महाजनी सभ्यता की समीक्षा कीजिए
महाजनी सभ्यता: प्रेमचंद की वैचारिक दृष्टि का शिखर - एक विस्तृत समीक्षा
📜 1. रचना का ऐतिहासिक संदर्भ और महत्व
प्रेमचंद द्वारा लिखित "महाजनी सभ्यता" एक वैचारिक दस्तावेज है जो सन् 1936 में उनकी मृत्यु से कुछ दिनों पहले लिखा गया था। यह लेख उनके समग्र चिंतन का निचोड़ और निष्कर्ष माना जाता है। 1901 से 1936 तक की अपनी साहित्यिक यात्रा में प्रेमचंद ने भारतीय समाज के अंतर्विरोधों और विडंबनाओं को गहराई से पहचाना और उसे अपने लेखन में उतारा। यह लेख उनकी वैचारिक परिपक्वता का शिखर बिंदु है, जहाँ वे पूँजीवादी व्यवस्था की क्रूरताओं का खुलासा करते हैं।
इस लेख का ऐतिहासिक महत्व इस बात में निहित है कि यह स्वतंत्रता पूर्व भारत की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का एक सटीक दस्तावेज है। प्रेमचंद ने इसमें उस समय के वैश्विक पूँजीवाद के प्रभावों का विश्लेषण किया है, जब भारत अंग्रेजी शोषण का शिकार था और देश में सामंती व्यवस्था और पूँजीवाद का विषम संगम हो रहा था।
💡 2. मुख्य विषयवस्तु और वैचारिक आधार
"महाजनी सभ्यता" लेख का केंद्रीय विचार पूँजीवादी व्यवस्था की क्रूरता और उसके मानवीय मूल्यों के विघटनकारी प्रभावों पर आधारित है। प्रेमचंद लिखते हैं:
"इस महाजनी सभ्यता के सारे कामों की अरज पैसा होता है... इस दृष्टि से मानो आज महाजनों का ही राज्य है। मनुष्य समाज दो भागों में बंट गया है। बड़ा हिस्सा तो मरने और खपनेवालों का है। और, बहुत ही छोटा हिस्सा उन लोगों का है, जो अपनी शक्ति और प्रभाव से बड़े संप्रदाय को अपने वश में किए हुए है।"
प्रेमचंद के अनुसार, इस व्यवस्था में मानवीय संबंध तक व्यावसायिक हो गए हैं, जहाँ पिता पुत्र के लिए टहलुआ बन जाता है और माँ टहलुई। इस व्यवस्था की आत्मा व्यक्तिवाद है, जो समाज में शिकार और शिकारी का संबंध स्थापित करती है।
तालिका: महाजनी सभ्यता के मुख्य लक्षण
लक्षण विवरण प्रभाव
धन केंद्रितता सभी कार्यों का उद्देश्य पैसा कमाना मानवीय मूल्यों का ह्रास
वर्ग विभाजन समाज का दो भागों में बंटवारा शोषक और शोषित का संघर्ष
व्यक्तिवाद व्यक्तिगत लाभ की प्रधानता सामूहिकता का नाश
शोषण बड़े वर्ग का छोटे वर्ग द्वारा शोषण आर्थिक असमानता
🔍 3. सामाजिक-आर्थिक समीक्षा
प्रेमचंद ने "महाजनी सभ्यता" में भारतीय समाज की गहरी समझ दर्शाई है। उन्होंने समाज के दो वर्गों की पहचान की - एक ओर शोषक वर्ग (जमींदार, पूँजीपति, व्यवसायी और अंग्रेजी सत्ता के नौकरशाह) और दूसरी ओर शोषित वर्ग (किसान, मजदूर, दलित और स्त्रियाँ)। प्रेमचंद का मानना था कि शिक्षित वर्ग सदैव शासन का आश्रित रहता है और उसका स्वार्थ शासन के सुदृढ़ रहने में होता है।
वे गाँधीवादी विचारधारा से प्रभावित दिखाई देते हैं, विशेष रूप से मनुष्य का हृदय परिवर्तन, वर्ग समन्वय, और नैतिक जीवन के सिद्धांतों से। परंतु बाद के वर्षों में प्रेमचंद इन समाधानों से असंतुष्ट दिखाई देते हैं और उन्हें लगता है कि मार्क्सवाद के सिद्धांत अधिक प्रासंगिक हो सकते हैं।
प्रेमचंद के शब्दों में:
"जिस राष्ट्र में तीन-चौथाई आदमी भूखों मरते हों, वहां किसी एक को बहुत-सा धन कमाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है, चाहे इसकी उसमें सामर्थ्य हो।"
✍️ 4. साहित्यिक शैली और भाषा
"महाजनी सभ्यता" की भाषा-शैली वैचारिक और आलोचनात्मक है। प्रेमचंद ने तर्कसंगत और विचारप्रधान शैली अपनाई है, जिसमें व्यंग्य और कटु सत्य का समन्वय है। उनकी भाषा सरल और प्रभावी है, जो जटिल आर्थिक सिद्धांतों को भी सामान्य पाठक के लिए बोधगम्य बना देती है।
लेख में आर्थिक शब्दावली का प्रयोग है, परंतु वह साहित्यिक गरिमा से युक्त है। प्रेमचंद ने उदाहरणों और तुलनाओं के माध्यम से पूँजीवादी व्यवस्था की विसंगतियों को उजागर किया है। जैसे कि वे लिखते हैं:
"यह सभ्यता शहद और दूध की नदी अपने कब्जे में रखना चाहती है और किसी दूसरे को एक घूंट भी नहीं देना चाहती। वह खुद आराम से अपना पेट भरेगी, चाहे दुनिया भूखी मरे।"
🌍 5. समकालीन प्रासंगिकता
"महाजनी सभ्यता" की वर्तमान समय में प्रासंगिकता असंदिग्ध है। आज के वैश्विक पूँजीवाद और उदारीकरण के युग में प्रेमचंद की यह रचना और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। आर्थिक असमानता का बढ़ता व्यापार, बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रभुत्व, और मानवीय मूल्यों का ह्रास - ये सभी phenomena प्रेमचंद द्वारा लगभग एक सदी पहले पहचाने जा चुके थे।
आज जब वैश्विक अर्थव्यवस्था में कुछ व्यक्तियों और कंपनियों का एकाधिकार बढ़ रहा है और श्रमिक वर्ग शोषण का शिकार हो रहा है, तब प्रेमचंद की यह चेतावनी और भी सारगर्भित लगती है:
"पूंजीवाद समाज और व्यक्ति के बीच शिकार और शिकारी का रिश्ता कायम करता है। शिकारी के मन में शिकार के प्रति कोई भाव, कोई संवेदना नहीं होनी चाहिए।"
⚖️ 6. प्रेमचंद की वैचारिक यात्रा में स्थान
"महाजनी सभ्यता" प्रेमचंद की वैचारिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण मोड़ represents करता है। अपने आरंभिक साहित्यिक जीवन में प्रेमचंद गाँधीवादी विचारों से प्रभावित दिखाई देते थे और हृदय परिवर्तन तथा वर्ग समन्वय में विश्वास रखते थे। परंतु 1932 तक आते-आते वे इन समाधानों से असंतुष्ट हो गए और महसूस किया कि वर्ग संघर्ष को आसानी से नहीं समाप्त किया जा सकता।
यह लेख इस बात का प्रमाण है कि प्रेमचंद की वैचारिक परिपक्वता अपने चरम पर पहुँच चुकी थी। वे सामाजिक न्याय के प्रति इतने commitment थे कि उन्होंने नैतिक प्रतिबद्धता को अपने साहित्य का आधार बनाया। इसी commitment के कारण उनका साहित्य शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति और शोषक वर्ग के प्रति आक्रोश से भरा हुआ है।
📊 7. तुलनात्मक विश्लेषण
प्रेमचंद की "महाजनी सभ्यता" को समकालीन विचारकों के साथ तुलना करने पर इसकी मौलिकता और अधिक स्पष्ट होती है। जहाँ मार्क्स ने वर्ग संघर्ष की बात की, वहीं प्रेमचंद ने भारतीय संदर्भ में इसे जमींदार-किसान संबंधों और साम्राज्यवादी शोषण के संदर्भ में analyse किया।
गाँधी के सर्वोदय और अंत्योदय के विचारों से प्रेमचंद प्रभावित तो थे, परंतु उन्होंने आर्थिक समानता पर अधिक बल दिया। प्रेमचंद का मानना था कि राष्ट्रीयता या स्वराज्य विशाल किसान जागरण का स्वप्न है, जिसके द्वारा भेदभाव और शोषण से मुक्त समाज बनेगा।
तालिका: प्रेमचंद के विचारों का विकास
कालखंड वैचारिक झुकाव मुख्य विशेषताएँ
1901-1920 राष्ट्रवादी विचारधारा देशभक्ति और सामाजिक सुधार
1921-1930 गाँधीवादी प्रभाव हृदय परिवर्तन और वर्ग समन्वय
1931-1936 मार्क्सवादी झुकाव वर्ग संघर्ष और आर्थिक न्याय
✅ 8. निष्कर्ष
"महाजनी सभ्यता" प्रेमचंद की वैचारिक दृष्टि का सर्वोत्तम प्रतिनिधित्व करने वाला लेख है, जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उस समय था। यह लेख न केवल पूँजीवादी व्यवस्था की कमियों को उजागर करता है, बल्कि मानवीय मूल्यों के पतन का मार्मिक चित्रण भी प्रस्तुत करता है।
प्रेमचंद की नैतिक प्रतिबद्धता और सामाजिक न्याय के प्रति समर्पण इस लेख की सबसे बड़ी strength है। आज के globalized world में, जब पूँजीवाद अपने विकराल रूप में सामने आ रहा है, प्रेमचंद का यह लेख एक चेतावनी के रूप में और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गया है।
प्रेमचंद का यह मानना था कि साहित्य केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का tool भी होना चाहिए। "महाजनी सभ्यता" इसी विचार का सर्वोत्तम उदाहरण है, जो पाठकों को न केवल सोचने पर मजबूर करता है, बल्कि सामाजिक responsibility का भी बोध कराता है।
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