गिलान भिक्खु (रोगी भिक्षु): एक परिचय
"गिलान भिक्खु" (Gilāna Bhikkhu) का परिचय प्रस्तुत है।
गिलान भिक्खु (रोगी भिक्षु): एक परिचय
"गिलान भिक्खु" का शाब्दिक अर्थ है "रोगी भिक्षु" या "बीमार साधक"। बौद्ध ग्रंथों में यह शब्द किसी एक विशिष्ट भिक्षु के बजाय, बौद्ध संघ (संघ) में रोगग्रस्त भिक्षुओं की देखभाल और उनसे जुड़े नियमों (विनय) के एक महत्वपूर्ण सेट को संदर्भित करता है।
भगवान बुद्ध द्वारा बनाए गए नियमों में रोगी भिक्षुओं की देखभाल और उनके लिए छूट को विशेष स्थान दिया गया है, जो बौद्ध धर्म की करुणा और व्यावहारिक जीवन दृष्टि को दर्शाता है।
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1. ऐतिहासिक संदर्भ और महत्व
· मूल सिद्धांत: बुद्ध ने संघ के सदस्यों के लिए एक साधारण जीवनशैली और कुछ नियम (जैसे एक समय भोजन, सादा भिक्षा आहार आदि) बनाए थे।
· आवश्यकता: हालाँकि, जब कोई भिक्षु बीमार पड़ता था, तो इन सामान्य नियमों का पालन करना उसके लिए कठिन या स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता था।
· बुद्ध की दूरदर्शिता: इस आवश्यकता को समझते हुए, बुद्ध ने यह सिद्धांत दिया कि "रोगी की देखभाल सर्वोच्च धर्म है"। उन्होंने रोगी भिक्षुओं के लिए विशेष अनुमतियाँ (छूट) प्रदान कीं।
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2. रोगी भिक्षु के लिए विशेष अनुमतियाँ (छूट)
जब कोई भिक्षु वास्तव में बीमार होता था, तो उसे सामान्य विनय नियमों से कुछ छूट दी जाती थी। उदाहरण के लिए:
1. भोजन संबंधी छूट:
· एक समय भोजन के नियम में ढील: रोगी भिक्षु को दिन में एक बार से अधिक, आवश्यकता पड़ने पर पोषण के लिए भोजन लेने की अनुमति थी।
· विशेष आहार: उसे सामान्य भिक्षा के अलावा, स्वास्थ्य लाभ के लिए विशेष प्रकार के हल्के और पौष्टिक आहार (जैसे, यावक पानी, मंड, घी, शहद आदि) की अनुमति थी।
2. जीवनशैली संबंधी छूट:
· सामग्री का उपयोग: सामान्य भिक्षु के पास बहुत कम सामान रखने का नियम था, लेकिन रोगी भिक्षु को औषधियाँ, कंबल, बिस्तर आदि रखने की अनुमति थी।
· सेवा-शुश्रूषा: स्वस्थ भिक्षुओं का कर्तव्य था कि वे रोगी भिक्षु की देखभाल करें, उसके लिए भिक्षा लेकर आएं, उसका उपचार करें और उसकी सेवा करें।
3. अनुष्ठान संबंधी छूट:
· रोगी भिक्षु को दैनिक संघ की गतिविधियों (जैसे प्रवचन, उपोसथ आदि) में भाग लेने से मुक्ति दी जाती थी।
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3. प्रमुख शिक्षाएँ और दार्शनिक महत्व
गिलान भिक्खु से जुड़े नियमों से कई गहरी शिक्षाएँ मिलती हैं:
1. करुणा का व्यावहारिक स्वरूप: बुद्ध की शिक्षा केवल दार्शनिक चिंतन तक सीमित नहीं थी। उन्होंने करुणा को व्यावहारिक जीवन में उतारा। रोगी की सेवा को सबसे बड़ा पुण्यकार्य माना गया।
2. मध्यम मार्ग का प्रतिबिंब: ये नियम "मध्यम मार्ग" के सिद्धांत को दर्शाते हैं। कठोर तपस्या और भोग-विलास, दोनों से बचते हुए, शारीरिक स्वास्थ्य की आवश्यकताओं को समझना और उन्हें पूरा करना ही बुद्धिमानी है।
3. सामुदायिक जिम्मेदारी: यह संघ के सदस्यों के बीच परस्पर सहायता और सामुदायिक दायित्व की भावना को मजबूत करता है। बुद्ध ने कहा था, "जो रोगी की सेवा करता है, वह मेरी ही सेवा करता है।"
4. शरीर और मन का संतुलन: बौद्ध दर्शन मन की शुद्धि पर जोर देता है, लेकिन यह शारीरिक स्वास्थ्य के महत्व को भी नकारता नहीं है। एक स्वस्थ शरीर साधना के लिए अनुकूल होता है।
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4. एक प्रसिद्ध उदाहरण
बौद्ध ग्रंथों में महा कस्सप थेर (महाकाश्यप) की एक घटना का उल्लेख है। एक बार वे गंभीर रूप से बीमार पड़े। तब स्वयं बुद्ध ने उनकी देखभाल की और उन्हें धर्म का उपदेश दिया। यह घटना इस बात का प्रमाण है कि बुद्ध ने न केवल नियम बनाए बल्कि स्वयं भी रोगी की सेवा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी।
निष्कर्ष:
"गिलान भिक्खु"की अवधारणा बौद्ध धर्म की मानवीय संवेदनशीलता और व्यावहारिक बुद्धिमत्ता को दर्शाती है। यह सिखाती है कि आध्यात्मिक मार्ग पर चलते हुए भी शारीरिक स्वास्थ्य और साथी साधकों के प्रति करुणा का भाव बनाए रखना कितना आवश्यक है। यह बौद्ध संघ को एक ऐसा देखभाल करने वाला समुदाय बनाता है, जहाँ हर सदस्य की भलाई का ध्यान रखा जाता है।
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