-जांच (वीमंसा) का महत्व: यह सूत्र हमें स्वयं की आंतरिक स्थिति की जाँच करने का संदेश देता है। हमें अपने दोषों को छुपाने के बजाय, उन्हें पहचानकर उन पर काम करना चाहिए।
4. विनय के नियम: इस घटना के बाद, बुद्ध ने भिक्षुणियों के लिए एक नियम (विनय) बनाया कि यदि कोई भिक्षुणी क्रोधवश किसी उपासिका (श्रद्धालु महिला) को डाँटे-फटकारे, तो वह दोषी मानी जाएगी। इस प्रकार यह सूत्र भिक्षुणी विनय का एक आधार बना।

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4. दार्शनिक संदर्भ

यह सूत्र बौद्ध मनोविज्ञान की गहरी समझ प्रस्तुत करता है। यह दर्शाता है कि बौद्ध धर्म केवल बाहरी आचरण तक सीमित नहीं है, बल्कि उसका लक्ष्य मन की अशुद्धियों (क्लेश) जैसे क्रोध, लोभ, मोह का पूर्ण रूप से उन्मूलन करना है। जब तक ये अशुद्धियाँ मन में विद्यमान हैं, तब तक वास्तविक शांति और मुक्ति संभव नहीं है।

निष्कर्ष:
"वेदेहिकाय वीमंसा"एक लघु लेकिन अत्यंत गहन सूत्र है जो हमें आत्म-जांच, वास्तविक चरित्र-निर्माण और मानसिक अशुद्धियों पर विजय पाने की प्रेरणा देता है। यह हमें सिखाता है कि असली धार्मिकता दिखावे से परे हृदय की शुद्धि में निहित है।

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