विश्व का प्रथम गणतंत्र वैशाली-डॉ संघप्रकाश दुड्डे
वैशाली बिहार प्रान्त के वैशाली जिला में स्थित एक गाँव है। ऐतिहासिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध यह गाँव मुजफ्फरपुर से अलग होकर १२ अक्टुबर १९७२ को वैशाली के जिला बनने पर इसका मुख्यालय हाजीपुर बनाया गया। मगही,वज्जिका यहाँ की मुख्य भाषा है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार वैशाली में ही विश्व का सबसे पहला गणतंत्र यानि "रिपब्लिक" कायम किया गया था।[1] भगवान महावीर की जन्म स्थली होने के कारण जैन धर्म के मतावलम्बियों के लिए वैशाली एक पवित्र स्थल है।[2] भगवान बुद्ध का इस धरती पर तीन बार आगमन हुआ, यह उनकी कर्म भूमि भी थी। महात्मा बुद्ध के समय सोलह महाजनपदों में वैशाली का स्थान मगध के समान महत्त्वपूर्ण था। अतिमहत्त्वपूर्ण बौद्ध एवं जैन स्थल होने के अलावा यह जगह पौराणिक हिन्दू तीर्थ एवं पाटलीपुत्र जैसे ऐतिहासिक स्थल के निकट है। मशहूर राजनर्तकी और नगरवधू आम्रपाली, अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध था, और इस शहर को समृद्ध बनाने में एक बड़ी मदद की।[3] आज वैशाली पर्यटकों के लिए भी बहुत ही लोकप्रिय स्थान है। वैशाली में आज दूसरे देशों के कई मंदिर भी बने हुए हैं।
वैशाली | |||||||
— जिला — | |||||||
देश | ![]() | ||||||
राज्य | बिहार | ||||||
जनसंख्या • घनत्व | २७,१८,४२१ (२००2 के अनुसार ) • १३३५ प्रति वर्ग किलो मीटर | ||||||
क्षेत्रफल | २,०३६ वर्ग किलोमीटर कि.मी² | ||||||
विभिन्न कोड
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- वैशाली जन का प्रतिपालक, विश्व का आदि विधाता,
जिसे ढूंढता विश्व आज, उस प्रजातंत्र की माता॥
रुको एक क्षण पथिक, इस मिट्टी पे शीश नवाओ,
राज सिद्धियों की समाधि पर फूल चढ़ाते जाओ|| (रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियाँ)
वैशाली का नामाकरण महाभारत काल एक राजा ईक्ष्वाकु वंशीय राजा विशाल के नाम पर हुआ है। विष्णु पुराण में इस क्षेत्र पर राज करने वाले ३४ राजाओं का उल्लेख है, जिसमें प्रथम नमनदेष्टि तथा अंतिम सुमति या प्रमाति थे। इस राजवंश में २४ राजा हुए।[4] राजा सुमति अयोध्या नरेश भगवान राम के पिता राजा दशरथ के समकालीन थे। ईसा पूर्व सातवीं सदी के उत्तरी और मध्य भारत में विकसित हुए १६ महाजनपदों में वैशाली का स्थान अति महत्त्वपूर्ण था। नेपाल की तराई से लेकर गंगा के बीच फैली भूमि पर वज्जियों तथा लिच्छवियों के संघ (अष्टकुल) द्वारा गणतांत्रिक शासन व्यवस्था की शुरुआत की गयी थी। लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व में यहाँ का शासक जनता के प्रतिनिधियों द्वारा चुना जाने लगा और गणतंत्र की स्थापना हुई। विश्व को सर्वप्रथम गणतंत्र का ज्ञान करानेवाला स्थान वैशाली ही है। आज वैश्विक स्तर पर जिस लोकशाही को अपनाया जा रहा है, वह यहाँ के लिच्छवी शासकों की ही देन है। प्राचीन वैशाली नगर अति समृद्ध एवं सुरक्षित नगर था जो एक-दूसरे से कुछ अन्तर पर बनी हुई तीन दीवारों से घिरा था। प्राचीन ग्रन्थों में वर्णन मिलता है कि नगर की किलेबन्दी यथासम्भव इन तीनों कोटि की दीवारों से की जाए ताकि शत्रु के लिए नगर के भीतर पहुँचना असम्भव हो सके। चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार पूरे नगर का घेरा १४ मील के लगभग था।
मौर्य और गुप्त राजवंश में जब पाटलीपुत्र (आधुनिक पटना) राजधानी के रूप में विकसित हुआ, तब वैशाली इस क्षेत्र में होने वाले व्यापार और उद्योग का प्रमुख केन्द्र था। भगवान बुद्ध ने वैशाली के समीप कोल्हुआ में अपना अन्तिम सम्बोधन दिया था। इसकी याद में महान मौर्य सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व सिंह स्तम्भ का निर्माण करवाया था। महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण के लगभग १०० वर्ष बाद वैशाली में दूसरे बौद्ध परिषद् का आयोजन किया गया था। इस आयोजन की याद में दो बौद्ध स्तूप बनवाये गये। वैशाली के समीप ही एक विशाल बौद्ध मठ है, जिसमें महात्मा बुद्ध उपदेश दिया करते थे। भगवान बुद्ध के सबसे प्रिय शिष्य आनंद की पवित्र अस्थियाँ हाजीपुर (पुराना नाम - उच्चकला) के पास एक स्तूप में रखी गयी थी।
वैशाली को महान भारतीय दरबारी आम्रपाली की भूमि के रूप में भी जाना जाता है, जो कई लोक कथाओं के साथ-साथ बौद्ध साहित्य में भी दिखाई देती है। आम्रपाली बुद्ध की शिष्या बन गई थी। मनुदेव संघ के शानदार लिच्छवी कबीले के प्रसिद्ध राजा थे, जिन्होंने वैशाली में अपने नृत्य प्रदर्शन को देखने के बाद आम्रपाली के पास रहना चाहा।[5] वैशाली को चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर के जन्म स्थल का गौरव भी प्राप्त है। जैन धर्मावलम्बियों के लिए वैशाली काफी महत्त्वपूर्ण है। यहीं पर ५९९ ईसा पूर्व में जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म कुंडलपुर (कुंडग्राम) में हुआ था। वज्जिकुल में जन्में भगवान महावीर यहाँ २२ वर्ष की उम्र तक रहे थे। इस तरह वैशाली हिन्दू धर्म के साथ-साथ भारत के दो अन्य महत्त्वपूर्ण धर्मों का केन्द्र था। बौद्ध तथा जैन धर्मों के अनुयायियों के अलावा ऐतिहासिक पर्यटन में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए भी वैशाली महत्त्वपूर्ण है। वैशाली की भूमि न केवल ऐतिहासिक रूप से समृद्ध है वरन् कला और संस्कृति के दृष्टिकोण से भी काफी धनी है। वैशाली जिला के चेचर (श्वेतपुर) से प्राप्त मूर्तियाँ तथा सिक्के पुरातात्विक महत्त्व के हैं।
पूर्वी भारत में मुस्लिम शासकों के आगमन के पूर्व वैशाली मिथिला के कर्नाट वंश के शासकों के अधीन रहा लेकिन जल्द ही यहाँ बख्तियार खिलजी का शासन हो गया। तुर्क-अफगान काल में बंगाल के एक शासक हाजी इलियास शाह ने १३४५ ई॰ से १३५८ ई॰ तक यहाँ शासन किया। बाबर ने भी अपने बंगाल अभियान के दौरान गंडक तट के पार अपनी सैन्य टुकड़ी को भेजा था। १५७२ ई॰ से १५७४ ई॰ के दौरान बंगाल विद्रोह को कुचलने के क्रम में अकबर की सेना ने दो बार हाजीपुर किले पर घेरा डाला था। १८वीं सदी के दौरान अफगानों द्वारा तिरहुत कहलानेवाले इस प्रदेश पर कब्जा किया।
स्वतंत्रता आन्दोलन के समय वैशाली के शहीदों की अग्रणी भूमिका रही है। बसावन सिंह, बेचन शर्मा, अक्षयवट राय, सीताराम सिंह, बैकण्ठ शुक्ला, योगेन्द्र शुक्ला जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ाई में महत्त्वपूर्ण हिस्सा लिया। आजादी की लड़ाई के दौरान १९२०, १९२५ तथा १९३४ में महात्मा गाँधी का वैशाली में आगमन हुआ था। वैशाली की नगरवधू आचार्य चतुरसेन के द्वारा लिखी गयी एक रचना है जिसका फिल्मांतरण भी हुआ, जिसमें अजातशत्रु की भूमिका अभिनेता श्री सुनील दत्त द्वारा निभायी गयी है।
वैशाली की जलवायु मानसूनी प्रकार की है। वास्तव में तत्कालीन वैशाली का विस्तार आजकल के उत्तर प्रदेश स्थित देवरिया एवं कुशीनगर जनपद से लेकर के बिहार के गाजीपुर तक था। इस प्रदेश में पतझड़ वाले वृक्ष पाये जाते हैं। जिनमें आम, महुआ, कटहल, लीची, जामुन, शीशम, बरगद, शहतूत आदि की प्रधानता है। भौगोलिक रूप से यह एक मैदानी प्रदेश है जहाँ अनेक नदियाँ बहती हैं, इसका एक बड़ा हिस्सा तराई प्रदेश में गिना जाता है।
दर्शनीय स्थल
सम्राट अशोक ने वैशाली में हुए महात्मा बुद्ध के अन्तिम उपदेश की याद में नगर के समीप सिंह स्तम्भ की स्थापना की थी। पर्यटकों के बीच यह स्थान लोकप्रिय है। दर्शनीय मुख्य परिसर से लगभग ३ किलोमीटर दूर कोल्हुआ यानी बखरा गाँव में हुई खुदाई के बाद निकले अवशेषों को पुरातत्व विभाग ने चारदीवारी बनाकर सहेज रखा है। परिसर में प्रवेश करते ही खुदाई में मिला इँटों से निर्मित गोलाकार स्तूप और अशोक स्तम्भ दिखायी दे जाता है। एकाश्म स्तम्भ का निर्माण लाल बलुआ पत्थर से हुआ है। इस स्तम्भ के ऊपर घण्टी के आकार की बनावट है (लगभग १८.३ मीटर ऊँची) जो इसको और आकर्षक बनाता है। अशोक स्तम्भ को स्थानीय लोग इसे भीमसेन की लाठी कहकर पुकारते हैं। यहीं पर एक छोटा-सा कुण्ड है, जिसको रामकुण्ड के नाम से जाना जाता है। पुरातत्व विभाग ने इस कुण्ड की पहचान मर्कक-हद के रूप में की है। कुण्ड के एक ओर बुद्ध का मुख्य स्तूप है और दूसरी ओर कुटागारशाला है। सम्भवत: कभी यह भिक्षुणियों का प्रवास स्थल रहा है।
दूसरे बौद्ध परिषद् की याद में यहाँ पर दो बौद्ध स्तूपों का निर्माण किया गया था। इन स्तूपों का पता १९५८ की खुदाई के बाद चला। भगवान बुद्ध के राख पाये जाने से इस स्थान का महत्त्व काफी बढ़ गया है। यह स्थान बौद्ध अनुयायियों के लिए काफी महत्त्वपूर्ण है। बुद्ध के पार्थिव अवशेष पर बने आठ मौलिक स्तूपों में से एक है। बौद्ध मान्यता के अनुसार भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के पश्चात कुशीनगर के मल्ल शासकों प्रमुखत: राजा श्री सस्तिपाल मल्ल जो कि भगवान बुद्ध के रिश्तेदार भी थे के द्वारा उनके शरीर का राजकीय सम्मान के साथ अन्तिम संस्कार किया गया तथा अस्थि अवशेष को आठ भागों में बाँटा गया, जिसमें से एक भाग वैशाली के लिच्छवियों को भी मिला था। शेष सात भाग मगध नरेश अजातशत्रु, कपिलवस्तु के शाक्य, अलकप्प के बुली, रामग्राम के कोलिय, बेटद्वीप के एक ब्राह्मण तथा पावा एवं कुशीनगर के मल्लों को प्राप्त हुए थे। मूलत: यह पाँचवी शती ई॰ पूर्व में निर्मित ८.०७ मीटर व्यास वाला मिट्टी का एक छोटा स्तूप था। मौर्य, शुंग व कुषाण कालों में पकी इँटों से आच्छादित करके चार चरणों में इसका परिवर्तन किया गया, जिससे स्तूप का व्यास बढ़कर लगभग १२ मीटर हो गया।[6]
प्राचीन वैशाली गणराज्य द्वारा ढाई हजार वर्ष पूर्व बनवाया गया पवित्र सरोवर है। ऐसा माना जाता है कि इस गणराज्य में जब कोई नया शासक निर्वाचित होता था तो उनको यहीं पर अभिषेक करवाया जाता था। इसी के पवित्र जल से अभिशिक्त हो लिच्छिवियों का अराजक गणतांत्रिक संथागार में बैठता था। राहुल सांकृत्यायन ने अपने उपन्यास "सिंह सेनापति" में इसका उल्लेख किया है।
अभिषेक पुष्करणी के नजदीक ही जापान के निप्पोनजी बौद्ध समुदाय द्वारा बनवाया गया विश्व शान्तिस्तूप स्थित है। गोल घुमावदार गुम्बद, अलंकृत सीढियाँ और उनके दोनों ओर स्वर्ण रंग के बड़े सिंह जैसे पहरेदार शान्ति स्तूप की रखवाली कर रहे प्रतीत होते हैं। सीढ़ियों के सामने ही ध्यानमग्न बुद्ध की स्वर्ण प्रतिमा दिखायी देती है। शान्ति स्तूप के चारों ओर बुद्ध की भिन्न-भिन्न मुद्राओं की अत्यन्त सुन्दर मूर्तियाँ ओजस्विता की चमक से भरी दिखाई देती हैं।
बावन पोखर मंदिर
बावन पोखर के उत्तरी छोर पर बना पाल कालीन मंदिर में हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ स्थापित है।
राजा विशाल का गढ़
यह वास्तव में एक छोटा टीला है, जिसकी परिधि एक किलोमीटर है। इसके चारों तरफ दो मीटर ऊँची दीवार है जिसके चारों तरफ ४३ मीटर चौड़ी खाई है। समझा जाता है कि यह प्राचीनतम संसद है। इस संसद में ७,७७७ संघीय सदस्य इकट्ठा होकर समस्याओं को सुनते थे और उस पर बहस भी किया करते थे। यह भवन आज भी पर्यटकों को भारत के लोकतांत्रिक प्रथा की याद दिलाता है।
यह जगह भगवान महावीर का जन्म स्थान होने के कारण काफी लोकप्रिय है। यह स्थान जैन धर्मावलम्बियों के लिए काफी पवित्र माना जाता है। वैशाली से इसकी दूरी ४ किलोमीटर है। इसके अलावा वैशाली महोत्सव, वैशाली संग्रहालय तथा हाजीपुर के पास की दर्शनीय स्थल एवं सोनपुर मेला आदि भी देखने लायक है।
- अशोक स्तम्भ:- वैशाली में हुए महात्मा बुद्ध के अंतिम उपदेश की याद में सम्राट अशोक ने नगर के समीप कोल्हुआ में लाल बलुआ पत्थर के एकाश्म सिंह-स्तंभ की स्थापना की थी। लगभग 18.3 मीटर ऊँचे इस स्तम्भ के ऊपर घंटी के आकार की बनावट है जो इसको आकर्षक बनाता है।ईसके साथ साथ एक बड़ा पार्क भी है जिसमे कई तरह के पेड़ पौधे और फुल लगे है यहाँ प्रवेश करने से पहले टिकट लेना पड़ता है स्कूली बच्चो को छूट दी जाती है
- बौद्ध स्तूप:- दूसरे बौद्ध परिषद की याद में यहाँ पर दो बौद्ध स्तूपों का निर्माण किया गया था। पहले तथा दूसरे स्तूप में भगवान बुद्ध की अस्थियाँ मिली है। यह स्थान बौद्ध अनुयायियों के लिए काफी महत्त्वपूर्ण है।
- अभिषेक पुष्करणी:- वैशाली में नव निर्वाचित शासक को इस सरोवर में स्नान के पश्चात अपने पद, गोपनीयता और गणराज्य के प्रति निष्ठा की शपथ दिलायी जाती थी। इसी के नजदीक लिच्छवी स्तूप तथा विश्व शांति स्तूप स्थित है।
- राजा विशाल का गढ़:-लगभग एक किलोमीटर परिधि के चारों तरफ दो मीटर ऊँची दीवार है जिसके चारों तरफ 43 मीटर चौड़ी खाई थी। समझा जाता है कि राजा विशाल का राजमहल या लिच्छ्वी काल का संसद है।
- कुण्डलपुर:- यह जगह जैन धर्म के २४वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्मस्थान होने के कारण काफी पवित्र माना जाता है। वैशाली से इसकी दूरी 4 किलोमीटर के आसपास है। यहीं बसाढ गाँव में प्राकृत जैन शास्त्र एवं अहिंसा संस्थान भी स्थित है। यहाँ पर भगवान महावीर का एक मंदीर भी बनाया गया है
- वैशाली महोत्सव:- प्रतिवर्ष वैशाली महोत्सव का आयोजन जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर के जन्म दिवस पर बैसाख पूर्णिमा को किया जाता है। अप्रैल के मध्य में आयोजित होनेवाले इस राजकीय उत्सव में देशभर के संगीत और कलाप्रेमी हिस्सा लेते हैं।
- विश्व शांति स्तूप:- जापान के निप्पोणजी समुदाय द्वारा बनवाया गया विश्व शांतिस्तूप यहाँ प्रवेश निशुल्क है
- चौमुखी महादेव मंदिर
- बावन पोखर मंदिर
- वैशाली संग्रहालय
- हसनपुर काली मंदिर:- हसनपुर काली मंदिर वैशाली जिला के पूर्वी भाग पर स्थित है,
- बाबा गणीनाथ धर्मस्थली (पलवैया धाम):- विश्व पसिद्ध बाबा गणीनाथ धाम वैशाली के पावन भूमि पर ही स्थित है, यहा हर साल भारत के कोने कोने से लोग आते है साथ ही विदेशी भक्त भी आते है
- कौनहारा घाट: भागवत पुराण में वर्णित गज-ग्राह की लड़ाई में स्वयं भगवान विष्णु ने यहाँ आकर अपने भक्त गजराज को जीवनदान और शापग्रस्त ग्राह को मुक्ति दी थी। गंगा और गंडक के पवित्र संगम पर बसे कौनहारा घाट की महिमा हिन्दू धर्म में अन्यतम है।
- नेपाली छावनी मंदिर: १८वीं सदी में पैगोडा शैली में निर्मित अद्वितीय शिवमंदिर नेपाली वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है।
- रामचौरा मंदिर: अयोध्या से जनकपुर जाने के क्रम में भगवान श्रीराम ने यहाँ विश्राम किया था। उनके चरण चिह्न प्रतीक रूप में यहाँ मौजूद है।
- महात्मा गाँधी सेतु:- प्रबलित कंक्रीट से गंगा नदी पर बना महात्मा गाँधी सेतु दुनिया में एक ही नदी पर बना सबसे बड़ा पुल है। 46 पाये वाले इस कंक्रीट पुल से गंगा को पार करने पर वैशाली में आम और केले की खेती तथा पटना महानगर के विभिन्न घाटों तथा लैंडमार्क का विहंगम दृश्य दिखाई देता है।
- पातालेश्वर मंदिर :
- सोनपुर मेला
गंगा-गंडक के संगम पर बसे हरिहरक्षेत्र में कौनहारा घाट के सामने सोनपुर में विश्वप्रसिद्ध मेला लगता है। यहाँ बाबा हरिहरनाथ (शिव मंदिर) तथा काली मंदिर के अलावे अन्य मंदिर भी हैं। प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा को पवित्र गंडक-स्नान से शुरु होनेवाले मेले का आयोजन पक्ष भर चलता है। सोनपुर मेला की प्रसिद्धि एशिया के सबसे बड़े पशु मेले के रूप में है। हाथी-घोड़े से लेकर रंग-बिरंगे पक्षी तक मेले में खरीदे-बेचे जाते हैं। मेला के दिनों में सोनपुर एक सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक केंद्र बन जाता है।
- अन्य महत्त्वपूर्ण स्थल
- चेचर (श्वेतपुर): हाजीपुर से लगभग 18 किलोमीटर पूरब स्थित गंगा नदी के किनारे स्थित चेचर गाँव पुरातात्विक धरोहरों से सम्पन्न गाँव है। इसका पुराना नाम श्वेतपुर है। यहाँ गुप्त एवं पालवंश के शासनकाल की मूर्त्तियाँ एवं सिक्के मिले हैं।
- भुइयाँ स्थान: हाजीपुर से 10 किलोमीटर दूर स्थित एक गाँव में बाबा भुइयाँ स्थान है, जहाँ पशुपालकों द्वारा देवता को दूध अर्पित किया जाता है। वैशाली तथा आसपास के जिले में कृषि एवं पशुपालन से जुड़े लोगों के लिए यह स्थान अति पवित्र है।
- बुढ़ीमाई का मंदिर
बाबा बटेश्वर नाथ का मेला
यातायात
- सड़क मार्ग
पटना, हाजीपुर अथवा मुजफ्फरपुर से यहाँ आने के लिए सड़क मार्ग सबसे उपयुक्त है। वाहनों की उपलब्धता सीमित है इसलिए पर्यटक हाजीपुर या मुजफ्फरपुर से निजी वाहन भाड़े पर लेकर भ्रमण करना ज्यादा पसंद करते हैं। वैशाली से पटना समेत उत्तरी बिहार के सभी प्रमुख शहरों के लिए बसें जाती हैं।
- रेल मार्ग
वैशाली का नजदीकी रेलवे जंक्शन हाजीपुर है जो पूर्व मध्य रेलवे का मुख्यालय भी है। यह जंक्शन वैशाली से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर है। दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता, गुवाहाठी तथा अमृतसर के अतिरिक्त भारत के महत्त्वपूर्ण शहरों के लिए यहाँ से सीधी ट्रेन सेवा है।
- हवाई मार्ग
वैशाली का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा राज्य की राजधानी पटना (५५ किलोमीटर) में स्थित है। जय प्रकाश नारायण अन्तर्राष्ट्रीय हवाई क्षेत्र के लिए इंडियन, स्पाइस जेट, किंगफिशर, जेटएयरवेज, इंडिगो आदि विमानस ेवाएँ उपलब्ध हैं। यहाँ आनेवाले पर्यटक दिल्ली, कोलकाता, काठमांण्ु, बागडोगरा, राँची, बनारस और लखनऊ से फ्लाइट ले सकते हैं। हवाई अडड्े से हाजीपुर होते हुए निजी अथवा सार्वजनिक वाहन से वैशाली तक जाया जा सकता है। इसके आअावा गोरखपुर से भी ट्रेन आदि द्वारा भी आसानी से वैशाली पंुचँा जा सकता है|।
प्रमुख शहर की दूरी
पटना- ५५ किलोमीटर, हाजीपुर- ३५ किलोमीटर, मुजफ्फरपुर- ३७ किलोमीटर, बोधगया- १६३ किलोमीटर, राजगीर- १४५ किलोमीटर, नालंदा- १४० किलोमीटर लालगंज
एक नजर में
- जनसंख्या :- २७,१८,४२१ (२००१ की जनगनणना अनुसार)
पुरुषों की संख्या:- १४,१५,६०३
स्त्रियों की संख्या:- १३,०२,८१८
- जनसंख्या का घनत्वः- १,३३५
- साक्षरता दरः- ५०.४९%
- समुद्र तल से ऊँचाई- ५२ मीटर
- तापमान- ४४ डिग्री सेल्सियस-२१ डिग्री सेल्सियस (गर्मियों में), २३ डिग्री सेल्सियस - ६ डिग्री सेल्सियस (सर्दियों में)
- सालाना वर्षा- १२० से॰मी॰
भ्रमण समय एवं सुझाव
वैशाली सालोभर जाया जा सकता है किन्तु सितम्बर से मार्च का समय सबसे उपयुक्त है। वैशाली अपने हस्तशिल्प के लिए विख्यात है। कार्तिक के महीने में लगनेवाले एशिया के सबसे बड़ा पशु मेला सोनपुर मेले से यादगार के तौर पर यहाँ से हस्तशिल्प का सामान खरीदा जा सकता है। प्रसिद्ध मधुबनी कला की पेंटिंग भी खरीदी जा सकती है।
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