पच्चीस चौका डेढ़ सौ -ओमप्रकाश वाल्मीकि की कहानी समीक्षा -डॉ संघप्रकाश दुड्डे
पच्चीस चौका डेढ़ सौ -ओमप्रकाश वाल्मीकि की कहानी समीक्षा -डॉ संघप्रकाश दुड्डे शीर्षक प्रस्तुत कहानी का शीर्षक सामान्य, सहज एवं विस्तृत करने वाला है। जिसके मूल में एक उत्कंठा अवश्य बार-बार उत्पन्न होती है कि कैसे पच्चीस चौका डेढ़ सौ होता है। कथावस्तु सुदीप के पिताजी उसका दाखिला स्कूल में करवाने के लिए जाते हैं। वह सोचते हैं, कि मेरा लड़का पढ़ लिख कर बड़ा होगा कम आएगा जिससे मेरा जीवन में सफल हो पाएगा। सुदीप का दाखिला हो गया। पिताजी खुश थे। दाखिले के साथ हुए झुक झुक कर वे मास्टर फूल सिंह को सलाम कर रहे थे। सुदीप स्कूल में अपनी कक्षा में पढ़ने में तेज था। दूसरी कक्षा में आते-आते वह अच्छे विद्यार्थियों में गिना जाने लगा। तमाम सामाजिक दबावों और भेदभाव के बावजूद वह पूरी लगन से स्कूल जाता रहा। सभी विषयों में उसका मन लगता था। गणित में उसका मन कुछ ज्यादा ही लगता था। मास्टर शिव नारायण मिश्रा ने चौथी कक्षा के बच्चों से 15 तक पहाड़े याद करने के लिए कहा था। लेकिन सुदीप को 24 तक पहाड़े पहले से ही अच्छी तरह से याद थे। मिश्रा जी ने शाबाशी देते हुए 25 तक का पहाड़ा याद करने के लिए सुदीप स...