चार प्रकार के श्रमण


(चार प्रकार के श्रमण)

एवं मे सुतं- ऐसा मैंने सुना।

एक समय चुन्द कर्मारपुत्र ने तथागत बुद्ध से पुछा-

"कति लोके समणा?

संसार में कितने प्रकार के श्रमण ( भिक्षु ) है?

बुद्ध ने कहा-

"चतुरो समणा न पञ्चमत्थि"-

संसार में चार प्रकार के श्रमण है, पांचवां नहीं।

कौन से चार?

✅१. मग्गजिनो- मार्गजिन

✅२. मग्गदेसको- मार्गदेशक

✅३.मग्गेजीवति-  मार्गजीवी

✅४.मग्गदूसी - मार्गदूषी

भन्ते !

मग्गजिनो ( मार्गजिन),
मग्गदेसको ( मार्गदेशक),
मग्गेजीवति (मार्गजीवी),
मग्गदूसी ( मार्गदूषी), 
किसे कहते हैं? चुंद ने पुछा।

बुद्ध ने कहा-

जो सन्देहों से रहित,सांसारिक शल्य ( कांटा ) से मुक्त, निर्वाण में लीन, आसक्ति रहित, देवताओं सहित लोक का जो नेता है, उसे मार्गजिन कहते है।

जो परमार्थ को यहां जानकर यहीं धम्म को बतलाता और उसकी व्याख्या करता है, वह सन्देह रहित, तृष्णा मुक्त मुनि द्वितीय भिक्षु मार्गदेशक कहलाता है।

जो सुदेशित धम्मपद के अनुसार संयमित और स्मृतिमान हो मार्ग में जीत है, निर्दोष धर्मों का पालन करने वाला वह तृतीय भिक्षु मार्गजीवी कहलाता है।

जो अच्छे व्रतधारियों का वेष धारण कर पाखंडी, कुल- दूषक, ढोंगी, मायावी,असंयमी और बकवादी हो भिक्षुओं के वेष में विचरण करता है, वह मार्गदूषि ( मार्गदोषी) है।

"एते च पटिविज्झि यो गहट्ठो, सुतवा अरियासावको सपञ्ञो।
सब्बे नेतादिसा'ति ञत्वा, इति दिस्वा न हापेति तस्स सद्धा।
कथं हि दुट्ठेन असम्पदुट्ठं, सुद्धं असुद्धेन समं करेय्याति।।"
अर्थात-
जो प्रज्ञावान,श्रुतवान, आर्यश्रावक गृहस्थ है, वह इन्हें जान लिया है, " सब ऐसे नहीं होते" यह जान और देखकर अपनी श्रद्धा को कम नहीं करता। भला कैसे दुष्ट की समान अदुष्ट से और शुद्ध की अशुद्ध से की जा सकती है।


नमो बुद्धाय🙏🙏🙏
Ref: चुन्द सुत्त (सुत्त निपात )

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