पालि साहित्य का इतिहास उद्भव विकास और प्रमुख आचार्यों का योगदान -प्रा। डॉ संघप्रकाश दुड्डे

# पालि साहित्य का इतिहास, उद्भव, विकास और प्रमुख आचार्यों का योगदान

## पालि साहित्य का परिचय और महत्व

पालि भारत की सबसे प्राचीन ज्ञात भाषाओं में से एक है जिसे "प्रथम प्राकृत" की संज्ञा दी जाती है। यह भाषा बौद्ध धर्म के मूल ग्रंथों की भाषा है और भगवान बुद्ध ने अपने उपदेश इसी भाषा में दिए थे। पालि साहित्य न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है ।

## पालि भाषा का उद्भव और नामकरण

पालि शब्द की व्युत्पत्ति के संबंध में विद्वानों के विभिन्न मत हैं:

1. **पंक्ति शब्द से**: पंडित विष्णु शेखर भट्टाचार्य के अनुसार पालि शब्द संस्कृत 'पंक्ति' से व्युत्पन्न हुआ है (पंक्ति > पन्ति > पट्ठि > पल्लि > पालि) ।

2. **पाटलिपुत्र से**: जर्मन विद्वान मैक्स वैलेसर ने पालि को 'पाटलि' का संक्षिप्त रूप माना है जो पाटलिपुत्र की प्राचीन भाषा से संबंधित है ।

3. **परियाय शब्द से**: भिक्षु जगदीश कश्यप ने पालि को 'परियाय' (पर्याय) शब्द से व्युत्पन्न बताया है ।

4. **पाठ/मूलपाठ से**: कुछ विद्वानों का मानना है कि पालि का अर्थ "मूलपाठ" या "बुद्धवचन" है ।

## पालि साहित्य का ऐतिहासिक विकास

### 1. आदि काल (ई.पू. 700-543)
- भगवान बुद्ध के जन्म से पूर्व पालि भाषा का अस्तित्व था
- बुद्ध ने इसी भाषा में अपने उपदेश दिए
- इस काल में साहित्य मौखिक परंपरा में था 

### 2. मध्य काल (ई.पू. 543-325)
- बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद का काल
- प्रथम बौद्ध संगीति (483 ई.पू.) में बुद्धवचनों का संकलन
- द्वितीय संगीति (383 ई.पू.) में विनयपिटक का विकास 

### 3. स्वर्ण काल (ई.पू. 325-ई.सन् 600)
- तृतीय संगीति (250 ई.पू.) अशोक के काल में
- तिपिटक का पूर्ण विकास
- पालि साहित्य का श्रीलंका में प्रसार 

### 4. वर्तमान काल (600 ई. से अब तक)
- पालि साहित्य का संरक्षण और व्याख्या काल
- अट्ठकथाओं और टीकाओं का निर्माण
- आधुनिक समय में पालि अध्ययन 

## पालि साहित्य की प्रमुख रचनाएँ

### त्रिपिटक (तीन पिटक)
1. **विनय पिटक**: भिक्षु संघ के नियम और आचार संहिता
2. **सुत्त पिटक**: बुद्ध के उपदेशों और संवादों का संग्रह
   - दीघनिकाय, मज्झिमनिकाय, संयुत्तनिकाय, अंगुत्तरनिकाय, खुद्दकनिकाय
3. **अभिधम्म पिटक**: बौद्ध दर्शन और मनोविज्ञान का विस्तृत विवेचन 

### अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथ
- **धम्मपद**: नैतिक शिक्षाओं का संग्रह
- **जातक कथाएँ**: बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथाएँ
- **मिलिंदपन्ह**: यूनानी राजा मिलिंद और भिक्षु नागसेन के संवाद 

## पालि साहित्य के प्रमुख आचार्य और उनका योगदान

### 1. आचार्य बुद्धघोष (5वीं शताब्दी ई.)
- पालि साहित्य के सबसे महत्वपूर्ण व्याख्याकार
- श्रीलंका से सिंहली अट्ठकथाओं को पालि में अनूदित किया
- प्रमुख रचनाएँ:
  - **विसुद्धिमग्ग**: बौद्ध ध्यान और आचरण पर ग्रंथ
  - **अट्ठसालिनी**: धम्मसंगणि की अट्ठकथा
  - सुत्तपिटक की अट्ठकथाएँ 

### 2. आचार्य बुद्धदत्त (5वीं-6वीं शताब्दी)
- बुद्धघोष के समकालीन
- प्रमुख रचनाएँ:
  - **मधुरत्थविलासिनी**: बुद्धवंस की टीका
  - **उत्तरविहारविनिच्छय**: विनय विषयक ग्रंथ

### 3. आचार्य धम्मपाल (6वीं शताब्दी)
- थेरीगाथा की टीका लिखी
- पेटकोपदेश नामक ग्रंथ की रचना की

### 4. आचार्य अनुरुद्ध (11वीं-12वीं शताब्दी)
- **अभिधम्मत्थसंगह**: अभिधम्म का संक्षिप्त सार
- **नामरूपपरिच्छेद**: दार्शनिक विषयों पर ग्रंथ

## पालि साहित्य की भाषायी विशेषताएँ

1. **ध्वनि संरचना**:
   - 47 ध्वनियाँ (ऋ, ऐ, औ स्वर नहीं)
   - श, ष व्यंजनों का अभाव
   - विसर्ग नहीं मिलता 

2. **व्याकरण**:
   - प्रारंभ में कोई व्याकरण ग्रंथ नहीं
   - बाद में तीन व्याकरण प्रणालियाँ विकसित हुईं:
     - कच्चायन व्याकरण
     - मोग्गालायन व्याकरण
     - अग्गवंसकृत सद्दनिति 

3. **शब्दावली**:
   - संस्कृत की तुलना में सरल
   - लोकप्रिय शब्दों की अधिकता
   - प्राकृत भाषाओं से समानता

## पालि साहित्य का सांस्कृतिक प्रभाव

1. **भारतीय संस्कृति पर**:
   - अहिंसा, करुणा और समता के सिद्धांतों का प्रसार
   - सामाजिक समरसता को बढ़ावा
   - साहित्य और कला को प्रभावित किया

2. **अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव**:
   - श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, कंबोडिया आदि देशों में फैला
   - दक्षिण-पूर्व एशियाई संस्कृतियों को गहराई से प्रभावित किया 

3. **आधुनिक युग में**:
   - बौद्ध धर्म के अध्ययन का मुख्य स्रोत
   - विश्वविद्यालयों में पालि अध्ययन की व्यवस्था
   - भारतीय दर्शन और संस्कृति को समझने का महत्वपूर्ण माध्यम 

## निष्कर्ष

पालि साहित्य भारतीय साहित्य की एक अमूल्य धरोहर है जिसने न केवल बौद्ध धर्म के विकास में बल्कि सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति और दर्शन के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भगवान बुद्ध के उपदेशों से प्रारंभ हुई यह साहित्यिक परंपरा आज भी विश्व भर के विद्वानों और शोधार्थियों के लिए ज्ञान का अक्षय भंडार है। पालि भाषा और साहित्य का अध्ययन न केवल प्राचीन भारत को समझने के लिए आवश्यक है बल्कि मानवता के सार्वभौमिक मूल्यों को जानने का भी एक सशक्त माध्यम है।

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